लखनऊ: यूपी के एक व्यापारी के जीएसटी पंजीयन निरस्त होने के मामले में उसे कारण बताओ नोटिस जारी किया गया। नोटिस देने वाले अधिकारी ने जवाब की आखिरी तारीख के पहले ही व्यक्तिगत सुनवाई की तारीख तय कर दी, जबकि सुनवाई की तारीख जवाब की तारीख के बाद होनी चाहिए। राज्य कर विभाग में मनमानी नोटिसों एवं आधारहीन फैसलों के ऐसे कई मामले आ रहे हैं, जिसके चलते टैक्सपेयर तो परेशान हो ही रहा है, इन फैसलों का कोर्ट में बचाव करना भी मुश्किल हो रहा है। न्याय विभाग के साथ समीक्षा बैठक में आई इन आपत्तियों के बाद शासन ने अधिकारियों को नसीहत भर चिट्ठी भेजी है।राज्य कर विभाग से संबंधित हाई कोर्ट में चल रहे मामलों की समीक्षा एवं प्रभावी पैरवी के लिए पिछले महीने चीफ स्टैंडिंग काउंसिल के साथ आला अधिकारियों की बैठक हुई। इसमें स्टैंडिंग काउंसिल की ओर से कहा गया कि नोटिस से लेकर फैसलों तक में प्रक्रिया का सही से पालन नहीं किया जा रहा है। टैक्सपेयर को भेजी जा रही नोटिसों में न व्यक्तिगत सुनवाई की तारीख का जिक्र हो रहा है और न ही वक्त का। इन कमियों के चलते कोर्ट के समक्ष विभिन्न मामलों में विभाग का बचाव करना मुश्किल होता जा रहा है। अगर यही रवैया रहा तो आगे चलकर कोर्ट अफसरों पर भारी जुर्माना ठोकने के साथ ही कार्रवाई का भी आदेश दे सकता है। नोटिस और आदेश की भाषा एकसूत्रों का कहना है कि विभागीय अधिकारियों की इस मनमानी के कारण बहुत बार उत्पीड़न व वसूली के भी आरोप लगते हैं। इससे सरकार की मंशा व विभाग की छवि दोनों ही प्रभावित होती है। कोर्ट की कड़ी टिप्पणियों का भी सामना करना पड़ता है। फिलहाल, चीफ स्टैंडिंग काउंसिल की शिकायतों को समाहित करते हुए राज्य कर आयुक्त नितिन बंसल की ओर से सभी अपर आयुक्त, संयुक्त आयुक्त, उपायुक्त, सहायक आयुक्तों एवं राज्य कर अधिकारियों को नसीहत भरी चिट्ठी भेजी गई है। इसमें कहा गया है कि गुड्स एंड सर्विस ऐक्ट की विभिन्न धाराओं में दिए पारित आदेशों में विभागीय अधिकारी कोई तर्क न देकर अधिकतर मामलों में कारण बताओ नोटिस ही उतार देते हैं। तर्कपूर्ण या स्पीकिंग ऑर्डर के बजाय ‘कोई उपस्थित नहीं हुआ’ या ‘उपलब्ध तथ्यों के आधार पर’ जैसी शब्दावलियों के साथ आदेश सुना दिया जाता है। जिन मामलों में उपस्थित होकर स्पष्टीकरण दिया जाता है, उसमें भी इसका पूरा उल्लेख किए बिना संक्षिप्त आदेश पारित कर दिया जाता है। आयुक्त ने इस प्रक्रिया को गलत बताते हुए नोटिस के हर बिंदु की समीक्षा करते हुए तार्किक आदेश पारित करने के निर्देश दिए हैं। नोटिस व आदेश दोनों में हो जुर्माने का जिक्रसमीक्षा में यह भी पाया गया है कि जुर्माने का आदेश पारित करते समय धनराशि की जिक्र करने के बजाय केवल संबंधित कानूनी प्रावधान का जिक्र कर दिया जाता है, जबकि जुर्माने की प्रस्तावित धनराशि का नोटिस व आदेश दोनों में ही जिक्र किया जाना जरूरी है। साथ ही आदेश में लगाए गए जुर्माने की राशि नोटिस में दर्ज की गई धनराशि से कम हो सकती है लेकिन अधिक नहीं हो सकती। इन विसंगतियों को दूर करने के भी निर्देश दिए गए हैं। जीएसटी पंजीकरण रद्द किए जाने के अधिकतर मामलों में कोर्ट का जोर नोटिस के तामील किए जाने पर रहा है इसलिए ऑनलाइन नोटिस के अलावा स्पीड पोस्ट/रजिस्टर्ड डाक से भी नोटिस भेजने के लिए कहा गया है। अधिकारियों को यह भी ताकीद दी गई है कि फैसले के पहले व्यक्तिगत सुनवाई का मौका जरूर दिया जाए। व्यक्तिगत सुनवाई के लिए 'कारण बताओ' नोटिस के तहत जवाब देने की आखिरी तारीख के पहले न बुलाया जाए। आदेश व्यक्तिगत सुनवाई की आखिरी तारीख पर ही पारित करें। अगर उस तारीख पर किसी कारण से आदेश नहीं पारित कर रहे हैं तो टैक्सपेयर को फिर सुनवाई का मौका दें और आदेश की तारीख से भी अवगत कराएं।
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