ब्रसेल्स: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने नाटो और यूरोपीय संघ के सदस्य देशों से भारत पर 100 प्रतिशत तक टैरिफ लगाने का आह्वान किया है ताकि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को यूक्रेन में युद्ध समाप्त करने के लिए मजबूर किया जा सके। ट्रंप ने पिछले मंगलवार को अमेरिका और यूरोपीय संघ के अधिकारियों के बीच एक बैठक के दौरान यह मांग की है। अमेरिका ने ट्रंप की इस मांग को रूस और यूक्रेन के बीच शांति समझौते में तेजी लाने का प्रयास बताया है। दरअसल, ट्रंप राष्ट्रपति बनने के पहले दिन ही रूस-यूक्रेन युद्ध रुकवाने का वादा कर चुके हैं, लेकिन उन्हें आठ महीनों बाद भी कोई सफलता नहीं मिली है।
फाइनेंशियल टाइम्स अखबार की रिपोर्ट के अनुसार, ट्रंप ने यूरोपीय यूनियन से रूस और उससे तेल खरीदने वाले देशों के खिलाफ कड़े प्रतिबंध लगाने की मांग की है। उनका यह बयान अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट के बयान के बाद आई है, जिसमें उन्होंने कहा था कि वाशिंगटन रूस पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाने की तैयारी कर रहा है, लेकिन इसके लिए उसे मजबूत यूरोपीय समर्थन की आवश्यकता है।
रूस पर प्रतिबंध की वकालत कर रहे ट्रंप
13 सितंबर को अपने ट्रुथ सोशल अकाउंट पर पोस्ट किए गए एक पत्र में, ट्रंप ने कहा कि वह "रूस पर बड़े प्रतिबंध लगाने के लिए तैयार हैं" अगर नाटो "ऐसा करने के लिए सहमत हो जाए।" उन्होंने यह भी दावा किया कि चीन पर बढ़े हुए टैरिफ से रूस पर बीजिंग का "नियंत्रण" कमजोर होगा। हालांकि, ट्रंप ने इस दौरान खुलकर भारत का नाम नहीं लिया था, लेकिन उनका इशारा नई दिल्ली की ओर ही था। ट्रंप के कई करीबी अधिकारी भारत पर प्रतिबंध की वकालत कर रहे हैं।
ट्रंप यह अनुरोध क्यों कर रहे हैं?
अल जजीरा की रिपोर्ट के अनुसार, भारत और चीन रूस से तेल खरीदते हैं, जिससे रूसी अर्थव्यवस्था को गति मिल रही है। चीनी सीमा शुल्क आंकड़ों के अनुसार, रूसी ऊर्जा के सबसे बड़े खरीदार के रूप में, चीन ने पिछले साल 10.9 करोड़ टन कच्चा तेल आयात किया, जो उसके कुल ऊर्जा आयात का लगभग 20 प्रतिशत है। इसके उलट, भारत ने 2024 में 8.8 करोड़ टन रूसी तेल आयात किया, जो उसके कुल ऊर्जा आयात का लगभग 35 प्रतिशत है।
ट्रंप ने पहले ही भारत पर लगाया है 50% टैरिफ
ट्रंप ने हाल ही में रूसी कच्चे तेल के आयात के लिए भारत पर 25 प्रतिशत का अतिरिक्त टैरिफ लगाया है। हालांकि, ट्रंप ने अब तक चीन पर इसी तरह का शुल्क लगाने से परहेज किया है। दरअसल, ट्रंप प्रशासन चीन के साथ एक नाजुक व्यापार युद्धविराम समझौते पर काम कर रहा है। ऐसे में ट्रंप को डर है कि चीन पर टैरिफ लगाने से उनका यह समझौता अधर में लटक जाएगा, जिसका सीधा असर अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। एक दिन पहले ही अमेरिका ने टिकटॉक पर चीन की शर्तों को स्वीकार कर लिया है और शुक्रवार को डोनाल्ड ट्रंप चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से बात करने वाले हैं।
यूरोप पर और दबाव डाल रहे ट्रंप
फरवरी 2022 में मास्को के यूक्रेन पर बड़े पैमाने पर आक्रमण शुरू होने के बाद से यूरोप की रूसी ऊर्जा पर निर्भरता कम हो गई है। उस समय, यूरोपीय संघ अपनी प्राकृतिक गैस का 45 प्रतिशत रूस से आयात करता था। इस वर्ष यह घटकर केवल 13 प्रतिशत रहने की उम्मीद है। लेकिन ट्रम्प चाहते हैं कि यूरोप और अधिक प्रयास करे। अमेरिकी राष्ट्रपति का यह अनुरोध नाटो और रूस के बीच बढ़ते तनाव के बीच आया है। पिछले बुधवार को एक दर्जन से अधिक रूसी ड्रोन पोलिश हवाई क्षेत्र में घुसे और शनिवार को एक ने रोमानियाई हवाई क्षेत्र में प्रवेश किया। पोलैंड और रोमानिया दोनों नाटो के सदस्य हैं।
क्या यूरोपीय संघ भारत पर आसानी से प्रतिबंध लगा सकता है?
भारत और यूरोपीय संघ करीबी व्यापारिक साझेदार हैं। 2024 में, यूरोपीय संघ का भारत के साथ वस्तु व्यापार घाटा – मुख्यतः इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों, दवाओं और लोहा व इस्पात जैसी मूल धातुओं के रूप में – 22.5 बिलियन यूरो ($26 बिलियन) था। यूरोप इन आयात को लेकर भारत पर निर्भर है। ऐसे में अगर यूरोपीय संघ 50 से 100 प्रतिशत की टैरिफ लगाता है तो विनिर्माण बाधित होगा, उत्पादन लागत बढ़ेगी और पूरे यूरोपीय संघ में उपभोक्ता कीमतें बढ़ेंगी, यही कारण है कि यूरोपीय संघ एकतरफा दंडात्मक टैरिफ अपनाने से सावधान रहेगा।
फाइनेंशियल टाइम्स अखबार की रिपोर्ट के अनुसार, ट्रंप ने यूरोपीय यूनियन से रूस और उससे तेल खरीदने वाले देशों के खिलाफ कड़े प्रतिबंध लगाने की मांग की है। उनका यह बयान अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट के बयान के बाद आई है, जिसमें उन्होंने कहा था कि वाशिंगटन रूस पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाने की तैयारी कर रहा है, लेकिन इसके लिए उसे मजबूत यूरोपीय समर्थन की आवश्यकता है।
रूस पर प्रतिबंध की वकालत कर रहे ट्रंप
13 सितंबर को अपने ट्रुथ सोशल अकाउंट पर पोस्ट किए गए एक पत्र में, ट्रंप ने कहा कि वह "रूस पर बड़े प्रतिबंध लगाने के लिए तैयार हैं" अगर नाटो "ऐसा करने के लिए सहमत हो जाए।" उन्होंने यह भी दावा किया कि चीन पर बढ़े हुए टैरिफ से रूस पर बीजिंग का "नियंत्रण" कमजोर होगा। हालांकि, ट्रंप ने इस दौरान खुलकर भारत का नाम नहीं लिया था, लेकिन उनका इशारा नई दिल्ली की ओर ही था। ट्रंप के कई करीबी अधिकारी भारत पर प्रतिबंध की वकालत कर रहे हैं।
ट्रंप यह अनुरोध क्यों कर रहे हैं?
अल जजीरा की रिपोर्ट के अनुसार, भारत और चीन रूस से तेल खरीदते हैं, जिससे रूसी अर्थव्यवस्था को गति मिल रही है। चीनी सीमा शुल्क आंकड़ों के अनुसार, रूसी ऊर्जा के सबसे बड़े खरीदार के रूप में, चीन ने पिछले साल 10.9 करोड़ टन कच्चा तेल आयात किया, जो उसके कुल ऊर्जा आयात का लगभग 20 प्रतिशत है। इसके उलट, भारत ने 2024 में 8.8 करोड़ टन रूसी तेल आयात किया, जो उसके कुल ऊर्जा आयात का लगभग 35 प्रतिशत है।
ट्रंप ने पहले ही भारत पर लगाया है 50% टैरिफ
ट्रंप ने हाल ही में रूसी कच्चे तेल के आयात के लिए भारत पर 25 प्रतिशत का अतिरिक्त टैरिफ लगाया है। हालांकि, ट्रंप ने अब तक चीन पर इसी तरह का शुल्क लगाने से परहेज किया है। दरअसल, ट्रंप प्रशासन चीन के साथ एक नाजुक व्यापार युद्धविराम समझौते पर काम कर रहा है। ऐसे में ट्रंप को डर है कि चीन पर टैरिफ लगाने से उनका यह समझौता अधर में लटक जाएगा, जिसका सीधा असर अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। एक दिन पहले ही अमेरिका ने टिकटॉक पर चीन की शर्तों को स्वीकार कर लिया है और शुक्रवार को डोनाल्ड ट्रंप चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से बात करने वाले हैं।
यूरोप पर और दबाव डाल रहे ट्रंप
फरवरी 2022 में मास्को के यूक्रेन पर बड़े पैमाने पर आक्रमण शुरू होने के बाद से यूरोप की रूसी ऊर्जा पर निर्भरता कम हो गई है। उस समय, यूरोपीय संघ अपनी प्राकृतिक गैस का 45 प्रतिशत रूस से आयात करता था। इस वर्ष यह घटकर केवल 13 प्रतिशत रहने की उम्मीद है। लेकिन ट्रम्प चाहते हैं कि यूरोप और अधिक प्रयास करे। अमेरिकी राष्ट्रपति का यह अनुरोध नाटो और रूस के बीच बढ़ते तनाव के बीच आया है। पिछले बुधवार को एक दर्जन से अधिक रूसी ड्रोन पोलिश हवाई क्षेत्र में घुसे और शनिवार को एक ने रोमानियाई हवाई क्षेत्र में प्रवेश किया। पोलैंड और रोमानिया दोनों नाटो के सदस्य हैं।
क्या यूरोपीय संघ भारत पर आसानी से प्रतिबंध लगा सकता है?
भारत और यूरोपीय संघ करीबी व्यापारिक साझेदार हैं। 2024 में, यूरोपीय संघ का भारत के साथ वस्तु व्यापार घाटा – मुख्यतः इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों, दवाओं और लोहा व इस्पात जैसी मूल धातुओं के रूप में – 22.5 बिलियन यूरो ($26 बिलियन) था। यूरोप इन आयात को लेकर भारत पर निर्भर है। ऐसे में अगर यूरोपीय संघ 50 से 100 प्रतिशत की टैरिफ लगाता है तो विनिर्माण बाधित होगा, उत्पादन लागत बढ़ेगी और पूरे यूरोपीय संघ में उपभोक्ता कीमतें बढ़ेंगी, यही कारण है कि यूरोपीय संघ एकतरफा दंडात्मक टैरिफ अपनाने से सावधान रहेगा।
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