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पांचवीं बार नीतीशे कुमार, एग्जिट पोल में पीछे रहे तेजस्वी यादव, राहुल गांधी भी निकले फीके, पांच ग्राउंड रिपोर्ट से जानिए

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पटना : बिहार विधानसभा चुनाव के बाद बड़े सवाल के जवाब के संकेत एग्जिट पोल ने दिए। पिछले कई चुनावों में नतीजों के पूर्वानुमानों को लेकर सवालों के घेरे में आए एग्जिट पोल ने बिहार विधानसभा चुनाव की भविष्यवाणी की है। सर्वे करने वाली एजेंसियों ने एक मत से एनडीए की सरकार बनने की भविष्यवाणी की। साथ ही यह तय कर दिया कि नीतीश कुमार 10वीं बार सीएम पद की शपथ ले सकते हैं। 20 साल के शासन के बाद नीतीश कुमार की वापसी से आरजेडी और कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबंधन का इंतजार पांच साल के लिए लंबा हो जाएगा। अगर नतीजे एग्जिट पोल के अनुसार रहे तो राहुल गांधी के एक और नैरेटिव वोट चोरी भी खारिज हो जाएगा।


जानिए क्या है एग्जिट पोल का नतीजा

बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर एग्जिट पोल में सर्वे करने वाली मैट्रिज - आईएएनएस ने 48 प्रतिशत वोटों के सात एनडीए को 147 से 167 सीटें दी हैं। बीजेपी को 65-73 और जेडी यू को भी 75 से ज्यादा सीटें दी गई हैं। महागठबंधन को 37 प्रतिशत वोट मिलने की संभावना जताई गई है। आरजेडी को 53-58 और कांग्रेस 10-12 सीटें मिल सकती है। लेफ्ट के खाते में 9-14 सीटें जा सकती हैं। चाणक्य के पूर्वानुमान में एनडीए को 130-138 , महागठबंधन को 100-108 सीटें मिलने की भविष्यवाणी की गई है।

पोल स्ट्रेट ने भी एनडीए को 133-148 और महागठबंधन को 87-102 सीटें दी हैं। पोल डायरी ने रिजल्ट को एकतरफा बताते हुए एनडीए को 184-209 औरआरजेडी-कांग्रेस की महागठबंधन को 50 सीटें देने का अनुमान लगाया है। इस चुनाव में कई नई एजेंसियां सामने आईं। प्रजा पोल ने भी एनडीए को एकतरफा 186 सीटें दे दीं। औसत के हिसाब से एनडीए 150 सीटें जीत सकती है जबकि महागठबंधन को 85-90 सीटों पर जीत मिलेगी।


वादे पर भारी पड़ा हाथ वाला कैश
चुनाव के नतीजे 14 नवंबर को आएंगे। एग्जिट पोल ने जनता के रुझान को सामने रखा है। सभी एग्जिट पोल में महागठबंधन की हार और एनडीए की बढ़त उन तथ्यों को इशारा करती हैं,जिसे एनडीए ने बहुत चालाकी से चुनाव से पहले खेल दिया । चुनाव से पहले नीतीश सरकार ने अतिथि शिक्षक, जीविका दीदी समेत महिलाओं को खुश करने के लिए खजाना खोल दिया। यह दांव उसी तरह का था, जैसे झारखंड में हेमंत सोरेन ने मइंया योजना के जरिये किया था। महिला वोटरों ने तेजस्वी के वादे से ज्यादा हाथ में आने में रकम देने वाले राजनीतिक दल यानी जेडी-यू और नीतीश कुमार पर ज्यादा भरोसा किया। झारखंड में भी एनडीए के कैश देने के वादे पर 1000 रुपये की रकम भारी पड़ी थी।

एकजुट रहने का एनडीए को फायदा
बिहार विधानसभा चुनाव में राजनीतिक समीकरण भी एनडीए के साथ है। 2020 के चुनाव में चिराग पासवान ने एनडीए खासकर जेडीयू को तगड़ा झटका दिया था। इस बार एनडीए एकजुट रहने में सफल भी रहा। चिराग और उपेंद्र कुशवाहा के साथ जीतन राम मांझी की मौजूदगी ने एनडीए के पक्ष में माहौल बनाया। दूसरी ओर, महागठबंधन में मुकेश सहनी के डिप्टी सीएम घोषित करने के बाद अन्य जातियों को नाखुश कर दिया। रिपोर्ट्स के मुताबिक, मुसलमान ने गोलबंद होकर महागठबंधन को वोट किया। दूसरी ओर, सवर्ण और महादलितों ने परंपरागत तौर पर बीजेपी और जेडी यू को वोट किया।

पीके फैक्टर भी हुआ फुस्स,कांग्रेस भी बेदम
पीके फैक्टर चुनाव में प्रत्याशियों के ऐलान के बाद ही फुस्स नजर आया। प्रशांत किशोर ने जाति के हिसाब से कैंडिडेट को खड़े किए, मगर वह बिहार में जातीय राजनीति का काट तैयार नहीं कर पाए। इस चुनाव में जनसुराज ने एनडीए और महागठबंधन का बराबर नुकसान किया। पिछले चुनाव में चिराग पासवान ने एनडीए के वोट में सेंध लगाई थी। जातीय राजनीति में प्रशांत किशोर का ब्राह्मण होना जनसुराज के लिए चुनौती हो गई। रही सही कसर असदुद्दीन ओवैसी ने पूरी कर दी। सीमांचल में ओवैसी ने महागठबंधन को बड़ा नुकसान पहुंचाया है। दूसरी ओर, कांग्रेस को ज्यादा सीट देने का नुकसान आरजेडी को उठाना पड़ सकता है, जिसका ग्राउंड पर वोटर और समर्थक नजर नहीं आते।

नीतीश कुमार की छवि आई एनडीए को रास
नीतीश कुमार पूरे चुनाव में मीडिया से दूर मगर जनता के करीब नजर आए। इस चुनाव में नीतीश कुमार ने मीडिया से बात नहीं की और विपक्ष को सीधे हमले का मौका नहीं दिया। दूसरी ओर महागठबंधन के नेता तेजस्वी यादव पूरे चुनाव में यह आश्वस्त करने में वयस्त रहे कि सरकारी नौकरी जैसे वादों को वह पूरा कर सकते हैं। नीतीश कुमार के खिलाफ विपक्ष भ्रष्टाचार और परिवारवाद जैसे नैरेटिव भी गढ़ पाया। जिन महिलाओं को सरकार की योजनाओं का लाभ मिला, वह वोट के तौर पर रिटर्न करती नजर आईं।


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