नाहन, 05 अक्टूबर (Udaipur Kiran News) . Himachal Pradesh के सिरमौर जिले के गिरिपार क्षेत्र में आज भी प्राचीन काल से चली आ रही लोक परंपराएं जीवंत हैं. अष्टमी से लेकर दीपावली तक ग्रामीण कलाकार पांडवों और कौरवों की गाथा को हूलक, दमोनू, छनका जैसे पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ गांव-गांव जाकर गाते हैं और बदले में लोगों से मुंडा (दान) प्राप्त करते हैं.
लोकगायक और ‘नाटी किंग’ पुरण चन्द मिमाण ने बताया कि इस लोक परंपरा की जड़ें महाभारत काल की उन घटनाओं से जुड़ी हैं, जब कौरवों ने पांडवों को लाक्षागृह में जलाने की साजिश रची थी. मां कुंती ने समय रहते अपने बेटों को इस षड्यंत्र की जानकारी दी और पांडवों ने जंगल की आग में फंसे चूहों के बच्चों को बचाया. इन चूहों की मदद से पांडवों को धून्धू रवाड की गुफा तक पहुंचने का रास्ता मिला.
पुरण चन्द के अनुसार इस दौरान भीम ने अपनी गदा से लोहे का तवा तोड़कर रास्ता बनाया और मां कुंती अपने पांचों पुत्रों के साथ सुरक्षित उस गुफा में पहुंचीं. उस समय हूलक, दमोनू और छनका जैसे वाद्य यंत्रों के माध्यम से लोगों का ध्यान भटकाया जाता था ताकि संकट से बचा जा सके.
तब से यह परंपरा गिरिपार क्षेत्र में जीवित है. लोक कलाकार इन गाथाओं का गायन कर न केवल प्राचीन संस्कृति को सहेज रहे हैं, बल्कि ग्रामीण समाज से सम्मान स्वरूप मुंडा और नगद राशि भी प्राप्त करते हैं. यह लोककला आज भी क्षेत्रीय पहचान और सांस्कृतिक धरोहर का अहम हिस्सा बनी हुई है.
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(Udaipur Kiran) / जितेंद्र ठाकुर
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