संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की मॉनिटरिंग रिपोर्ट में पहलगाम हमले में आतंकी संगठन 'The Resistance Front' (TRF) की भूमिका का जिक्र होने के बाद अब पाकिस्तान के लिए बचने का कोई रास्ता नहीं रह गया है। उसका यह झूठ दुनिया के सामने बेनकाब हो चुका है कि भारत में हुए आतंकवादी हमले से उसका नाता नहीं। यह भारत के लगातार किए गए कूटनीतिक प्रयासों की जीत है।
LeT का सपोर्ट: मॉनिटरिंग टीम ने रिपोर्ट में लिखा है कि TRF ने दो बार हमले की जिम्मेदारी ली और यह अटैक पाकिस्तान की जमीन से संचालित आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के समर्थन के बिना संभव नहीं था। टेरर फंडिंग पर नजर रखने वाली अंतरराष्ट्रीय एजेंसी FATF ने भी कुछ दिनों पहले कहा था कि इतना बड़ा आतंकी हमला
आर्थिक मदद के बिना नहीं हो सकता। पाकिस्तान के लिए दो-दो ग्लोबल एजेंसियों की फाइंडिंग को झुठलाना आसान नहीं होगा।
भारत का लगातार प्रयास: यह रिपोर्ट इतनी अहम इसलिए है, क्योंकि इसके पीछे भारत ने बहुत मेहनत की है। UNSC को TRE के बारे में लगातार जानकारी मुहैया कराई गई - लश्कर के साथ जुड़ाव के सबूत सौंपे गए। पिछले साल मई में विदेश मंत्रालय की अगुआई में एक डेलिगेशन ने न्यू यॉर्क में UN अधिकारियों से मुलाकात कर उन्हें जरूरी दस्तावेज उपलब्ध कराए थे।
काम न आया चीन: पाकिस्तान ने हर सबूत को झुठलाने की कोशिश की और इसमें उसे चीन का भरपूर साथ मिला। इस बार भी उसे भरोसा था कि UNSC में चीन बचा लेगा। पिछले दिनों पाकिस्तानी विदेश मंत्री ने अपने यहां की संसद में दावा किया था कि उन्होंने UNSC के प्रेस स्टेटमेंट से TRF का नाम हटवा दिया है। हालांकि इस बार चीन पाकिस्तान का गठजोड़ नाकाम हो गया।
प्रॉक्सी वॉर: यह हार पाकिस्तान के प्रॉक्सी वॉर की भी है। लश्कर-ए-तैयबा घोषित अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी संगठन है। इस पर कार्रवाई का दबाव बढ़ने के बाद पाकिस्तानने 2019 में TRF को खड़ा किया था । LeT के लड़ाकों और हथियारों का इस्तेमाल कर TRF आतंक फैलाने में लगा हुआ था। लेकिन, इस बार दुनिया ने उसकी प्रॉक्सी टैक्टिक्स को पहचान लिया।
जवाब देना होगा: मॉनिटरिंग रिपोर्ट को सुरक्षा परिषद के सभी सदस्य आम सहमति से अपनाते हैं यानी पाकिस्तान अपनी जवाबदेही से बच नहीं सकता। पिछले कुछ अरसे से कूटनीतिक मोर्चे पर वह घिरता जा रहा है। पहले QUAD के संयुक्त बयान में पहलगाम आतंकी हमले का जिक्र आया और फिर अमेरिका ने TRF को वैश्विक आतंकी संगठन घोषित किया। भारत के लिए यह बिल्कुल सही समय है, जब वह आतंकवाद के प्रायोजक अपने इस पड़ोसी पर शिकंजा और कस सकता है।
LeT का सपोर्ट: मॉनिटरिंग टीम ने रिपोर्ट में लिखा है कि TRF ने दो बार हमले की जिम्मेदारी ली और यह अटैक पाकिस्तान की जमीन से संचालित आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के समर्थन के बिना संभव नहीं था। टेरर फंडिंग पर नजर रखने वाली अंतरराष्ट्रीय एजेंसी FATF ने भी कुछ दिनों पहले कहा था कि इतना बड़ा आतंकी हमला
आर्थिक मदद के बिना नहीं हो सकता। पाकिस्तान के लिए दो-दो ग्लोबल एजेंसियों की फाइंडिंग को झुठलाना आसान नहीं होगा।
भारत का लगातार प्रयास: यह रिपोर्ट इतनी अहम इसलिए है, क्योंकि इसके पीछे भारत ने बहुत मेहनत की है। UNSC को TRE के बारे में लगातार जानकारी मुहैया कराई गई - लश्कर के साथ जुड़ाव के सबूत सौंपे गए। पिछले साल मई में विदेश मंत्रालय की अगुआई में एक डेलिगेशन ने न्यू यॉर्क में UN अधिकारियों से मुलाकात कर उन्हें जरूरी दस्तावेज उपलब्ध कराए थे।
काम न आया चीन: पाकिस्तान ने हर सबूत को झुठलाने की कोशिश की और इसमें उसे चीन का भरपूर साथ मिला। इस बार भी उसे भरोसा था कि UNSC में चीन बचा लेगा। पिछले दिनों पाकिस्तानी विदेश मंत्री ने अपने यहां की संसद में दावा किया था कि उन्होंने UNSC के प्रेस स्टेटमेंट से TRF का नाम हटवा दिया है। हालांकि इस बार चीन पाकिस्तान का गठजोड़ नाकाम हो गया।
प्रॉक्सी वॉर: यह हार पाकिस्तान के प्रॉक्सी वॉर की भी है। लश्कर-ए-तैयबा घोषित अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी संगठन है। इस पर कार्रवाई का दबाव बढ़ने के बाद पाकिस्तानने 2019 में TRF को खड़ा किया था । LeT के लड़ाकों और हथियारों का इस्तेमाल कर TRF आतंक फैलाने में लगा हुआ था। लेकिन, इस बार दुनिया ने उसकी प्रॉक्सी टैक्टिक्स को पहचान लिया।
जवाब देना होगा: मॉनिटरिंग रिपोर्ट को सुरक्षा परिषद के सभी सदस्य आम सहमति से अपनाते हैं यानी पाकिस्तान अपनी जवाबदेही से बच नहीं सकता। पिछले कुछ अरसे से कूटनीतिक मोर्चे पर वह घिरता जा रहा है। पहले QUAD के संयुक्त बयान में पहलगाम आतंकी हमले का जिक्र आया और फिर अमेरिका ने TRF को वैश्विक आतंकी संगठन घोषित किया। भारत के लिए यह बिल्कुल सही समय है, जब वह आतंकवाद के प्रायोजक अपने इस पड़ोसी पर शिकंजा और कस सकता है।
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