शादी में देरी हो रही हो या शादी में प्रथम पूज्य भगवान गणेश को आमंत्रित करना हो या किसी दुर्घटना से बचने के लिए अपनी नई कार की पूजा करवानी हो, राजस्थान और दिल्ली के लोगों की पसंद की एकमात्र जगह जयपुर का मोती डूंगरी गणेश मंदिर है। कहा जाता है कि मोती डूंगरी मंदिर का इतिहास 50-100 नहीं बल्कि 400 साल पुराना है। भगवान गणेश के इस मंदिर की वास्तुकला लोगों को काफी आकर्षित करती है। गणेश चतुर्थी के अवसर पर मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। जिस तरह भगवान शिव के मंदिर के सामने नंदी की मूर्ति प्रतीक्षा करती है, उसी तरह इस मंदिर में भगवान गणेश की मूर्ति की ओर प्रतीक्षा मुद्रा में मूषकराज की मूर्ति भी स्थापित है।
मोती डूंगरी गणेश मंदिर की वास्तुकला
कहा जाता है कि जयपुर में एक छोटी सी पहाड़ी पर स्थित मोती डूंगरी गणेश मंदिर को बनाने में 4 महीने का समय लगा था। इस मंदिर का निर्माण राजस्थान के बेहतरीन पत्थरों से किया गया था। वास्तुकला और डिजाइनिंग की जिम्मेदारी सेठ जयराम पालीवाल को सौंपी गई थी। मंदिर में 3 गुंबद हैं। कहा जाता है कि यह भारत के 3 प्रमुख धर्मों हिंदू, इस्लामी और पश्चिमी सभ्यता का प्रतिनिधित्व करता है। यह मंदिर दूर से भी बेहद खूबसूरत लगता है।
मंदिर किसने और कब बनवाया?
मंदिर के निर्माण के बारे में कोई प्रत्यक्ष प्रमाण तो नहीं है, लेकिन कुछ स्थानीय लोगों का कहना है कि इस मंदिर का निर्माण मेवाड़ के राजा ने करवाया था, जबकि कुछ का कहना है कि इस मंदिर का निर्माण जयपुर के राजा मोधा सिंह प्रथम ने करवाया था। पहली कहानी के अनुसार मेवाड़ के राजा मोती डूंगरी गणेश की मूर्ति के साथ बैलगाड़ी में यात्रा कर रहे थे और उन्होंने प्रण किया था कि जहां भी उनकी बैलगाड़ी रुकेगी, वे उस स्थान पर मंदिर बनवाएंगे। दूसरी कहानी के अनुसार मोती डूंगरी गणेश की मूर्ति को वर्ष 1761 में माधो सिंह प्रथम की प्रमुख रानी के मायके मावली से लाया गया था। जिस समय यह मूर्ति यहां लाई गई थी, उस समय इस मूर्ति की आयु 500 वर्ष थी। इस मूर्ति को जयपुर के नगर सेठ पालीवाल के तत्वावधान में लाया गया था और मोती डूंगरी की तलहटी में बने मंदिर में स्थापित किया गया था।
क्या है खास
मोती डूंगरी गणेश मंदिर में हर बुधवार को बड़ा मेला लगता है।
मंदिर में भगवान गणेश की सूंड दाईं ओर है और उन्हें सिंदूरी चोला पहनाकर भव्य रूप से सजाया गया है।
मंदिर में भगवान गणेश की बैठने की मुद्रा भी अन्य मूर्तियों से काफी अलग है।
नए वाहनों की पूजा करवाने के लिए मंदिर के बाहर लंबी कतार लगती है। ऐसा कहा जाता है कि मोती डूंगरी गणेश मंदिर में आशीर्वाद लेने से वाहन दुर्घटनाग्रस्त नहीं होते।
नवरात्रि, रामनवमी, दशहरा, धनतेरस और दीपावली जैसे अवसरों पर अपने वाहनों की पूजा करवाने वालों की संख्या अधिक होती है।
अगर किसी युवक या युवती की शादी नहीं हो रही है तो मोती डूंगरी मंदिर में प्रसाद के रूप में मिलने वाली मेहंदी लगाने से विवाह जल्दी होता है।
इस मंदिर में दूर-दूर से लोग शादी का पहला निमंत्रण देने आते हैं। मान्यता है कि इससे विवाह बिना किसी बाधा के संपन्न होता है।
मंदिर परिसर में एक शिवलिंग भी स्थापित है, जिसके कपाट केवल शिवरात्रि पर ही खुलते हैं।
यहां कब और कैसे पहुंचें
मोती डूंगरी गणेश मंदिर सुबह 5 बजे से दोपहर 1.30 बजे तक और शाम 4.30 बजे से रात 9.30 बजे तक भक्तों के लिए खुला रहता है। मंदिर में प्रवेश के लिए कोई शुल्क नहीं है। जयपुर एयरपोर्ट से मोती डूंगरी गणेश मंदिर की दूरी करीब 10 किलोमीटर है। वहीं जयपुर रेलवे स्टेशन से मंदिर की दूरी करीब 8 किलोमीटर है। एयरपोर्ट और स्टेशन दोनों जगहों से आपको मोती डूंगरी गणेश मंदिर के लिए टैक्सी, कैब या बस आसानी से मिल जाएगी। यह मंदिर दिल्ली और देश के प्रमुख शहरों से सड़क मार्ग से बहुत अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।
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