नई दिल्ली: लाल किला के पास हुए धमाके से कुछ ही घंटे पहले हरियाणा और जम्मू-कश्मीर पुलिस ने फरीदाबाद मॉड्यूल का पर्दाफाश किया था, जिसमें कई डॉक्टरों के शामिल होने की वजह से इसे 'व्हाइट कॉलर टेरर मॉड्यूल' भी कहा जा रहा है। अब ऐसी रिपोर्ट सामने आई है कि फरीदाबाद मॉड्यूल का असली मास्टरमाइंड मौलवी इरफान अहमद है, जो कि जम्मू और कश्मीर के शोपियां का रहने वाला है।
मौलवी इरफान अहमद कौन है?
News18 की एक रिपोर्ट के अनुसार फरीदाबाद आतंकी मॉड्यूल में जितने भी डॉक्टर शामिल हैं, उन सबको मौलवी इरफान ने ही कट्टरपंथी बनाया है। रिपोर्ट के अनुसार खुफिया सूत्रों ने कहा, 'मौलवी इरफान अहमद ने मेडिकल स्टूडेंट्स को कट्टरपंथी बनाने में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वह श्रीनगर के गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज (GMC) में पैरामेडिकल था और सभी स्टूडेंट्स से लगातार संपर्क में था। वह नौगाम मस्जिद का इमाम भी था।'
कैसे बना फरीदाबाद मॉड्यूल?
रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि मौलवी इरफान ने फरीदाबाद के मेडिकल छात्रों को कट्टरपंथी बनाने के लिए काम किया। इनके अनुसार, 'वह जैश-ए-मोहम्मद (JeM) से प्रेरित है और छात्रों को उसके वीडियो दिखाता रहता था। वह अफगानिस्तान में किसी से वीओआईपी (VOIP-Voice over Internet Protocol) पर बातें भी करता था।' जानकारी के अनुसार उसका काम यह सुनिश्चित करना था कि छात्र कट्टर बनें और डॉक्टर मुजम्मिल शकील और डॉक्टर मोहम्मद उमर, इरफान के इसी काम को आगे बढ़ाने में लगे हुए थे। सूत्र ने कहा, 'शाहीन सिर्फ मदद करती थी, लेकिन दिमाग इरफान का था।'
जैश के लिए काम करता था इरफान
मौलवी इरफान अहमद ने टेलीग्राम (Telegram)और थ्रीमा (Threema) पर कई अकाउंट बना रखे थे। इसी के माध्यम से वह जैश-ए-मोहम्मद (JeM) का प्रोपेगेंडा करता था। सूत्र के अनुसार, 'उसने अफगान युद्ध के समय के उपदेश भी चुनिंदा छात्रों को दिखाए थे।' जांचकर्ताओं के अनुसार संदेह है कि उसे अफगानिस्तान के नंगरहार प्रांत से किसी हैंडलर से वैचारिक और मौखिक निर्देश मिलते थे।
जैश के पोस्टर से मिला मौलवी का सुराग
जिसे अब फरीदाबाद मॉड्यूल कहा जा रहा है, उसकी जांच की शुरुआत 27 अक्टूबर को श्रीनगर के नौगाम में आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के समर्थन वाले पोस्टर सामने आने के साथ शुरू हुई थी। इस मामले में पहले तीन ग्राउंड वर्कर धरे गए थे, जो एक जमाने में श्रीनगर में पत्थरबाजी का काम करते थे। उन्होंने ही पुलिस को मौलवी इरफान अहमद तक पहुंचाया। मौलवी से मिली जानकारी के आधार पर पुलिस ने डॉ. अदील अहमद राथर और जमीर अहनगर को गिरफ्तार किया। ये दोनों भी इरफान के ही गुर्गे हैं।
श्रीनगर में सुराग से दिल्ली धमाके तक
इन्हीं से पूछताछ के आधार पर जम्मू और कश्मीर पुलिस डॉ.मुजम्मिल शकील तक पहुंची। यह मौलवी के कमरे से ही अपनी गतिविधियों को अंजाम दे रहा था। मुजम्मिल फरीदाबाद के धौज स्थित अल फलह यूनिवर्सिटी में काम करता है। मौलवी के तार दिल्ली धमाकों के लिए जिम्मेदार माने जा रहे डॉ. मोहम्मद उमर से भी जुड़े हुए थे, जिसके बारे में बताया जा रहा है कि फरीदाबाद मॉड्यूल के पर्दाफाश होने के बाद घबराहट में उसने वारदात को अंजाम दिया। वहीं उत्तर प्रदेश की रहने वाली महिला डॉ. शाहीन सईद फरीदाबाद मॉड्यूल की फाइनेंसर और मददगार के रूप में सामने आ रही है। खुफिया सूत्रों के अनुसार शाहीन, उमर के संपर्क में अल फलह यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान ही आई थी, जहां पर यह मौलवी काफी सक्रिय था।
मौलवी इरफान अहमद कौन है?
News18 की एक रिपोर्ट के अनुसार फरीदाबाद आतंकी मॉड्यूल में जितने भी डॉक्टर शामिल हैं, उन सबको मौलवी इरफान ने ही कट्टरपंथी बनाया है। रिपोर्ट के अनुसार खुफिया सूत्रों ने कहा, 'मौलवी इरफान अहमद ने मेडिकल स्टूडेंट्स को कट्टरपंथी बनाने में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वह श्रीनगर के गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज (GMC) में पैरामेडिकल था और सभी स्टूडेंट्स से लगातार संपर्क में था। वह नौगाम मस्जिद का इमाम भी था।'
कैसे बना फरीदाबाद मॉड्यूल?
रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि मौलवी इरफान ने फरीदाबाद के मेडिकल छात्रों को कट्टरपंथी बनाने के लिए काम किया। इनके अनुसार, 'वह जैश-ए-मोहम्मद (JeM) से प्रेरित है और छात्रों को उसके वीडियो दिखाता रहता था। वह अफगानिस्तान में किसी से वीओआईपी (VOIP-Voice over Internet Protocol) पर बातें भी करता था।' जानकारी के अनुसार उसका काम यह सुनिश्चित करना था कि छात्र कट्टर बनें और डॉक्टर मुजम्मिल शकील और डॉक्टर मोहम्मद उमर, इरफान के इसी काम को आगे बढ़ाने में लगे हुए थे। सूत्र ने कहा, 'शाहीन सिर्फ मदद करती थी, लेकिन दिमाग इरफान का था।'
जैश के लिए काम करता था इरफान
मौलवी इरफान अहमद ने टेलीग्राम (Telegram)और थ्रीमा (Threema) पर कई अकाउंट बना रखे थे। इसी के माध्यम से वह जैश-ए-मोहम्मद (JeM) का प्रोपेगेंडा करता था। सूत्र के अनुसार, 'उसने अफगान युद्ध के समय के उपदेश भी चुनिंदा छात्रों को दिखाए थे।' जांचकर्ताओं के अनुसार संदेह है कि उसे अफगानिस्तान के नंगरहार प्रांत से किसी हैंडलर से वैचारिक और मौखिक निर्देश मिलते थे।
जैश के पोस्टर से मिला मौलवी का सुराग
जिसे अब फरीदाबाद मॉड्यूल कहा जा रहा है, उसकी जांच की शुरुआत 27 अक्टूबर को श्रीनगर के नौगाम में आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के समर्थन वाले पोस्टर सामने आने के साथ शुरू हुई थी। इस मामले में पहले तीन ग्राउंड वर्कर धरे गए थे, जो एक जमाने में श्रीनगर में पत्थरबाजी का काम करते थे। उन्होंने ही पुलिस को मौलवी इरफान अहमद तक पहुंचाया। मौलवी से मिली जानकारी के आधार पर पुलिस ने डॉ. अदील अहमद राथर और जमीर अहनगर को गिरफ्तार किया। ये दोनों भी इरफान के ही गुर्गे हैं।
श्रीनगर में सुराग से दिल्ली धमाके तक
इन्हीं से पूछताछ के आधार पर जम्मू और कश्मीर पुलिस डॉ.मुजम्मिल शकील तक पहुंची। यह मौलवी के कमरे से ही अपनी गतिविधियों को अंजाम दे रहा था। मुजम्मिल फरीदाबाद के धौज स्थित अल फलह यूनिवर्सिटी में काम करता है। मौलवी के तार दिल्ली धमाकों के लिए जिम्मेदार माने जा रहे डॉ. मोहम्मद उमर से भी जुड़े हुए थे, जिसके बारे में बताया जा रहा है कि फरीदाबाद मॉड्यूल के पर्दाफाश होने के बाद घबराहट में उसने वारदात को अंजाम दिया। वहीं उत्तर प्रदेश की रहने वाली महिला डॉ. शाहीन सईद फरीदाबाद मॉड्यूल की फाइनेंसर और मददगार के रूप में सामने आ रही है। खुफिया सूत्रों के अनुसार शाहीन, उमर के संपर्क में अल फलह यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान ही आई थी, जहां पर यह मौलवी काफी सक्रिय था।
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