देहरादून। लक्खीबाग की दरभंगा बस्ती में करीब 150 मजदूरों के परिवार अपनी जिंदगी बसर करते हैं। इन्हीं परिवारों में से एक है मीना, जो इस बस्ती की बेटी है और बच्चों के भविष्य को संवारने का जुनून रखती है। मीना न सिर्फ बच्चों को स्कूल जाने के लिए प्रेरित करती है, बल्कि उन्हें पढ़ाने का काम भी करती है। आज शिक्षक दिवस के मौके पर आइए जानते हैं मीना की प्रेरणादायक कहानी और उनके संघर्ष की दास्तान।
बस्ती की पाठशाला: एक नई शुरुआतमीना की कहानी तब शुरू हुई जब उन्होंने 2013 में राजकीय कन्या इंटर कॉलेज, लक्खीबाग से पढ़ाई पूरी की। इसके बाद उनकी मुलाकात नियो विजन फाउंडेशन के संस्थापक गजेंद्र रमोला से हुई। गजेंद्र ने मीना को एनीमेशन का कोर्स करवाया, जिसने उनके आत्मविश्वास को और बढ़ाया। शुरुआत में मीना ने अपने घर पर ही तीन-चार बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। लेकिन जैसे-जैसे बच्चों की संख्या बढ़ने लगी, नियो विजन फाउंडेशन के सहयोग से “बस्ती की पाठशाला” की नींव रखी गई।
आज इस पाठशाला में हर शाम 60-80 बच्चे दो से तीन घंटे पढ़ने आते हैं। जो बच्चे आर्थिक तंगी के कारण स्कूल नहीं जा पाते, मीना उन्हें समझाती हैं और उनका स्कूल में दाखिला करवाती हैं। इतना ही नहीं, इन बच्चों को पढ़ाई के साथ-साथ खेल, नृत्य और गायन जैसी गतिविधियों से भी जोड़ा जाता है ताकि उनका सर्वांगीण विकास हो।
कूड़ा बीनने वालों के बच्चों को नई राहमीना ने 12 ऐसे बच्चों को, जो पहले कूड़ा बीनने का काम करते थे, अपनी पाठशाला से जोड़ा और फिर उनका दाखिला सरकारी स्कूलों में करवाया। इसके अलावा, 50 ऐसे बच्चे जिनके परिवार आर्थिक रूप से कमजोर थे, उनके घर जाकर मीना ने उनके माता-पिता को पढ़ाई का महत्व समझाया और बच्चों को स्कूल भेजने के लिए राजी किया।
नियो विजन फाउंडेशन के संस्थापक गजेंद्र रावत का कहना है कि मीना जैसी युवा बेटियां न सिर्फ बच्चों को पढ़ा रही हैं, बल्कि उन्हें नेतृत्व करने की कला भी सिखा रही हैं। गजेंद्र का मानना है कि मीना जैसे और बच्चों को प्रेरित कर वे समाज में बदलाव ला सकते हैं।
पढ़ाई के सामने चुनौतियांमीना बताती हैं कि कूड़ा बीनने वाले परिवारों को पढ़ाई के लिए मनाना आसान नहीं है। कई परिवारों का मानना है कि कूड़ा बीनने से तुरंत पैसे मिलते हैं, लेकिन पढ़ाई से क्या फायदा? जब मीना ऐसे परिवारों से बात करने जाती थीं, तो उन्हें अक्सर यही जवाब मिलता था। लेकिन मीना ने हार नहीं मानी। उन्होंने परिवारों को भरोसा दिलाया कि पढ़ाई से उनके बच्चों का भविष्य और बेहतर होगा। कई बार तो उन्हें अपनी गारंटी तक देनी पड़ी।
एक और बड़ी समस्या थी कि इन बच्चों के पास आधार कार्ड जैसे जरूरी दस्तावेज नहीं होते, जिसके कारण स्कूल में दाखिला लेना मुश्किल हो जाता था। मीना ने इस चुनौती को भी पार किया। वे बच्चों के आधार कार्ड बनवाने से लेकर स्कूल में दाखिला करवाने तक हर कदम पर उनके साथ रहीं।
बस्ती के बच्चे बन रहे प्रेरणाआज मीना की मेहनत रंग ला रही है। उनकी पाठशाला से पढ़े हुए बच्चे, जैसे मनीषा पासवान, अभिषेक राउत, अर्पिता और श्यामा, अब दूसरों को पढ़ाने में मदद कर रहे हैं। ये बच्चे न सिर्फ अपनी जिंदगी को बेहतर बना रहे हैं, बल्कि दूसरों के लिए भी प्रेरणा बन रहे हैं।
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