नई दिल्ली: पुणे स्थित भारतीय सेना का दक्षिण कमान भारतीय नौ सेना ( Indian Navy ) और भारतीय वायु सेना (Indian Air Force) के साथ मिलकर 'त्रिशूल' के नाम से एक संयुक्त युद्धाभ्यास को अंजाम देने जा रहा है। इस युद्धाभ्यास में क्रीक भी शामिल है और रेगिस्तानी सेक्टर भी, वहीं सौराष्ट्र तट के करीब समंदर में विशेष ऑपरेशन चलाने की भी तैयारी है। बता दें कि हाल ही में ऐसी खबरें आई हैं कि पाकिस्तान सर क्रीक के उस पार फिर से किसी नई साजिश को अंजाम देने में जुटा हुआ है। ऐसे में भारतीय सशस्त्र सेना का यह संयुक्त युद्धाभ्यास जनरल असीम मुनीर की नींदें उड़ा सकता है।
तीनों सेनाओं का संयुक्त युद्धाभ्यास 'त्रिशूल'
तीनों सेनाओं के साझा 'त्रिशूल' युद्धाभ्यास में सैन्य अभियानों के साथ ही कई तरह की नई चीजें भी शामिल की जाएंगी। जैसे कि दुश्मन की खुफिया जानकारी जुटाना (ISR), इलेक्ट्रॉनिक युद्ध की तैयारी (EW) और संभावित साइबर हमलों से निपटना। यह अभियान भारतीय सशस्त्र बलों में युद्ध के समय बेहतर तालमेल के नजरिए से हो रहा है, जिसका सफल अंजाम देश ऑपरेशन सिंदूर के दौरान देख चुका है।
पीएम मोदी के 'जय' मंत्र पर आधारित 'त्रिशूल'
भारतीय सेना के दक्षिणी कमान की ओर से जारी बयान में बताया गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने JAI (जय) का मंत्र दिया है। इसका मतलब है, संयुक्तता (Jointness), आत्मनिर्भरता (Atmanirbharta) और इनोवेशन (Innovation)। प्रधानमंत्री इसे भारत के लिए भविष्य की रक्षा तैयारियों का आधार बताते हैं। इसी सोच के आधार पर तीनों सेनाओं में तालमेल बढ़ाना है, उनमें आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना है और बेहतर परिणाम के लिए हर पहलू में नए विचारों का समावेश करना है।
'जय' रणनीति को धरातल पर उतारने की तैयारी
बयान में कहा गया है कि लेफ्टिनेंट जनरल धीरज सेठ की अगुवाई वाली दक्षिणी कमान इस सोच को हकीकत में बदलने में सबसे आगे है। इस कमान में तो संयुक्तता भरपूर है। क्योंकि इसने हमेशा सेनाओं के बीच तालमेल दिखाया है। इस बयान के मुताबिक तीनों सेनाएं त्रिशूल युद्धाभ्यास को भारतीय वायु सेना और भारतीय नौ सेना के साथ नजदीकी तालमेल में अंजाम देगी, जिससे 'जय' रणनीति को धरातल पर उतारा जा सके।
भविष्य में युद्ध की चुनौतियों के लिए साझा युद्धाभ्यास
इस संयुक्त युद्धाभ्यास का एक लक्ष्य यह भी है कि इसमें स्वदेशी सिस्टम का इस्तेमाल किया जाना है, जिससे सैन्य अभियानों में आत्मनिर्भरता को पूर्ण रूप से अपनाया जा सके और यह युद्ध के हर क्षेत्र टैक्टिस, टेक्निक और प्रोसेड्योर में पूरी तरह से आत्मसात किया जा सके। क्योंकि, उभरती हुई चुनौतियों के साथ ही समकालीन और भविष्य के युद्धों के बदलते स्वरूप के लिए ये बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। ऐसे में तीनों सेनाओं की ट्रेनिंग के लिए त्रिशूल जैसे युद्धाभ्यास काफी अहम रोल निभाने वाले हैं।
तीनों सेनाओं का संयुक्त युद्धाभ्यास 'त्रिशूल'
तीनों सेनाओं के साझा 'त्रिशूल' युद्धाभ्यास में सैन्य अभियानों के साथ ही कई तरह की नई चीजें भी शामिल की जाएंगी। जैसे कि दुश्मन की खुफिया जानकारी जुटाना (ISR), इलेक्ट्रॉनिक युद्ध की तैयारी (EW) और संभावित साइबर हमलों से निपटना। यह अभियान भारतीय सशस्त्र बलों में युद्ध के समय बेहतर तालमेल के नजरिए से हो रहा है, जिसका सफल अंजाम देश ऑपरेशन सिंदूर के दौरान देख चुका है।
पीएम मोदी के 'जय' मंत्र पर आधारित 'त्रिशूल'
भारतीय सेना के दक्षिणी कमान की ओर से जारी बयान में बताया गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने JAI (जय) का मंत्र दिया है। इसका मतलब है, संयुक्तता (Jointness), आत्मनिर्भरता (Atmanirbharta) और इनोवेशन (Innovation)। प्रधानमंत्री इसे भारत के लिए भविष्य की रक्षा तैयारियों का आधार बताते हैं। इसी सोच के आधार पर तीनों सेनाओं में तालमेल बढ़ाना है, उनमें आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना है और बेहतर परिणाम के लिए हर पहलू में नए विचारों का समावेश करना है।
'जय' रणनीति को धरातल पर उतारने की तैयारी
बयान में कहा गया है कि लेफ्टिनेंट जनरल धीरज सेठ की अगुवाई वाली दक्षिणी कमान इस सोच को हकीकत में बदलने में सबसे आगे है। इस कमान में तो संयुक्तता भरपूर है। क्योंकि इसने हमेशा सेनाओं के बीच तालमेल दिखाया है। इस बयान के मुताबिक तीनों सेनाएं त्रिशूल युद्धाभ्यास को भारतीय वायु सेना और भारतीय नौ सेना के साथ नजदीकी तालमेल में अंजाम देगी, जिससे 'जय' रणनीति को धरातल पर उतारा जा सके।
भविष्य में युद्ध की चुनौतियों के लिए साझा युद्धाभ्यास
इस संयुक्त युद्धाभ्यास का एक लक्ष्य यह भी है कि इसमें स्वदेशी सिस्टम का इस्तेमाल किया जाना है, जिससे सैन्य अभियानों में आत्मनिर्भरता को पूर्ण रूप से अपनाया जा सके और यह युद्ध के हर क्षेत्र टैक्टिस, टेक्निक और प्रोसेड्योर में पूरी तरह से आत्मसात किया जा सके। क्योंकि, उभरती हुई चुनौतियों के साथ ही समकालीन और भविष्य के युद्धों के बदलते स्वरूप के लिए ये बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। ऐसे में तीनों सेनाओं की ट्रेनिंग के लिए त्रिशूल जैसे युद्धाभ्यास काफी अहम रोल निभाने वाले हैं।
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