दरभंगा: बिहार विधानसभा की कुल 243 सीटें हैं। लेकिन महागठबंधन ने 254 उम्मीदवार खड़े किये हैं। इसका मतलब है 11 सीटों पर महागठबंधन के घटक दल एक दूसरे के खिलाफ ही लड़ रहे है। इसे दोस्ताना लड़ाई कहना वाजिब नहीं। एक दूसरे की कब्र खोद रहे लोग आपस में मित्र कैसे हो सकते हैं? विश्वासघात की जमीन पर खड़े महागठबंधन को इस सवाल से कोई फर्क नहीं पड़ता। कोई कुछ भी सोचे, वो एक और नेक होने का दिखावा कर रहे हैं। इन विरोधाभासों के बीच राहुल गांधी और तेजस्वी यादव चुनावी रैलियां कर रहे हैं। ये दिखावे की दोस्ती है तभी तो राहुल गांधी ने अपने मुंह से तेजस्वी को अभी तक सीएम फेस नहीं कहा है। जीतने से पहले ही महागठबंधन के दल एक दूसरे की हार सुनिश्चित करने में लगे हैं। मिसाल के तौर पर हम गौरा बौराम विधानसभा क्षेत्र की स्थिति देख सकते हैं। इन सीट पर पहले चरण में 6 नवम्बर को मतदान है।   
   
   
गौरा बौराम में VIP और RJD की आपस में भिड़ंत
दरभंगा की गौरा बौराम विधानसभा सीट पर महागठबंधन सबसे अप्रिय स्थिति में है। शुरू में जब महागठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर गतिरोध बना हुआ था तब लालू यादव ने यहां से अफजल अली खां को राजद का सिंबल दे दिया था। उन्होंने राजद उम्मीदवार के रूप में अपना नामांकन दाखिल भी कर दिया था। इसी बीच लंबी जद्दोजहद के बाद नामांकन के आखिरी दिन गौरा बौराम सीट VIP के खाते में चली गयी। VIP के अध्यक्ष मुकेश सहनी जातीय वोटरों के आधार पर यह सीट अपने लिए सुरक्षित मानते थे। यहां से राजद उम्मीदवार नामांकन कर चुका था। फिर मुकेश सहनी ने जिद कर अपने लिए यह सीट राजद से मांग ली। फिर आखिरी लम्हों में पलट गये। उन्होंने चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया और अपने छोटे भाई संतोष सहनी यहां से VIP का उम्मीदवार बना दिया।
     
   
राजद के अफजल अली खां पहले कर चुके थे नामांकन
मुकेश सहनी को जब तक ये सीट मिली तब तक राजद के अफजल अली खां राजद के सिम्बल के साथ नामांकन कर चुके थे। वैधानिक रूप से वे राजद के प्रत्याशी थे। जब राजद ने गौरा बौराम सीट मुकेश सहनी को दी तो राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू यादव ने चुनाव आयोग को पत्र लिख कर यह घोषित किया इस सीट पर अब महागठबंधन के अधिकृत प्रत्याशी संतोष सहनी (VIP) हैं। राजद इस सीट पर चुनाव नहीं लड़ रहा। लेकिन अफजल अली खां ने नामांकन वापस नहीं लिया। इस तरह इस सीट अफजल अली खां कागजी रूप से राजद के प्रत्याशी बने रहे। लालू यादव के पत्र के बाद VIP के संतोष सहनी ने चुनाव आयोग से अफजल अली खां के नामांकन को रद्द करने की मांग की। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अब संतोष सहनी ने मामला कोर्ट तक ले जाने की धमकी दी है।
   
   
मुस्लिम वोटर अफजल अली खां के समर्थन में
अफजल अली खां के समर्थक उन्हें ही महागठबंधन का असली उम्मीदवार मान रहे हैं। अल्पसंख्यक समुदाय के लोग इस बात से नाराज हैं कि जब यहां से राजद ने नॉमिनेशन कर दिया था तब मुकेश सहनी ने इस सीट को क्यों मांगा ? इनका कहना है, हम लोगों ने तो संतोष सहनी का चेहरा नहीं देखा। वे तो मुम्बई में रहते हैं। चुनाव का समय आया तो यहां टपक गये। अफजल अली खां पिछले दस साल से इस क्षेत्र में सक्रिय हैं। सुख-दुख में हमारे हैं। बाढ़ के समय उन्होंने अपना खेत बेच कर लोगों के लिए चूड़ा-गुड़ का इंतजाम किया था। अफजल पिछले चुनाव में करीब 7 हजार से वोट से हार गये थे। इस बार उनकी स्थिति पहले से बेहतर थी। लेकिन मुकेश सहनी ने सब गड़बड़ कर दिया। वे खुद खड़े नहीं हुए और अपने भाई को उतार दिया। संतोष सहनी को तो हमारा वोट मिलने से रहा।
      
   
   
संतोष सहनी केवल निषाद वोट से नहीं जीत सकते
अल्पसंख्यक समुदाय के विरोध के कारण संतोष सहनी मुश्किल में हैं। वे केवल निषाद वोट से चुनाव नहीं जीत सकते। राजद और वीआइपी की लड़ाई में भाजपा को फायदा मिल सकता है। इस सीट पर भाजपा के सुजीत कुमार सिंह चुनाव लड़ रहे हैं। वे IRS अधिकारी रहे हैं। उनकी पत्नी स्वर्णा सिंह ने पिछले चुनाव में VIP के टिकट पर चुनाव लड़ा था और विधायक बनी थीं। लेकिन कुछ दिनों के बाद वे भाजपा में शामिल हो गयी थीं। गौरा बौराम मुकेश सहनी के लिए प्रतिष्ठा की सीट बन गयी है। अगर उनके भाई चुनाव हार गये तो उनके राजनीतिक भविष्य पर सवाल खड़ा हो जाएगा। वह इसलिए क्योंकि वो खुद को निषाद समुदाय का सबसे बड़ा नेता मानते हैं और इसी आधार पर भावी डिप्टी सीएम पोस्ट के लिए बार्गेनिंग भी की है।
   
   
क्या हारने के डर से मुकेश सहनी छोड़ गए मैदान?
मालूम हो कि मुकेश सहनी आज तक कोई भी चुनाव नहीं जीत सके हैं। एक बार लोकसभा और एक बार विधानसभा का चुनाव हार चुके हैं। 2020 में मंत्री बनाने के लिए भाजपा ने मजबूरी में उन्हें विधान परिषद में भेजा था। कहा जाता है कि इस बार भी वे चुनाव हारने के डर से मैदान में नहीं उतरे। अगर वे चुनाव हार जाते तो भविष्य का डिप्टी सीएम पोस्ट खतरे में पड़ जाता। यदि इस बार महागठबंधन जीता तो एक बार फिर वे विधानपरिषद का सदस्य बन कर ही अपनी राजनीति कर पाएंगे।
  
गौरा बौराम में VIP और RJD की आपस में भिड़ंत
दरभंगा की गौरा बौराम विधानसभा सीट पर महागठबंधन सबसे अप्रिय स्थिति में है। शुरू में जब महागठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर गतिरोध बना हुआ था तब लालू यादव ने यहां से अफजल अली खां को राजद का सिंबल दे दिया था। उन्होंने राजद उम्मीदवार के रूप में अपना नामांकन दाखिल भी कर दिया था। इसी बीच लंबी जद्दोजहद के बाद नामांकन के आखिरी दिन गौरा बौराम सीट VIP के खाते में चली गयी। VIP के अध्यक्ष मुकेश सहनी जातीय वोटरों के आधार पर यह सीट अपने लिए सुरक्षित मानते थे। यहां से राजद उम्मीदवार नामांकन कर चुका था। फिर मुकेश सहनी ने जिद कर अपने लिए यह सीट राजद से मांग ली। फिर आखिरी लम्हों में पलट गये। उन्होंने चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया और अपने छोटे भाई संतोष सहनी यहां से VIP का उम्मीदवार बना दिया।
राजद के अफजल अली खां पहले कर चुके थे नामांकन
मुकेश सहनी को जब तक ये सीट मिली तब तक राजद के अफजल अली खां राजद के सिम्बल के साथ नामांकन कर चुके थे। वैधानिक रूप से वे राजद के प्रत्याशी थे। जब राजद ने गौरा बौराम सीट मुकेश सहनी को दी तो राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू यादव ने चुनाव आयोग को पत्र लिख कर यह घोषित किया इस सीट पर अब महागठबंधन के अधिकृत प्रत्याशी संतोष सहनी (VIP) हैं। राजद इस सीट पर चुनाव नहीं लड़ रहा। लेकिन अफजल अली खां ने नामांकन वापस नहीं लिया। इस तरह इस सीट अफजल अली खां कागजी रूप से राजद के प्रत्याशी बने रहे। लालू यादव के पत्र के बाद VIP के संतोष सहनी ने चुनाव आयोग से अफजल अली खां के नामांकन को रद्द करने की मांग की। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अब संतोष सहनी ने मामला कोर्ट तक ले जाने की धमकी दी है।
मुस्लिम वोटर अफजल अली खां के समर्थन में
अफजल अली खां के समर्थक उन्हें ही महागठबंधन का असली उम्मीदवार मान रहे हैं। अल्पसंख्यक समुदाय के लोग इस बात से नाराज हैं कि जब यहां से राजद ने नॉमिनेशन कर दिया था तब मुकेश सहनी ने इस सीट को क्यों मांगा ? इनका कहना है, हम लोगों ने तो संतोष सहनी का चेहरा नहीं देखा। वे तो मुम्बई में रहते हैं। चुनाव का समय आया तो यहां टपक गये। अफजल अली खां पिछले दस साल से इस क्षेत्र में सक्रिय हैं। सुख-दुख में हमारे हैं। बाढ़ के समय उन्होंने अपना खेत बेच कर लोगों के लिए चूड़ा-गुड़ का इंतजाम किया था। अफजल पिछले चुनाव में करीब 7 हजार से वोट से हार गये थे। इस बार उनकी स्थिति पहले से बेहतर थी। लेकिन मुकेश सहनी ने सब गड़बड़ कर दिया। वे खुद खड़े नहीं हुए और अपने भाई को उतार दिया। संतोष सहनी को तो हमारा वोट मिलने से रहा।
संतोष सहनी केवल निषाद वोट से नहीं जीत सकते
अल्पसंख्यक समुदाय के विरोध के कारण संतोष सहनी मुश्किल में हैं। वे केवल निषाद वोट से चुनाव नहीं जीत सकते। राजद और वीआइपी की लड़ाई में भाजपा को फायदा मिल सकता है। इस सीट पर भाजपा के सुजीत कुमार सिंह चुनाव लड़ रहे हैं। वे IRS अधिकारी रहे हैं। उनकी पत्नी स्वर्णा सिंह ने पिछले चुनाव में VIP के टिकट पर चुनाव लड़ा था और विधायक बनी थीं। लेकिन कुछ दिनों के बाद वे भाजपा में शामिल हो गयी थीं। गौरा बौराम मुकेश सहनी के लिए प्रतिष्ठा की सीट बन गयी है। अगर उनके भाई चुनाव हार गये तो उनके राजनीतिक भविष्य पर सवाल खड़ा हो जाएगा। वह इसलिए क्योंकि वो खुद को निषाद समुदाय का सबसे बड़ा नेता मानते हैं और इसी आधार पर भावी डिप्टी सीएम पोस्ट के लिए बार्गेनिंग भी की है।
क्या हारने के डर से मुकेश सहनी छोड़ गए मैदान?
मालूम हो कि मुकेश सहनी आज तक कोई भी चुनाव नहीं जीत सके हैं। एक बार लोकसभा और एक बार विधानसभा का चुनाव हार चुके हैं। 2020 में मंत्री बनाने के लिए भाजपा ने मजबूरी में उन्हें विधान परिषद में भेजा था। कहा जाता है कि इस बार भी वे चुनाव हारने के डर से मैदान में नहीं उतरे। अगर वे चुनाव हार जाते तो भविष्य का डिप्टी सीएम पोस्ट खतरे में पड़ जाता। यदि इस बार महागठबंधन जीता तो एक बार फिर वे विधानपरिषद का सदस्य बन कर ही अपनी राजनीति कर पाएंगे।
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