पटनाः बिहार एक ऐतिहासिक राज्य है जिसकी गौरवशाली परम्परा रही है। चंद्रगुप्त मौर्य की राजधानी पाटलिपुत्र (पटना) थी। उस समय मौर्य साम्राज्य का विस्तार काबुल, कंधार हेरात और ईरान के कुछ हिस्सों तक था। महात्मा बुद्ध की ज्ञान भूमि बिहार ही है। यहां से निकला बौद्ध धर्म दुनिया के 12 देशों में फैला। बौद्ध काल में बिहार शिक्षा और संस्कृति का विख्यात केन्द्र था। बिहार के दो प्राचीन स्थल यूनेस्को की विश्व सांस्कृतिक विरासत की सूची में शामिल हैं। इससे इनको आधुनिक युग में वैश्विक पहचान मिली। दो स्थल अस्थायी सूची में शामिल हैं। इसके अलावा 2021 में कोलकाता की दुर्गा पूजा को अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के रूप में यूनेस्को की सूची में शामिल किया गया है। इसी तरह बिहार की छठ पूजा को भी यूनेस्को की सूची में शामिल कराये जाने का प्रयास चल रहा है। यह सूची विश्व सांस्कृतिक विरासत से अलग है।
महाबोधि मंदिर, बोधगया
महाबोधि मंदिर बोधगया में स्थित है। इसकी स्थापना ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में महान मौर्य शासक सम्राट अशोक ने की थी।। पांचवी और छठी शताब्दी ईसा पूर्व में गुप्त वंश के राजाओं ने इस मंदिर को भव्य रूप दिया। महात्मा बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति यहीं हुई थी। 2002 में इसे यूनेस्को की विश्व सांस्कृतिक विरासत स्थल की सूची में शामिल किया गया था।
नालंदा विश्वविद्यालय खंडहर
नालंदा विश्वविद्यालय खंडर को 2016 में यूनेस्को की विश्व सांस्कृतिक धरोहर स्थल की सूची में शामिल किया गया था। इसे दुनिया का सबसे पुराना विश्वविद्यालय माना जाता है। यह एक अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय था। इसका निर्माण कुमार गुप्त ने ईसा पूर्व पांचवी शताब्दी में कराया था। गुप्त वंश के पतन के बाद आने वाले शासकों ने भी इस विश्वविद्यालय को समृद्ध और विकसित किया। इस विश्वविद्यालय में 10 हजार छात्र और 2 हजार शिक्षक थे। तुर्क आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने 1193 में इस विश्वविद्यालय को जला कर नष्ट कर दिया था। इस विश्वविद्यालय का पुस्तकालय इतना विशाल था कि कई महीने तक पुस्तकें जलती रहीं थीं।
इसके अलावा बिहार के दो प्राचीन धरोहर यूनेस्को की संभावित सूची में शामिल हैं। विश्व सांस्कृतिक धरोहर की सूची में शामिल करने के लिए यूनेस्को ने 10 मानदंड तय कर रखे हैं। इस सूची के लिए नामांकन तभी स्वीकार किये जाते हैं जब वह स्थल या संस्कृति पहले से संभावित सूची में शामिल हो।
यूनेस्को की विश्व सांस्कृतिक धरोहर की संभावित सूची में बिहार
प्राचीन वैशाली के अवशेष
इसे 2016 में यूनेस्को की विश्व धरोहर अस्थायी सूची में शामिल किया गया था। इसे भारत में रेशम मार्ग के तहत इस सूची में शामिल किया गया है। वैशाली का नाम महाभारत काल का राजा विशाल के नाम पर पड़ा। वैशाली को दुनिया का पहला गणतंत्र माना जाता है। महात्मा बुद्ध ने वैशाली नगर को महामारी से बचाने के लिए सात दिनों तक रत्न सुत्त पाठ किया था। कुशीनगर जाने से पहले उन्होंने यही अपने महापरिनिर्वाण की घोषणा की थी। यहां प्रसिद्ध अशोक स्तंभ है। कई बौद्ध स्तूपों के अवशेष आज भी हैं। यह स्थान महात्मा बुद्ध और भगवान महावीर, दोनों से जुड़ा है।
विक्रमशिला प्राचीन विश्वविद्यालय अवशेष, भागलपुर
विक्रमशिला प्राचीन विश्वविद्यालय का निर्माण पाल वंश के राजा धर्मपाल ने आठवीं शताब्दी के अंत में शुरू किया था। इसका निर्माण और विकास नौवीं शताब्दी के आरंभिक वर्षों तक जारी रहा। 13वीं शताब्दी तक यह विश्वविद्यालय फलता फूलता रहा। यहं प्रवेश परीक्षा के आधार पर नामांकन होता था। यह एक अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय था। यहां बौद्ध धर्म, दर्शन, व्याकरण, तंत्र, मीमांसा, तर्क शास्त्र की पढाई होती थी। 12वी शताब्दी में करीब 3 हजार छात्र यहां पढ़ाई करते थे। 1202-03 में बख्तियार खिलजी की सेना ने इस विश्वविद्यालय को भी नष्ट कर दिया था। इस विश्वविद्यालय को रेशम मार्ग के तहत यूनेस्को की संभावित सूची में शामिल किया गया है।
महाबोधि मंदिर, बोधगया
महाबोधि मंदिर बोधगया में स्थित है। इसकी स्थापना ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में महान मौर्य शासक सम्राट अशोक ने की थी।। पांचवी और छठी शताब्दी ईसा पूर्व में गुप्त वंश के राजाओं ने इस मंदिर को भव्य रूप दिया। महात्मा बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति यहीं हुई थी। 2002 में इसे यूनेस्को की विश्व सांस्कृतिक विरासत स्थल की सूची में शामिल किया गया था।
नालंदा विश्वविद्यालय खंडहर
नालंदा विश्वविद्यालय खंडर को 2016 में यूनेस्को की विश्व सांस्कृतिक धरोहर स्थल की सूची में शामिल किया गया था। इसे दुनिया का सबसे पुराना विश्वविद्यालय माना जाता है। यह एक अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय था। इसका निर्माण कुमार गुप्त ने ईसा पूर्व पांचवी शताब्दी में कराया था। गुप्त वंश के पतन के बाद आने वाले शासकों ने भी इस विश्वविद्यालय को समृद्ध और विकसित किया। इस विश्वविद्यालय में 10 हजार छात्र और 2 हजार शिक्षक थे। तुर्क आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने 1193 में इस विश्वविद्यालय को जला कर नष्ट कर दिया था। इस विश्वविद्यालय का पुस्तकालय इतना विशाल था कि कई महीने तक पुस्तकें जलती रहीं थीं।
इसके अलावा बिहार के दो प्राचीन धरोहर यूनेस्को की संभावित सूची में शामिल हैं। विश्व सांस्कृतिक धरोहर की सूची में शामिल करने के लिए यूनेस्को ने 10 मानदंड तय कर रखे हैं। इस सूची के लिए नामांकन तभी स्वीकार किये जाते हैं जब वह स्थल या संस्कृति पहले से संभावित सूची में शामिल हो।
यूनेस्को की विश्व सांस्कृतिक धरोहर की संभावित सूची में बिहार
प्राचीन वैशाली के अवशेष
इसे 2016 में यूनेस्को की विश्व धरोहर अस्थायी सूची में शामिल किया गया था। इसे भारत में रेशम मार्ग के तहत इस सूची में शामिल किया गया है। वैशाली का नाम महाभारत काल का राजा विशाल के नाम पर पड़ा। वैशाली को दुनिया का पहला गणतंत्र माना जाता है। महात्मा बुद्ध ने वैशाली नगर को महामारी से बचाने के लिए सात दिनों तक रत्न सुत्त पाठ किया था। कुशीनगर जाने से पहले उन्होंने यही अपने महापरिनिर्वाण की घोषणा की थी। यहां प्रसिद्ध अशोक स्तंभ है। कई बौद्ध स्तूपों के अवशेष आज भी हैं। यह स्थान महात्मा बुद्ध और भगवान महावीर, दोनों से जुड़ा है।
विक्रमशिला प्राचीन विश्वविद्यालय अवशेष, भागलपुर
विक्रमशिला प्राचीन विश्वविद्यालय का निर्माण पाल वंश के राजा धर्मपाल ने आठवीं शताब्दी के अंत में शुरू किया था। इसका निर्माण और विकास नौवीं शताब्दी के आरंभिक वर्षों तक जारी रहा। 13वीं शताब्दी तक यह विश्वविद्यालय फलता फूलता रहा। यहं प्रवेश परीक्षा के आधार पर नामांकन होता था। यह एक अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय था। यहां बौद्ध धर्म, दर्शन, व्याकरण, तंत्र, मीमांसा, तर्क शास्त्र की पढाई होती थी। 12वी शताब्दी में करीब 3 हजार छात्र यहां पढ़ाई करते थे। 1202-03 में बख्तियार खिलजी की सेना ने इस विश्वविद्यालय को भी नष्ट कर दिया था। इस विश्वविद्यालय को रेशम मार्ग के तहत यूनेस्को की संभावित सूची में शामिल किया गया है।
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