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भारत अपनी फिलिस्तीन नीति पर अडिग, संयुक्त राष्ट्र में मतदान पैटर्न में दिखी इसकी झलक

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नई दिल्ली: फिलिस्तीन के प्रति भारत की नीति लंबे समय से चली आ रही है और इसे सभी दलों का समर्थन प्राप्त है। भारत अभी तक इसपर अडिग रहा है। भारत ने हमेशा एक संप्रभु, स्वतंत्र और व्यवहार्य फिलिस्तीन राज्य की स्थापना के लिए बातचीत के माध्यम से द्वि-राज्य समाधान का समर्थन किया है, जो कि सुरक्षित और मान्यता प्राप्त सीमाओं के भीतर इजराइल के साथ शांतिपूर्वक रह सके।



संयुक्त राष्ट्र में मतदान के दौरान दिखी भारत की नीति की झलक

हाल ही में, भारत ने संयुक्त राष्ट्र में 12 सितंबर को न्यूयॉर्क घोषणा के पक्ष में मतदान किया, जो फिलिस्तीन के मसले पर शांतिपूर्ण समाधान को लेकर था। जिसकी सह अध्यक्षता सऊदी अरब और फ्रांस कर रहा है। फिलिस्तीन के प्रति भारत का लंबे समय से चल रहा रुख संयुक्त राष्ट्र में उसके मतदान के तरीकों में एक बार फिर से दिखा। पिछले 10 वर्षों में भारत ने संयुक्त राष्ट्र में इजराइल-फिलिस्तीन मुद्दे पर 175 प्रस्तावों में से किसी के भी विरुद्ध मतदान नहीं किया है।



भारत बहुत पहले से फिलिस्तीन के स्वतंत्र राज्य का समर्थन करता आ रहा है

भारत उन पहले गैर-अरब देशों में से एक था जिसने 1974 में पीएलओ को फिलिस्तीन के लोगों के एकमात्र और वैध प्रतिनिधि के रूप में मान्यता दी और 1988 में फिलिस्तीन राज्य को मान्यता देने वाले पहले देशों में से एक बना। भारत ने इस बात पर जोर दिया है कि इजराइल और फिलिस्तीन को करीब लाने से प्रत्यक्ष शांति वार्ता की शीघ्र बहाली के लिए परिस्थितियां बनाने में मदद मिलेगी।



भारत ने इजराइल पर हमास द्वारा किए गए आतंकवादी हमले की कड़ी निंदा की

वर्तमान संघर्ष में, भारत ने इजराइल पर हमास द्वारा किए गए आतंकवादी हमलों की कड़ी निंदा की है। भारत ने फिलिस्तीन को सुरक्षित, समय पर और निरंतर मानवीय सहायता प्रदान करने की आवश्यकता पर भी बल दिया है। भारत फिलिस्तीन के लोगों को मानवीय सहायता प्रदान करता है।



इजराइल-फिलिस्तीन विवाद का सबसे बड़ा कारण

इजराइल-फिलिस्तीन विवाद का सबसे बड़ा कारण येरूशलेम पर आधिपत्य स्थापित करना है, क्योंकि यह यहूदी , इसाई और इस्लाम का धार्मिक स्थल है। फिलिस्तीनी ऐतिहासिक फिलिस्तीन के कम से कम एक हिस्से में अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित करना चाहते हैं । वहीं, इजराइल अब इस मामले पर आक्रामक हो गया है।
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