पटना: मोकामा में दुलारचंद यादव हत्याकांड के बाद बिहार की राजनीति का 'रक्तचरित्र' फिर से दिखा है। लेकिन आप जान लीजिए कि बिहार में राजनीति का अपराधीकरण 1980 के दशक में ही शुरू हो गया था। बंदूक थामने वाले लोगों ने खादी पहन ली तो राजनीति के रक्तरंजित होते देर न लगी। राजनीति में भ्रष्टाचार और दुराचार के कारण भी खादी खून से लाल हुई। 1998 ऐसा साल था जब बिहार के तीन सीटिंग विधायकों की हत्या हुई थी। देवेन्द्र नाथ दुबे, बृज बिहारी प्रसाद और अजीत सरकार। बृज बिहारी प्रसाद और अजीत सरकार की हत्या तो 24 घंटे के अंदर ही कर दी गई थी। भाजपा विधायक राजकिशोर केसरी की हत्या अन्य कारणों से 2011 में हुई थी। इन चारों की हत्या सदन के सदस्य रहते हुई। वीर बहादुर सिंह जब 1985 में चुनाव हार गये तब आपसी रंजिश में उन्हें गोलियों से भून दिया गया था। पेश है बिहार के टॉप 5 पॉलिटिकल मर्डर की कहानी।
बिहार के पहले बाहुबली विधायक
वीर बहादुर सिंह बक्सर जिले के बगेन गांव के बड़े जोतदार थे। जब नक्सलियों ने उनके पिता की हत्या कर दी, तब वीर बहादुर सिंह ने भी हथियार उठा लिया। शुरू में उन्होंने नक्सलियों से लड़ने के लिए हथियार उठाया लेकिन जल्द ही वे जातीय नेता के रूप में मशहूर होने लगे। आरोप लगा कि वे 50 से अधिक नक्सलियों की हत्या में शामिल रहे। उन्हें जेल भी जाना पड़ा। तब उनका 'अपने इलाके' में नाम हो चुका था। इस बीच 1977 का विधानसभा चुनाव आ गया। वे जगदीशपुर विधानसभा सीट से निर्दलीय खड़े हुए। लेकिन करीब चार हजार वोटों से हार गए। लेकिन 1980 में निर्दलीय चुनाव जीत गये। विधायक बने तो राजपूत समाज में उनकी इज्जत और बढ़ गयी, बाहुबली तो पहले से ही थे। पूरे भोजपुर में उनका दबदबा कायम हो गया। वीर बहादुर सिंह की ताकत और उनके रुतबे को देख कर उनकी जाति के कुछ और लोग उनके जैसा बनने की कोशिश करने लगे।
चुनाव हारने के बाद हुई हत्या
1985 में जब वीर बहुदुर सिंह चुनाव हार गये तो कुछ उनके स्वजातीय लोगों ने इसे अपने लिए मौका मान लिया। मई 1987 में उनकी ही जाति के गुप्तेश्वर सिंह ने एक पंचायती के सिलसिले में वीर बहादुर सिंह को अपने गांव करथ (भोजपुर) बुलाया। गुप्तेश्वर सिंह भी विधायक बनना चाहते थे। करथ गांव में अचानक वीर बहादुर सिंह का गुप्तेश्वर सिंह से किसी बात पर विवाद हो गया। जिसकी नतीजा ये हुआ कि वीर बहादुर सिंह को गोलियों से भून दिया गया। ये एक बड़ी राजनीतिक हत्या थी, जिसने भोजपुर जिले को हिला कर रख दिया। हत्या का आरोप गुप्तेश्वर सिंह और उनके समर्थकों पर लगा। कहा जाता है कि इस हत्या की एक वजह गुप्तेश्वर सिंह की राजनीतिक महत्वाकांक्षा थी।
देवेन्द्र नाथ दुबे गोविंदगंज के विधायक
देवेन्द्र नाथ दुबे पश्चिम चम्पारण के टिकुलिया गांव के रहने वाले थे। उनके पिता सिपाही थे। वे पढ़ने में बहुत तेज थे। पिता इंजीनियर बनाना चाहते थे। लेकिन किस्मत में तो कुछ और लिखा था। 1989 की बात है। जब वे कॉलेज में पढ़ रहे थे तब कुछ लड़कों ने लड़कियों से बदसलूकी कर दी। ये छात्राएं देवेन्द्र नाथ दुबे की दूर की रिश्तेदार थीं। उन्होंने इसका विरोध किया। ये विवाद इतना बढ़ गया कि बात खून खराबे तक पहुंच गयी। जिन लड़कों ने छेड़खानी की थी उनकी हत्या कर दी गई। हत्या का आरोप देवेन्द्र दुबे पर लगा।
देवेन्द्र दुबे की गिरफ्तारी
1991 में देवेन्द्र दुबे को पुलिस ने असम से गिरफ्तार किया। उन्हें मोतिहारी जेल में रखा गया। जिन तीन लोगों की हत्या हुई थी उनमें से एक का भाई विनोद सिंह तब तक मोतिहारी का दबंग बन चुका था। देवेन्द्र नाथ दुबे जेल से ही अपने गिरोह का संचालन करने लगे। उनका संपर्क उत्तर प्रदेश के डॉन श्रीप्रकाश शुक्ल से भी हो गया था। इसकी वजह से देवेन्द्र दुबे, विनोद सिंह गैंग पर भारी पड़ने लगे। कुछ ही दिनों में देवेन्द्र दुबे अपने इलाके में रॉबिनहुड के रूप में मशहूर हो गये।
देवेन्द्र दुबे पर हमला
1994 में देवेन्द्र दुबे जेल से कोर्ट में पेशी के लिए आये थे। तभी विरोधी गैंग के शूटर ने उन पर गोलीबारी कर दी। दुबे बुरी तरह जख्मी हो गये। उन्हें विशेष इलाज के लिए पटना रेफर कर दिया गया। पटना में इलाज के दौरान कुछ नेताओं से परिचय हुआ। 1994 में ही नीतीश कुमार ने लालू यादव से अलग हो कर समता पार्टी बनायी थी। समता पार्टी के एक नेता ने नीतीश कुमार को देवेन्द्र दुबे के बारे में बताया।
नीतीश ने बनाया प्रत्याशी फिर मुकर गये
1995 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार जिताऊ उम्मीदवारों की खोज में थे। इसी खोज में देवेन्द्र दुबे की भी किस्मत चमक गयी। गोविंदगंज से उन्हें समता पार्टी का टिकट मिल गया। उन्होंने नामांकन भी कर दिया। इस बीच नीतीश कुमार की आलोचना होने लगी कि उन्होंने चुनाव जीतने के लिए एक आपराधिक छवि व्यक्ति को अपना उम्मीदवार बनाया है। तब नैतिक दबाव में आ कर नीतीश कुमार ने घोषणा कर दी कि देवेन्द्र दुबे समता पार्टी के उम्मीदवार नहीं हैं।
1995 में देवेन्द्र दुबे बने विधायक
लेकिन तब तक समता पार्टी के सिंबल के साथ उनका नामांकन स्वीकार हो चुका था और नाम वापस लेने की तारीख भी खत्म हो गयी थी। देवेन्द्र दुबे जेल में थे। चुनाव का नतीजा आया तो देवेन्द्र दुबे ने जनता दल के सीटिंग विधायक को करीब 14 हजार वोटों से हरा दिया। चुनाव जीतने के बाद दुबे के लिए असमंजस की स्थिति हो गयी। समता पार्टी ने उन्हें स्वीकार नहीं किया। इसकी वजह से उन्हें सदन में निर्दलीय विधायक के रूप में मान्यता मिली।
लोकसभा चुनाव के दिन विधायक की हत्या
22 फरवरी 1998 को बिहार में लोकसभा के दूसरे चरण का मतदान था। वोटिंग चल रही थी। गोविंदगंज के विधायक देवेंद्र दुबे कार में बैठ कर किसी का इंतजार कर रहे थे। उन्होंने किसी को मिलने के लिए बुलाया था। तभी अचानक आधुनिक हथियारों से लैस हमलावरों ने उनकी कार पर गोलियों की बौछार कर दी। दिनदहाड़े एक विधायक की हत्या हो गयी। आरोप लगा कि बिहार सरकार के मंत्री बृजबिहारी प्रसाद के इशारे पर विनोद सिंह ने इस घटना को अंजाम दिया। विधायक की हत्या के बाद गोविंदगंज की सीट खाली हुई तो उपचुनाव में देवेन्द्र दुबे के भाई भूपेन्द्र नाथ दुबे खड़े हुए। भूपेन्द्र दुबे भी विधायक बने।
चुनाव प्रचार से लौट रहे छोटन शुक्ला ही हत्या
दिसम्बर 1994 में छोटन शुक्ला चुनाव प्रचार कर मुजफ्फरपुर लौट रहे थे। इसी दोरान उनकी हत्या कर दी गयी। जिस इलाके में छोटन शुक्ला की हत्या हुई वह बृज बिहारी प्रसाद का था। इस हत्या का आरोप बिहार सरकार के मंत्री बृज बिहारी प्रसाद पर लगा। छोटन शुक्ला की हत्या के बाद छोटे भाई भुटकुन शुक्ला ने गिरोह की कमान संभाली। कहा जाता है कि बृजबिहारी प्रसाद ने भुटकुन शुक्ला के अंगरक्षक को मनमाना पैसा देकर अपने साथ मिला लिया था। इसी अंगरक्षक ने भुटकुन शुक्ला की हत्या कर दी। तब सबसे छोटे भाई मुन्ना शुक्ला ने अपने दो भाइयों की हत्या का बदला लेने की कसम खायी। इसके बाद फरवरी 1998 में छोटन शुक्ला के दोस्त और गोविंदगंज के विधायक देवेन्द्र नाथ दुबे की हत्या हो गयी। इस हत्या का भी आरोप भी बृज बिहारी प्रसाद पर लगा। देवेन्द्र दुबे के परिवार ने भी इस हत्या का बदला लेने की सौगंध उठायी।
बृज बिहारी प्रसाद 1990 में विधायक बने
बृज बिहारी प्रसाद लालू यादव के करीब थे। 1990 में लालू यादव ने उन्हें आदापुर विधानसभा सीट से जनता दल का उम्मीदवार बनाया था। चुनाव जीत कर वे विधायक बने । लालू यादव ने उन्हें मंत्री भी बना दिया। बृज बिहारी जब मुजफ्फरपुर में पढ़ते थे तभी से उनकी भूमिहार दबंग छोटन शुक्ला से अदावत चल रही थी। 1995 का विधानसभा चुनाव होने वाला था। वैशाली लोकसभा उप चुनाव जीतने के बाद भूमिहार दबंग छोटन शुक्ला और राजपूत दबंग आनंद मोहन में गहरी दोस्ती हो चुकी थी। आनंद मोहन ने अपनी पार्टी (बिहार पीपुल्स पार्टी) से छोटन शुक्ला को केसरिया विधानसभा सीट से उम्मीदवार बना दिया।
मंत्री बृज बिहारी प्रसाद की हत्या
इस बीच बिहार सरकार के मंत्री बृज बिहारी प्रसाद इंजीनियरिंग एडमिशन घोटाला में गिरफ्तार हो कर जेल चले गये। गिरफ्तारी के बाद भी उन्होंने मंत्री पद से इस्तीफा नहीं दिया था। उनकी सरकार थी। इलाज के बहाने पटना के आईजीआईएमएस अस्पताल में भर्ती हो गये। अस्पताल के कमरे को ही कैंप जेल मान लिया गया। 13 जून 1998 को बृज बिहारी प्रसाद रोज की तरह शाम छह बजे अपने कमरे से बाहर निकल कर टहल रहे थे। टहलने के बाद वे अस्पताल के अपने कमरे की तरफ लौट रहे थे। तभी एक एम्बेसडर और सूमो गाड़ी वहां पहुंची। गाड़ी में सवार हमलावरों ने आधुनिक हथियारों से बृज बिहारी प्रसाद पर गोलियां बरसानी शुरू कर दीं। बृज बिहारी के सुरक्षा गार्ड ने गोलियां चला कर बचाने की कोशिश की लेकिन वह कामयाब नहीं हुआ। अस्पताल जैसी व्यस्त जगह पर एक मंत्री की हत्या से पूरे बिहार में हड़कंप मंच गया।
पूर्व विधायक को उम्रकैद की सजा
26 साल बाद 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने बृज बिहारी प्रसाद हत्याकांड में अपना फैसला सुनाया। इस मामले में शीर्ष अदालत ने पूर्व विधायक और अब राजद नेता मुन्ना शुक्ला और मंटू तिवारी की उम्र कैद की सजा बरकरार रखी। पूर्व सांसद सूरजभान सिंह और अन्य को कोर्ट ने सबूत के अभाव में बरी कर दिया था। मुन्ना शुक्ला की पुत्री शिवानी शुक्ला लालगंज से राजद के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं।
विधायक अजीत सरकार की हत्या
14 जून 1998 को पूर्णिया में सीपीएम विधायक अजीत सरकार शाम को शहर में घूम रहे थे। तभी उन्हें हथियारबंद अपराधियों ने घेर लिया। काफी देर तक उन पर गोलियों की बौछार की गयी। अजीत सरकार समेत कुल तीन लोग इस गोलीबारी में मारे गये थे। पोस्टमार्टम के बाद चला कि अजीत सरकार को करीब 107 गोलियां मारी गयीं थीं। इससे साफ हो गया कि हत्या करने वाला विधायक अजीत सरकार से बेहद नफरत करता था।
पप्पू यादव को पहले उम्रकैद फिर रिहाई
अजीत सरकार 1980, 1985, 1990 और 1995 में पूर्णिया से लगातार 4 बार विधायक चुने गये थे। इस हत्याकांड में पप्पू यादव ( मौजूदा सांसद), राजन तिवारी (पूर्व विधायक) समेत पांच लोगों को आरोपी बनाया गया था। 1999 में पप्पू यादव की इस मामले में गिरफ्तारी हुई थी। 2008 में निचली अदालत ने पप्पू यादव को उम्रकैद की सजा सुनायी थी। इसकी वजह से वे 2009 का लोकसभा चुनाव नहीं लड़ सके थे। लेकिन 2013 में पटना हाईकोर्ट ने पप्पू यादव को सबूत के अभाव में इस मामले से बरी कर दिया था।
विधायक राजकिशोर केसरी की हत्या
4 जनवरी 2011 की सुबह पूर्णिया के भाजपा विधायक अपने आवास पर लोगों से मुलाकात कर रहे थे। जाड़े का समय था। तभी एक महिला अचानक वहां पहुंची। उसने शॉल ओढ़ रखी थी और उसके अंदर एक चाकू छिपा रखा था। वह जैसे ही विधायक राज किशोर केसरी के पास पहुंची उसने चाकू निकाल कर उन पर ताबड़तोड़ हमला कर दिया। जब तक उस महिला को पकड़ा जाता तब तक विधायक लहूलुहान हो कर गिर पड़े थे। बहुत ज्यादा खून निकल चुका था। इस हमले में राजकिशोर केसरी की मौत हो गयी। हमलावर महिला एक निजी स्कूल की शिक्षिका थी।
हत्या की आरोपी महिला को उम्रकैद
महिला ने 2010 में विधायक और उनके एक सहयोगी के खिलाफ बलात्कार का मामला दर्ज कराया था। उसका आरोप था कि पिछले तीन साल से उसका शोषण हो रहा है। इस आरोप को विधायक राजकिशोर केसरी ने विरोधियों की साजिश बताया था। कहा जाता है कि जब इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं हुई तो महिला ने बदला लेने के इरादे से राजकिशोर की हत्या की थी। हत्या के बाद जब पुलिस ने महिला को कोर्ट में पेश किया तो वह अपने आरोपों पर कायम नहीं रह सकी। अब यह महिला विधायक की हत्या के आरोप में उम्रकैद की सजा काट रही है
बिहार के पहले बाहुबली विधायक
वीर बहादुर सिंह बक्सर जिले के बगेन गांव के बड़े जोतदार थे। जब नक्सलियों ने उनके पिता की हत्या कर दी, तब वीर बहादुर सिंह ने भी हथियार उठा लिया। शुरू में उन्होंने नक्सलियों से लड़ने के लिए हथियार उठाया लेकिन जल्द ही वे जातीय नेता के रूप में मशहूर होने लगे। आरोप लगा कि वे 50 से अधिक नक्सलियों की हत्या में शामिल रहे। उन्हें जेल भी जाना पड़ा। तब उनका 'अपने इलाके' में नाम हो चुका था। इस बीच 1977 का विधानसभा चुनाव आ गया। वे जगदीशपुर विधानसभा सीट से निर्दलीय खड़े हुए। लेकिन करीब चार हजार वोटों से हार गए। लेकिन 1980 में निर्दलीय चुनाव जीत गये। विधायक बने तो राजपूत समाज में उनकी इज्जत और बढ़ गयी, बाहुबली तो पहले से ही थे। पूरे भोजपुर में उनका दबदबा कायम हो गया। वीर बहादुर सिंह की ताकत और उनके रुतबे को देख कर उनकी जाति के कुछ और लोग उनके जैसा बनने की कोशिश करने लगे।
चुनाव हारने के बाद हुई हत्या
1985 में जब वीर बहुदुर सिंह चुनाव हार गये तो कुछ उनके स्वजातीय लोगों ने इसे अपने लिए मौका मान लिया। मई 1987 में उनकी ही जाति के गुप्तेश्वर सिंह ने एक पंचायती के सिलसिले में वीर बहादुर सिंह को अपने गांव करथ (भोजपुर) बुलाया। गुप्तेश्वर सिंह भी विधायक बनना चाहते थे। करथ गांव में अचानक वीर बहादुर सिंह का गुप्तेश्वर सिंह से किसी बात पर विवाद हो गया। जिसकी नतीजा ये हुआ कि वीर बहादुर सिंह को गोलियों से भून दिया गया। ये एक बड़ी राजनीतिक हत्या थी, जिसने भोजपुर जिले को हिला कर रख दिया। हत्या का आरोप गुप्तेश्वर सिंह और उनके समर्थकों पर लगा। कहा जाता है कि इस हत्या की एक वजह गुप्तेश्वर सिंह की राजनीतिक महत्वाकांक्षा थी।
देवेन्द्र नाथ दुबे गोविंदगंज के विधायक
देवेन्द्र नाथ दुबे पश्चिम चम्पारण के टिकुलिया गांव के रहने वाले थे। उनके पिता सिपाही थे। वे पढ़ने में बहुत तेज थे। पिता इंजीनियर बनाना चाहते थे। लेकिन किस्मत में तो कुछ और लिखा था। 1989 की बात है। जब वे कॉलेज में पढ़ रहे थे तब कुछ लड़कों ने लड़कियों से बदसलूकी कर दी। ये छात्राएं देवेन्द्र नाथ दुबे की दूर की रिश्तेदार थीं। उन्होंने इसका विरोध किया। ये विवाद इतना बढ़ गया कि बात खून खराबे तक पहुंच गयी। जिन लड़कों ने छेड़खानी की थी उनकी हत्या कर दी गई। हत्या का आरोप देवेन्द्र दुबे पर लगा।
देवेन्द्र दुबे की गिरफ्तारी
1991 में देवेन्द्र दुबे को पुलिस ने असम से गिरफ्तार किया। उन्हें मोतिहारी जेल में रखा गया। जिन तीन लोगों की हत्या हुई थी उनमें से एक का भाई विनोद सिंह तब तक मोतिहारी का दबंग बन चुका था। देवेन्द्र नाथ दुबे जेल से ही अपने गिरोह का संचालन करने लगे। उनका संपर्क उत्तर प्रदेश के डॉन श्रीप्रकाश शुक्ल से भी हो गया था। इसकी वजह से देवेन्द्र दुबे, विनोद सिंह गैंग पर भारी पड़ने लगे। कुछ ही दिनों में देवेन्द्र दुबे अपने इलाके में रॉबिनहुड के रूप में मशहूर हो गये।
देवेन्द्र दुबे पर हमला
1994 में देवेन्द्र दुबे जेल से कोर्ट में पेशी के लिए आये थे। तभी विरोधी गैंग के शूटर ने उन पर गोलीबारी कर दी। दुबे बुरी तरह जख्मी हो गये। उन्हें विशेष इलाज के लिए पटना रेफर कर दिया गया। पटना में इलाज के दौरान कुछ नेताओं से परिचय हुआ। 1994 में ही नीतीश कुमार ने लालू यादव से अलग हो कर समता पार्टी बनायी थी। समता पार्टी के एक नेता ने नीतीश कुमार को देवेन्द्र दुबे के बारे में बताया।
नीतीश ने बनाया प्रत्याशी फिर मुकर गये
1995 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार जिताऊ उम्मीदवारों की खोज में थे। इसी खोज में देवेन्द्र दुबे की भी किस्मत चमक गयी। गोविंदगंज से उन्हें समता पार्टी का टिकट मिल गया। उन्होंने नामांकन भी कर दिया। इस बीच नीतीश कुमार की आलोचना होने लगी कि उन्होंने चुनाव जीतने के लिए एक आपराधिक छवि व्यक्ति को अपना उम्मीदवार बनाया है। तब नैतिक दबाव में आ कर नीतीश कुमार ने घोषणा कर दी कि देवेन्द्र दुबे समता पार्टी के उम्मीदवार नहीं हैं।
1995 में देवेन्द्र दुबे बने विधायक
लेकिन तब तक समता पार्टी के सिंबल के साथ उनका नामांकन स्वीकार हो चुका था और नाम वापस लेने की तारीख भी खत्म हो गयी थी। देवेन्द्र दुबे जेल में थे। चुनाव का नतीजा आया तो देवेन्द्र दुबे ने जनता दल के सीटिंग विधायक को करीब 14 हजार वोटों से हरा दिया। चुनाव जीतने के बाद दुबे के लिए असमंजस की स्थिति हो गयी। समता पार्टी ने उन्हें स्वीकार नहीं किया। इसकी वजह से उन्हें सदन में निर्दलीय विधायक के रूप में मान्यता मिली।
लोकसभा चुनाव के दिन विधायक की हत्या
22 फरवरी 1998 को बिहार में लोकसभा के दूसरे चरण का मतदान था। वोटिंग चल रही थी। गोविंदगंज के विधायक देवेंद्र दुबे कार में बैठ कर किसी का इंतजार कर रहे थे। उन्होंने किसी को मिलने के लिए बुलाया था। तभी अचानक आधुनिक हथियारों से लैस हमलावरों ने उनकी कार पर गोलियों की बौछार कर दी। दिनदहाड़े एक विधायक की हत्या हो गयी। आरोप लगा कि बिहार सरकार के मंत्री बृजबिहारी प्रसाद के इशारे पर विनोद सिंह ने इस घटना को अंजाम दिया। विधायक की हत्या के बाद गोविंदगंज की सीट खाली हुई तो उपचुनाव में देवेन्द्र दुबे के भाई भूपेन्द्र नाथ दुबे खड़े हुए। भूपेन्द्र दुबे भी विधायक बने।
चुनाव प्रचार से लौट रहे छोटन शुक्ला ही हत्या
दिसम्बर 1994 में छोटन शुक्ला चुनाव प्रचार कर मुजफ्फरपुर लौट रहे थे। इसी दोरान उनकी हत्या कर दी गयी। जिस इलाके में छोटन शुक्ला की हत्या हुई वह बृज बिहारी प्रसाद का था। इस हत्या का आरोप बिहार सरकार के मंत्री बृज बिहारी प्रसाद पर लगा। छोटन शुक्ला की हत्या के बाद छोटे भाई भुटकुन शुक्ला ने गिरोह की कमान संभाली। कहा जाता है कि बृजबिहारी प्रसाद ने भुटकुन शुक्ला के अंगरक्षक को मनमाना पैसा देकर अपने साथ मिला लिया था। इसी अंगरक्षक ने भुटकुन शुक्ला की हत्या कर दी। तब सबसे छोटे भाई मुन्ना शुक्ला ने अपने दो भाइयों की हत्या का बदला लेने की कसम खायी। इसके बाद फरवरी 1998 में छोटन शुक्ला के दोस्त और गोविंदगंज के विधायक देवेन्द्र नाथ दुबे की हत्या हो गयी। इस हत्या का भी आरोप भी बृज बिहारी प्रसाद पर लगा। देवेन्द्र दुबे के परिवार ने भी इस हत्या का बदला लेने की सौगंध उठायी।
बृज बिहारी प्रसाद 1990 में विधायक बने
बृज बिहारी प्रसाद लालू यादव के करीब थे। 1990 में लालू यादव ने उन्हें आदापुर विधानसभा सीट से जनता दल का उम्मीदवार बनाया था। चुनाव जीत कर वे विधायक बने । लालू यादव ने उन्हें मंत्री भी बना दिया। बृज बिहारी जब मुजफ्फरपुर में पढ़ते थे तभी से उनकी भूमिहार दबंग छोटन शुक्ला से अदावत चल रही थी। 1995 का विधानसभा चुनाव होने वाला था। वैशाली लोकसभा उप चुनाव जीतने के बाद भूमिहार दबंग छोटन शुक्ला और राजपूत दबंग आनंद मोहन में गहरी दोस्ती हो चुकी थी। आनंद मोहन ने अपनी पार्टी (बिहार पीपुल्स पार्टी) से छोटन शुक्ला को केसरिया विधानसभा सीट से उम्मीदवार बना दिया।
मंत्री बृज बिहारी प्रसाद की हत्या
इस बीच बिहार सरकार के मंत्री बृज बिहारी प्रसाद इंजीनियरिंग एडमिशन घोटाला में गिरफ्तार हो कर जेल चले गये। गिरफ्तारी के बाद भी उन्होंने मंत्री पद से इस्तीफा नहीं दिया था। उनकी सरकार थी। इलाज के बहाने पटना के आईजीआईएमएस अस्पताल में भर्ती हो गये। अस्पताल के कमरे को ही कैंप जेल मान लिया गया। 13 जून 1998 को बृज बिहारी प्रसाद रोज की तरह शाम छह बजे अपने कमरे से बाहर निकल कर टहल रहे थे। टहलने के बाद वे अस्पताल के अपने कमरे की तरफ लौट रहे थे। तभी एक एम्बेसडर और सूमो गाड़ी वहां पहुंची। गाड़ी में सवार हमलावरों ने आधुनिक हथियारों से बृज बिहारी प्रसाद पर गोलियां बरसानी शुरू कर दीं। बृज बिहारी के सुरक्षा गार्ड ने गोलियां चला कर बचाने की कोशिश की लेकिन वह कामयाब नहीं हुआ। अस्पताल जैसी व्यस्त जगह पर एक मंत्री की हत्या से पूरे बिहार में हड़कंप मंच गया।
पूर्व विधायक को उम्रकैद की सजा
26 साल बाद 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने बृज बिहारी प्रसाद हत्याकांड में अपना फैसला सुनाया। इस मामले में शीर्ष अदालत ने पूर्व विधायक और अब राजद नेता मुन्ना शुक्ला और मंटू तिवारी की उम्र कैद की सजा बरकरार रखी। पूर्व सांसद सूरजभान सिंह और अन्य को कोर्ट ने सबूत के अभाव में बरी कर दिया था। मुन्ना शुक्ला की पुत्री शिवानी शुक्ला लालगंज से राजद के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं।
विधायक अजीत सरकार की हत्या
14 जून 1998 को पूर्णिया में सीपीएम विधायक अजीत सरकार शाम को शहर में घूम रहे थे। तभी उन्हें हथियारबंद अपराधियों ने घेर लिया। काफी देर तक उन पर गोलियों की बौछार की गयी। अजीत सरकार समेत कुल तीन लोग इस गोलीबारी में मारे गये थे। पोस्टमार्टम के बाद चला कि अजीत सरकार को करीब 107 गोलियां मारी गयीं थीं। इससे साफ हो गया कि हत्या करने वाला विधायक अजीत सरकार से बेहद नफरत करता था।
पप्पू यादव को पहले उम्रकैद फिर रिहाई
अजीत सरकार 1980, 1985, 1990 और 1995 में पूर्णिया से लगातार 4 बार विधायक चुने गये थे। इस हत्याकांड में पप्पू यादव ( मौजूदा सांसद), राजन तिवारी (पूर्व विधायक) समेत पांच लोगों को आरोपी बनाया गया था। 1999 में पप्पू यादव की इस मामले में गिरफ्तारी हुई थी। 2008 में निचली अदालत ने पप्पू यादव को उम्रकैद की सजा सुनायी थी। इसकी वजह से वे 2009 का लोकसभा चुनाव नहीं लड़ सके थे। लेकिन 2013 में पटना हाईकोर्ट ने पप्पू यादव को सबूत के अभाव में इस मामले से बरी कर दिया था।
विधायक राजकिशोर केसरी की हत्या
4 जनवरी 2011 की सुबह पूर्णिया के भाजपा विधायक अपने आवास पर लोगों से मुलाकात कर रहे थे। जाड़े का समय था। तभी एक महिला अचानक वहां पहुंची। उसने शॉल ओढ़ रखी थी और उसके अंदर एक चाकू छिपा रखा था। वह जैसे ही विधायक राज किशोर केसरी के पास पहुंची उसने चाकू निकाल कर उन पर ताबड़तोड़ हमला कर दिया। जब तक उस महिला को पकड़ा जाता तब तक विधायक लहूलुहान हो कर गिर पड़े थे। बहुत ज्यादा खून निकल चुका था। इस हमले में राजकिशोर केसरी की मौत हो गयी। हमलावर महिला एक निजी स्कूल की शिक्षिका थी।
हत्या की आरोपी महिला को उम्रकैद
महिला ने 2010 में विधायक और उनके एक सहयोगी के खिलाफ बलात्कार का मामला दर्ज कराया था। उसका आरोप था कि पिछले तीन साल से उसका शोषण हो रहा है। इस आरोप को विधायक राजकिशोर केसरी ने विरोधियों की साजिश बताया था। कहा जाता है कि जब इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं हुई तो महिला ने बदला लेने के इरादे से राजकिशोर की हत्या की थी। हत्या के बाद जब पुलिस ने महिला को कोर्ट में पेश किया तो वह अपने आरोपों पर कायम नहीं रह सकी। अब यह महिला विधायक की हत्या के आरोप में उम्रकैद की सजा काट रही है
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