डॉक्टर ब्रह्मदीप अलूने, नई दिल्ली/दोहा: कतर की राजधानी दोहा में करीब 60 अरब-इस्लामी देशों ने इजरायली हमले के खिलाफ आपातकालीन शिखर सम्मेलन में हिस्सा लिया। इसमें कतर की लाख कोशिशों के बावजूद इजरायल पर आर्थिक प्रतिबंध या संयुक्त सैन्य कार्रवाई को लेकर इस्लामिक देशों में कोई निर्णायक समझौते पर बात नहीं बन सकी। इसका एक प्रमुख कारण अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में कतर की वह छवि है जो उसे एक अविश्वसनीय सहयोगी के रूप में प्रस्तुत करती है। तेल और गैस से मालामाल खाड़ी के इस छोटे से देश को लेकर इस्लामी दुनिया और बाकी देशों में गहरे संदेह और अविश्वास की स्थिति बनी रहती है। कतर अपनी ऊर्जा संपदा और अल-जज़ीरा मीडिया नेटवर्क के सहारे, इस्लामिक दुनिया में प्रभाव बढ़ाने की कोशिश करता रहा है। लेकिन उसकी महत्वाकांक्षाएं और कुछ रणनीतिक धोखे, इस्लामी जगत, इजरायल और अमेरिका को आशंकित करते रहे हैं।
कतर ने एक ओर अमेरिका और पश्चिमी शक्तियों को अपनी सुरक्षा का साझेदार बनाया, वहीं दूसरी ओर हमास, अलकायदा, आईएसआईएस, मुस्लिम ब्रदरहुड और तालिबान जैसे आतंकी समूहों से भी नजदीकी बनाए रखी। यह विरोधाभासी नीति उसके सहयोगियों को असमंजस और अविश्वास में डालती रही है। शिया बहुल ईरान के साथ क़तर की निकटता सुन्नी बहुल अरब देशों को असुरक्षित महसूस कराती है, यह सीधे शक्ति संतुलन को प्रभावित करता है। क़तर पर आरोप है कि वह एक ओर शांति और मध्यस्थता की बात करता है, लेकिन पर्दे के पीछे आतंकी समूहों को समर्थन भी देता है। कतर कई दशकों से हमास को राजनीतिक,आर्थिक और राजनयिक सहयोग देता रहा है।
दोहा न केवल हमास के वरिष्ठ नेतृत्व की मेज़बानी करता है, बल्कि गाजा में हमास-नियंत्रित सरकार को अरबों डॉलर की आर्थिक सहायता भी प्रदान कर चुका है। यह नीति उसे इस्लामी दुनिया में एक प्रभावशाली खिलाड़ी तो बनाती है, लेकिन उसके सहयोगियों के लिए गहरे अविश्वास का कारण भी है। कतर अमेरिका का प्रमुख गैर-नाटो सहयोगी है। अमेरिका और यूरोपीय संघ ने हमास को आतंकवादी संगठन घोषित कर रखा है, लेकिन क़तर उसकी सक्रिय रूप से मदद करता है। क़तर ने हमास-इज़रायल युद्ध में स्वयं को एक मुख्य वार्ताकार के रूप में सफलतापूर्वक स्थापित कर लिया। कतर की नीति उसकी रणनीतिक चतुराई और धोखे को उजागर करती है।
एक तरफ कतर अमेरिका की सुरक्षा गारंटी और सहयोग का लाभ उठाता है, वहीं दूसरी ओर हमास जैसे संगठनों से नजदीकी रखकर खुद को क्षेत्रीय राजनीति में अपरिहार्य मध्यस्थ सिद्ध करता है। किंतु यह विरोधाभासी रुख इस्लामी जगत में गहरा अविश्वास पैदा करता है और वॉशिंगटन के सामने यह कठिन प्रश्न खड़ा करता है कि क्या उसे क़तर पर दबाव डालना चाहिए जिससे वह हमास के दफ़्तर बंद करे। हमास के नेताओं को निष्कासित करे और वित्तीय सहायता रोक दे। क़तर की महत्वाकांक्षी और दोहरी नीतियां उसे तात्कालिक लाभ अवश्य दिलाती हैं, परंतु दीर्घकालीन दृष्टि से वे अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में उसके सहयोगियों और व्यापक इस्लामी जगत में विश्वास संकट को और गहरा करती हैं।
साल 2007 में हमास ने बलपूर्वक ग़ाज़ा पर कब्ज़ा किया था तो उसके तुरंत बाद क़तर के तत्कालीन अमीर शेख हमद गाजा का दौरा करने वाले पहले विश्व नेता बने थे। इस यात्रा में उन्होंने 40 करोड़ डॉलर की आर्थिक सहायता का वादा किया था, जिसने हमास-नियंत्रित शासन को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अप्रत्यक्ष मान्यता और वैधता प्रदान की। इसके बाद क़तर ने लगातार ग़ाज़ा को अरबों डॉलर की आर्थिक मदद दी। हमास को क़तर की लगभग एक-तिहाई सहायता ईंधन के रूप में दी जाती है। यह ईंधन हमास अधिकारी नकद में बेचते हैं और उससे प्राप्त राशि संगठन की गतिविधियों के लिए उपयोग होती है। इसके अतिरिक्त, गाजा में आने वाली वेतन और अन्य आर्थिक सहायता से भी हमास रिश्वत और अवैध धन संग्रह करता है। हमास को ईरान का समर्थन हासिल रहा है जबकि सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात ने उसे प्रतिबंधित किया है। यहां पर कतर, ईरान का समर्थन करता हुआ नजर आता है।
हमास का राजनीतिक और वित्तीय ढांचा लंबे समय से क़तर में संरक्षित रहा है। दोहा न केवल गाजा को प्रत्यक्ष आर्थिक सहायता देता है बल्कि संगठन के शीर्ष नेताओं को सुरक्षित शरण भी उपलब्ध कराता है। हमास के राजनीतिक ब्यूरो के प्रमुख इस्माइल हनीयेह लंबे समय तक क़तर में रह कर हमास को मजबूत करते रहे। क़तर में रहते हुए हमास नेतृत्व अंतर्राष्ट्रीय राजनीति को उकसाने और इस्लामी दुनिया को संघर्ष की ओर धकेलने में सक्रिय है। यह तथ्य भी सामने आए हैं कि दोहा में हमास के नेता पांच सितारा होटलों में रहते हैं और उनकी संपत्ति 4 अरब डॉलर से भी अधिक है। यह स्थिति हमास की प्रतिरोध की छवि और ग़ाज़ा में जनता की दयनीय मानवीय स्थिति के बीच तीखा विरोधाभास पैदा करती है। अल जज़ीरा कतर सरकार के स्वामित्व में है और प्रभावी रूप से राज्य के मीडिया मुखपत्र के रूप में कार्य करता है। नेटवर्क नियमित रूप से हमास की हिंसक गतिविधियों की प्रशंसा करता है।
नवंबर 2023 में क़तर के प्रधानमंत्री मोहम्मद बिन अब्देल रहमान अल-थानी दावा करते हैं कि कतर ने क्षेत्र में शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए हमास के साथ संबंध बनाए हैं। उनका यह बयान क़तर की मध्यस्थ और शांति समर्थक छवि को दर्शाता है। किंतु व्यवहारिक दृष्टि से देखा जाए तो दोहा का हमास के प्रति सहयोग शांति की बजाय हिंसा को बढ़ावा देने वाला साबित हुआ है। साल 2007 में गाजा पर हमास के बलपूर्वक कब्ज़े के बाद से क़तर लगातार इस संगठन का सबसे बड़ा राजनीतिक और आर्थिक सहयोगी रहा है। यह सब दर्शाता है कि क़तर की मदद ने हमास की शासन और सैन्य क्षमताओं को मज़बूत किया है। इस सहयोग ने गाजा में आम जनता की स्थिति सुधारने के बजाय हमास को और अधिक आक्रामक बनने का अवसर दिया है।
कतर को हमास का सबसे महत्वपूर्ण वित्तीय समर्थक और विदेशी सहयोगी कहा जाता है। क़तर कई वर्षों से लगातार गाज़ा में करोड़ों डॉलर की मदद करता रहा है। इस सहायता का एक हिस्सा हमास सरकार के वेतन में सब्सिडी के रूप में दिया जाता था और इज़रायल की मंज़ूरी से गाज़ा भेजा जाता था। इज़रायल की शिन बेट सुरक्षा एजेंसी का यह आंकलन रहा है कि क़तर से गाज़ा में धन के प्रवाह और हमास की सैन्य शाखा तक उसकी पहुंच ने हमास को 7 अक्टूबर 2023 से पहले अपनी सेनाएं तैयार करने में मदद की थी। इसके अलावा, इज़रायली सैनिकों को गाज़ा में मिले दस्तावेज़ इस तथ्य को मजबूत करते हैं कि क़तर और हमास के बीच एक गुप्त धन चैनल मौजूद था। साल 2021 के एक दस्तावेज़ से यह तथ्य भी सामने आएं की हमास के राजनीतिक प्रमुख इस्माइल हनियेह ने कथित तौर पर 7 अक्टूबर 2023 के मास्टरमाइंड याह्या सिनवार को बताया था कि क़तर के अमीर शेख तमीम बिन हमद अल-थानी ने हमास के सैन्य अभियानों के लिए सैद्धांतिक रूप से सहमत दे दी थी।
हमास ने साल 2012 से दोहा में एक राजनीतिक कार्यालय बना रखा है। यह कार्यालय खुला हुआ है और हमास के अधिकारी कथित तौर पर कतर में स्वतंत्र रूप से काम कर रहे हैं। हमास के पूर्व प्रमुख इस्माइल हानियाह, साल 2016 से 2024 में अपनी मृत्यु तक दोहा में रहते थे। कतर पर अमेरिका का भरोसा होने से इजरायल ने भी कतर की भूमिका को लगातार स्वीकार किया। हालांकि पिछले वर्ष अमेरिका ने कतर से आग्रह किया था कि यदि वे इज़रायल के साथ बंधक समझौते से सहमत नहीं होते हैं तो वह हमास नेताओं को अपने क्षेत्र से हटा दें। कतर जब बंधकों को लेकर हमास से कोई समझौता नहीं कर पाया तो उसका इजरायल के खिलाफ हमास को मजबूत रखने का डबल गेम सामने आ गया। यहीं कारण है की नेतान्याहू ने कतर में हमास के नेताओं को निशाना बनाने का फैसला किया। यह भी दिलचस्प है कि नेतान्याहू ने दावा किया की दोहा पर हमलें की सूचना कतर और अमेरिका दोनों को पहले ही दे दी गई थी।
हमास ही नहीं बल्कि दुनिया के अन्य हिस्सों में प्रभावी कई खतरनाक इस्लामी समूहों को आर्थिक और राजनीतिक सहयोग देने में भी कतर की भूमिका सामने आ चुकी है। कतर के सबसे बड़े गैर सरकारी संगठन कतर चैरिटी द्वारा अल-कायदा को वित्तीय सहायता पहुंचाने में अहम भूमिका निभाने के तथ्य सामने आए हैं। कतर सीरिया में अल-कायदा के सहयोगी अल-नुसरा फ्रंट को प्रायोजित करता रहा जिससे ईरान समर्थित असद को सत्ता से हाथ धोना पड़ा। यहां पर कतर ईरान से अलग सऊदी अरब के साथ खड़ा दिखाई दिया। यहीं नहीं कतर के शाही परिवार के सदस्य अब्दुल करीम अल-थानी ने इराक में अल-कायदा के संस्थापक अबू मुसाब अल-जरकावी के लिए एक सुरक्षित ठिकाना उपलब्ध कराया था। साल 2014 में, इराक के पूर्व प्रधानमंत्री नूरी अल-मलिकी ने कहा था कि कतर ने इराक और सीरिया में गृहयुद्ध शुरू किया और इस्लामिक स्टेट और अल-कायदा जैसे आतंकवादी आंदोलनों को उकसाया और प्रोत्साहित किया,उन्हें राजनीतिक और मीडिया में धन देकर और उनके लिए हथियार खरीदकर समर्थन दिया।
क़तर की दोहरी भूमिकाओं ने शिया नेतृत्व ईरान और सुन्नी महाशक्ति सऊदी अरब को कई बार दुविधा में डाला है। यूरोप और अमेरिका यह बखूबी जानते हैं कि कतर एक तरफ स्वयं को शांति वार्ताओं का मध्यस्थ बताता है, वहीं दूसरी ओर आतंकवादी संगठन के नेतृत्व को संरक्षण देकर उसे आर्थिक और राजनीतिक शक्ति प्रदान करता है। जाहिर है कतर के डबल गेम के कारण न तो उसे इस्लामिक दुनिया में विश्वसनीय माना जाता है, न ही यूरोप या अमेरिका उसका आंख मूंद कर समर्थन कर सकते हैं।
कतर ने एक ओर अमेरिका और पश्चिमी शक्तियों को अपनी सुरक्षा का साझेदार बनाया, वहीं दूसरी ओर हमास, अलकायदा, आईएसआईएस, मुस्लिम ब्रदरहुड और तालिबान जैसे आतंकी समूहों से भी नजदीकी बनाए रखी। यह विरोधाभासी नीति उसके सहयोगियों को असमंजस और अविश्वास में डालती रही है। शिया बहुल ईरान के साथ क़तर की निकटता सुन्नी बहुल अरब देशों को असुरक्षित महसूस कराती है, यह सीधे शक्ति संतुलन को प्रभावित करता है। क़तर पर आरोप है कि वह एक ओर शांति और मध्यस्थता की बात करता है, लेकिन पर्दे के पीछे आतंकी समूहों को समर्थन भी देता है। कतर कई दशकों से हमास को राजनीतिक,आर्थिक और राजनयिक सहयोग देता रहा है।
दोहा न केवल हमास के वरिष्ठ नेतृत्व की मेज़बानी करता है, बल्कि गाजा में हमास-नियंत्रित सरकार को अरबों डॉलर की आर्थिक सहायता भी प्रदान कर चुका है। यह नीति उसे इस्लामी दुनिया में एक प्रभावशाली खिलाड़ी तो बनाती है, लेकिन उसके सहयोगियों के लिए गहरे अविश्वास का कारण भी है। कतर अमेरिका का प्रमुख गैर-नाटो सहयोगी है। अमेरिका और यूरोपीय संघ ने हमास को आतंकवादी संगठन घोषित कर रखा है, लेकिन क़तर उसकी सक्रिय रूप से मदद करता है। क़तर ने हमास-इज़रायल युद्ध में स्वयं को एक मुख्य वार्ताकार के रूप में सफलतापूर्वक स्थापित कर लिया। कतर की नीति उसकी रणनीतिक चतुराई और धोखे को उजागर करती है।
एक तरफ कतर अमेरिका की सुरक्षा गारंटी और सहयोग का लाभ उठाता है, वहीं दूसरी ओर हमास जैसे संगठनों से नजदीकी रखकर खुद को क्षेत्रीय राजनीति में अपरिहार्य मध्यस्थ सिद्ध करता है। किंतु यह विरोधाभासी रुख इस्लामी जगत में गहरा अविश्वास पैदा करता है और वॉशिंगटन के सामने यह कठिन प्रश्न खड़ा करता है कि क्या उसे क़तर पर दबाव डालना चाहिए जिससे वह हमास के दफ़्तर बंद करे। हमास के नेताओं को निष्कासित करे और वित्तीय सहायता रोक दे। क़तर की महत्वाकांक्षी और दोहरी नीतियां उसे तात्कालिक लाभ अवश्य दिलाती हैं, परंतु दीर्घकालीन दृष्टि से वे अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में उसके सहयोगियों और व्यापक इस्लामी जगत में विश्वास संकट को और गहरा करती हैं।
साल 2007 में हमास ने बलपूर्वक ग़ाज़ा पर कब्ज़ा किया था तो उसके तुरंत बाद क़तर के तत्कालीन अमीर शेख हमद गाजा का दौरा करने वाले पहले विश्व नेता बने थे। इस यात्रा में उन्होंने 40 करोड़ डॉलर की आर्थिक सहायता का वादा किया था, जिसने हमास-नियंत्रित शासन को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अप्रत्यक्ष मान्यता और वैधता प्रदान की। इसके बाद क़तर ने लगातार ग़ाज़ा को अरबों डॉलर की आर्थिक मदद दी। हमास को क़तर की लगभग एक-तिहाई सहायता ईंधन के रूप में दी जाती है। यह ईंधन हमास अधिकारी नकद में बेचते हैं और उससे प्राप्त राशि संगठन की गतिविधियों के लिए उपयोग होती है। इसके अतिरिक्त, गाजा में आने वाली वेतन और अन्य आर्थिक सहायता से भी हमास रिश्वत और अवैध धन संग्रह करता है। हमास को ईरान का समर्थन हासिल रहा है जबकि सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात ने उसे प्रतिबंधित किया है। यहां पर कतर, ईरान का समर्थन करता हुआ नजर आता है।
हमास का राजनीतिक और वित्तीय ढांचा लंबे समय से क़तर में संरक्षित रहा है। दोहा न केवल गाजा को प्रत्यक्ष आर्थिक सहायता देता है बल्कि संगठन के शीर्ष नेताओं को सुरक्षित शरण भी उपलब्ध कराता है। हमास के राजनीतिक ब्यूरो के प्रमुख इस्माइल हनीयेह लंबे समय तक क़तर में रह कर हमास को मजबूत करते रहे। क़तर में रहते हुए हमास नेतृत्व अंतर्राष्ट्रीय राजनीति को उकसाने और इस्लामी दुनिया को संघर्ष की ओर धकेलने में सक्रिय है। यह तथ्य भी सामने आए हैं कि दोहा में हमास के नेता पांच सितारा होटलों में रहते हैं और उनकी संपत्ति 4 अरब डॉलर से भी अधिक है। यह स्थिति हमास की प्रतिरोध की छवि और ग़ाज़ा में जनता की दयनीय मानवीय स्थिति के बीच तीखा विरोधाभास पैदा करती है। अल जज़ीरा कतर सरकार के स्वामित्व में है और प्रभावी रूप से राज्य के मीडिया मुखपत्र के रूप में कार्य करता है। नेटवर्क नियमित रूप से हमास की हिंसक गतिविधियों की प्रशंसा करता है।
नवंबर 2023 में क़तर के प्रधानमंत्री मोहम्मद बिन अब्देल रहमान अल-थानी दावा करते हैं कि कतर ने क्षेत्र में शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए हमास के साथ संबंध बनाए हैं। उनका यह बयान क़तर की मध्यस्थ और शांति समर्थक छवि को दर्शाता है। किंतु व्यवहारिक दृष्टि से देखा जाए तो दोहा का हमास के प्रति सहयोग शांति की बजाय हिंसा को बढ़ावा देने वाला साबित हुआ है। साल 2007 में गाजा पर हमास के बलपूर्वक कब्ज़े के बाद से क़तर लगातार इस संगठन का सबसे बड़ा राजनीतिक और आर्थिक सहयोगी रहा है। यह सब दर्शाता है कि क़तर की मदद ने हमास की शासन और सैन्य क्षमताओं को मज़बूत किया है। इस सहयोग ने गाजा में आम जनता की स्थिति सुधारने के बजाय हमास को और अधिक आक्रामक बनने का अवसर दिया है।
कतर को हमास का सबसे महत्वपूर्ण वित्तीय समर्थक और विदेशी सहयोगी कहा जाता है। क़तर कई वर्षों से लगातार गाज़ा में करोड़ों डॉलर की मदद करता रहा है। इस सहायता का एक हिस्सा हमास सरकार के वेतन में सब्सिडी के रूप में दिया जाता था और इज़रायल की मंज़ूरी से गाज़ा भेजा जाता था। इज़रायल की शिन बेट सुरक्षा एजेंसी का यह आंकलन रहा है कि क़तर से गाज़ा में धन के प्रवाह और हमास की सैन्य शाखा तक उसकी पहुंच ने हमास को 7 अक्टूबर 2023 से पहले अपनी सेनाएं तैयार करने में मदद की थी। इसके अलावा, इज़रायली सैनिकों को गाज़ा में मिले दस्तावेज़ इस तथ्य को मजबूत करते हैं कि क़तर और हमास के बीच एक गुप्त धन चैनल मौजूद था। साल 2021 के एक दस्तावेज़ से यह तथ्य भी सामने आएं की हमास के राजनीतिक प्रमुख इस्माइल हनियेह ने कथित तौर पर 7 अक्टूबर 2023 के मास्टरमाइंड याह्या सिनवार को बताया था कि क़तर के अमीर शेख तमीम बिन हमद अल-थानी ने हमास के सैन्य अभियानों के लिए सैद्धांतिक रूप से सहमत दे दी थी।
हमास ने साल 2012 से दोहा में एक राजनीतिक कार्यालय बना रखा है। यह कार्यालय खुला हुआ है और हमास के अधिकारी कथित तौर पर कतर में स्वतंत्र रूप से काम कर रहे हैं। हमास के पूर्व प्रमुख इस्माइल हानियाह, साल 2016 से 2024 में अपनी मृत्यु तक दोहा में रहते थे। कतर पर अमेरिका का भरोसा होने से इजरायल ने भी कतर की भूमिका को लगातार स्वीकार किया। हालांकि पिछले वर्ष अमेरिका ने कतर से आग्रह किया था कि यदि वे इज़रायल के साथ बंधक समझौते से सहमत नहीं होते हैं तो वह हमास नेताओं को अपने क्षेत्र से हटा दें। कतर जब बंधकों को लेकर हमास से कोई समझौता नहीं कर पाया तो उसका इजरायल के खिलाफ हमास को मजबूत रखने का डबल गेम सामने आ गया। यहीं कारण है की नेतान्याहू ने कतर में हमास के नेताओं को निशाना बनाने का फैसला किया। यह भी दिलचस्प है कि नेतान्याहू ने दावा किया की दोहा पर हमलें की सूचना कतर और अमेरिका दोनों को पहले ही दे दी गई थी।
हमास ही नहीं बल्कि दुनिया के अन्य हिस्सों में प्रभावी कई खतरनाक इस्लामी समूहों को आर्थिक और राजनीतिक सहयोग देने में भी कतर की भूमिका सामने आ चुकी है। कतर के सबसे बड़े गैर सरकारी संगठन कतर चैरिटी द्वारा अल-कायदा को वित्तीय सहायता पहुंचाने में अहम भूमिका निभाने के तथ्य सामने आए हैं। कतर सीरिया में अल-कायदा के सहयोगी अल-नुसरा फ्रंट को प्रायोजित करता रहा जिससे ईरान समर्थित असद को सत्ता से हाथ धोना पड़ा। यहां पर कतर ईरान से अलग सऊदी अरब के साथ खड़ा दिखाई दिया। यहीं नहीं कतर के शाही परिवार के सदस्य अब्दुल करीम अल-थानी ने इराक में अल-कायदा के संस्थापक अबू मुसाब अल-जरकावी के लिए एक सुरक्षित ठिकाना उपलब्ध कराया था। साल 2014 में, इराक के पूर्व प्रधानमंत्री नूरी अल-मलिकी ने कहा था कि कतर ने इराक और सीरिया में गृहयुद्ध शुरू किया और इस्लामिक स्टेट और अल-कायदा जैसे आतंकवादी आंदोलनों को उकसाया और प्रोत्साहित किया,उन्हें राजनीतिक और मीडिया में धन देकर और उनके लिए हथियार खरीदकर समर्थन दिया।
क़तर की दोहरी भूमिकाओं ने शिया नेतृत्व ईरान और सुन्नी महाशक्ति सऊदी अरब को कई बार दुविधा में डाला है। यूरोप और अमेरिका यह बखूबी जानते हैं कि कतर एक तरफ स्वयं को शांति वार्ताओं का मध्यस्थ बताता है, वहीं दूसरी ओर आतंकवादी संगठन के नेतृत्व को संरक्षण देकर उसे आर्थिक और राजनीतिक शक्ति प्रदान करता है। जाहिर है कतर के डबल गेम के कारण न तो उसे इस्लामिक दुनिया में विश्वसनीय माना जाता है, न ही यूरोप या अमेरिका उसका आंख मूंद कर समर्थन कर सकते हैं।
You may also like
फैक्ट्रियों से कपड़ा चोरी करने वाली गैंग के तीन बदमाश गिरफ्तार
`सबसे खूबसूरत मगर सबसे खतरनाक थी ये महिला जासूस, बिना हाथ लगाए मार दिए थे 50 हजार सैनिक
एंटी-ट्रंप एआई वीडियो ने यूट्यूब पर मचाई धूम, 2.2 अरब से अधिक व्यूज
`इस गांव में घरवाले अपनी बेटियों से कराते हैं देह व्यापार, कम उम्र में लड़कियां हो जाती है जवान
पहला टी20 : साल्ट की तूफानी पारी, इंग्लैंड ने आयरलैंड को 4 विकेट से हराया