प्रयागराज, 05 मई . इलाहाबाद विश्वविद्यालय, सेंटर फॉर थियेटर एंड फिल्म के फ़ाइनल ईयर विद्यार्थियों ने प्रेमचंद कृत ‘कफन’ का नाट्य रूपांतरण साेमवार काे छात्र प्रस्तुति में दिया. इसका निर्देशन सेंटर के छात्र मोहम्मद सैफ ने किया.
इविवि की पीआरओ प्रो जया कपूर ने बताया कि अपनी कहानियों एवं उपन्यासों के लिए एक जाना-माना नाम प्रेमचंद मुख्य रूप से हिन्दुस्तानी (उर्दू और हिन्दी) भाषा में लिखते थे. उनकी कहानियाँ नमक का दरोगा, पंच परमेश्वर, पूस की रात, दो बैलों की कथा इत्यादि उनके समय और गाँव के परिवेश का यथार्थ चित्रण करती हैं. उनका साहित्य समाज के विभिन्न पहलुओं को छूता किरदारों की जिजीविषा को व्यक्त करता है.
प्रो कपूर ने बताया कि कफन प्रेमचंद की लिखी हुई अंतिम कहानी मानी जाती है. इसमें वह एक गांव की दलित बस्ती के दो किरदारों से परिचय करवाते हैं जो अकर्मण्य और असंवेदनशील हैं. घीसू और माधव, बाप-बेटे की जोड़ी है जो अपने घर की औरत बुधिया की कमाई खाते हैं और उसे प्रसव पीड़ा से मर जाने देते हैं. कफन इंसानी रूह के उस तड़प की कहानी है जिसमें अशिक्षा है, बेबसी है, गरीबी है, नशे की लत है, लाचारी है, वहशीपन के पल है. कफन, रिश्तों, प्रेम और मानवता को स्वाहा होते देखने की कहानी है!
कहानी को नाटक में रूपांतरण करने में उसकी मौलिकता से कोई छेड़छाड़ नहीं की गई है. मंच विन्यास प्रतीकात्मक है जो कहानी के यथार्थ से ही प्रेरित है. यह निर्देशक और कलाकारों की अपनी दृष्टि का सुखद परिणाम रहा है, जिसमें मंचीय प्रेरणा से एक ऐसा विहंगम दृश्य प्रस्तुत हुआ.
नाटक के अंत में गांव की महिलायें बुधिया की अर्थी उठा कर ले जाती हैं. यह घटना पार्श्व में घटती है. जबकि घीसू और माधव एक भिखारी को बचा हुआ खाना खिलाते हुए झूठ बोलते दिखाई देते हैं. उनकी असंवेदनशीलता इस दृश्य के माध्यम से और भी वीभत्स होकर सामने आती है. स्टेज को तीन अलग दृश्यों के हिसाब से बाँटा गया. एक में झोपड़ी, एक में ठाकुर का घर, एक में बाज़ार के बाद चबूतरे का दृश्य. सबसे अन्तिम दृश्य के लिए एक काल्पनिक नदी का चित्रण भी किया गया जो प्रेमचंद की कल्पना नहीं थी, डायरेक्टर की कल्पना थी.
नाट्य प्रस्तुति का मार्गदर्शन डॉ विशाल विजय तथा डॉ अनिर्बान ने किया. मंच पर सौरभ, शिवम्, शिवांगी, धीरज, अंजली, रश्मि, दीक्षा, कृष्णकांत और सैफ रहे. जिन कलाकारों ने प्रस्तुति दी वे सेंटर के छात्र तथा सेंटर के द्वारा संचालित क्लब के सदस्य रहे.
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/ विद्याकांत मिश्र
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