Colourful Kavad on NH58: उत्तराखंड से लेकर उत्तर प्रदेश तक बोल बम-बम का उद्घोष सुनाई दे रहा है। NH58 पर रंग-बिरंगी कावड़ और झूमते-गाते शिवभक्तों ने समा बांध रखा है। ऐसे में हरिद्वार की पावन धरा से एक ऐसी कांवड़ चल रही है, जिसे देखकर हर राह चलने वाले की नजरें थाम गई, क्योंकि इसकी सजावट में फूल नहीं, झालर नहीं बल्कि 450 से भी ज्यादा नरमुंड! जी हां, आपने बिल्कुल सही सुना और देखा है, ये कोई हॉरर शो नहीं, बल्कि शिवभक्ति की ऐसी झलक है, जो बहुत कम ही देखने को मिलती है।
श्रावण मास की शिवरात्रि पर भगवान आशुतोष का जलाभिषेक करने के लिए करोडों शिव भक्त हरिद्वार से गंगा जल लेकर निकलते हैं। कावड़ यात्रा के दौरान तरह-तरह की कावड़ लेकर भगवान भोले के भक्त जिस मार्ग से होकर गुजरते है उन्हें देखने के लिए सड़कों पर लोगों का सैलाब आ जाता है। लोग मोबाइल में तस्वीरे कैद करते है, लेकिन इस बार कावड़ यात्रा के दौरान जो दृश्य देखने को मिला, वो रोंगटे खड़े करने वाला नहीं, बल्कि आस्था में डूबा हुआ एक अनूठा तांत्रिक अनुभव था। शिव भक्तों ने नरमुंडों से कावड़ सजाकर भगवान शिव के रौद्र और तांत्रिक स्वरूप की पूजा की ऐसी मिसाल पेश की है, जिसे देख हर कोई दंग हो रहा है।
शिव और मुण्डमाला रहस्य, भक्ति और मोक्ष का संगम : शास्त्रों में वर्णित है कि भगवान शिव 'मुंडमाला' पहनते हैं, यानी नरमुंडों की माला। भगवान का यह कोई डरावना श्रृंगार नहीं, बल्कि यह बताता है कि शिव ने अहंकार, मोह, और मृत्यु पर जीत पाई है। नरमुंड आत्म-समर्पण और वैराग्य का रूप हैं, जिन्हें धारण कर साधक स्वयं के अहं को शिवचरणों में अर्पित करता है। हर नरमुंड किसी न किसी ‘अहं’ के अंत माना जाता है और यही संदेश इस नरमुंड वाली कांवड़ में भी छुपा है।
शिव का यह रौद्ररूप देखकर श्रद्धालु बोल उठे बम-बम भोले : इस कावड़ को देखकर श्रद्धालु पहले तो भयभीत हो गए, लेकिन जब उन्होंने पास से देखा की यह नरमुंड असली नहीं, प्रतीकात्मक हैं, तो कह उठे बोल बम-बम। 450 नरमुंड वाली इस कावड़ के हर एक मुंड में त्याग, साधना और समर्पण का भाव छुपा है। जिसे देखकर कुछ भक्तों ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि शिव केवल भोले नहीं, तांत्रिक भी हैं। हम उन्हीं के रौद्र रूप की साधना कर रहे हैं।
साधना या सनक? लोगों की मिली-जुली प्रतिक्रिया : नरमुंड की कावड़ को लेकर आमजन मानस तरह-तरह की प्रतिक्रिया दे रहा है, जहां कुछ लोग इस अनूठी कावड़ को शिव के प्रति श्रद्धाभाव मान मान रहे हैं, वहीं कुछ इसे अतिरेकी तामझाम कहकर नकार रहे हैं। हर किसी का अपना मत है लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि 450 नरमुंड वाली कावड़ ने हर इंसान को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या भक्ति सिर्फ घंटे, घड़ियाल, आरती और भजन तक ही होती है? या फिर भक्ति का रास्ता तंत्र साधना और त्याग से भी होकर भी गुजरता है?
हरिद्वार से हरियाणा तक गूंज रही शिवभक्ति : 450 नरमुंडों से सजी ये कावड़ अब NH58 यानी दिल्ली देहरादून हाईवे से गुजरते हरियाणा की तरफ बढ़ रही है। जहां-जहां से यह गुजर रही है वहां लोगों का तांता लग रहा है, जिस शहर की तरफ बढ़ती है उससे पहले ही गांव, शहर में नरमुंडों वाली कावड़ की चर्चा होने लगती है। लोग कौतूहल के साथ जत्थों में कावड़ देखने पहुंच जाते है। जिसे देखकर यह कहा जा सकता है कि शिवभक्ति कि जब समर्पण सच्चा हो, तो भक्ति किसी भी रूप में सुंदर लगती है। और शायद यही सत्यम, शिवम सुन्दरम है, जो हर रूप में, हर भाव में, हर हृदय में विराजमान रहता है।
Edited by: Vrijendra Singh Jhala
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