नई दिल्ली: महिला वर्ल्ड कप इस बार भारत में खेला जा रहा है, जहां टीम इंडिया सेमीफाइनल में पहुंच गई है। टीम इंडिया को सेमीफाइनल में पहुंचाने में सबसे अहम रोल रहा युवा बल्लेबाज प्रतिका रावल का। प्रतिका रावल की सफलता के पीछे उनके पिता का रोल काफी अहम रहा। उनके पिता यह जातने थे कि प्रतिका आने वाले दिनों में कुछ कमाल करने वाली है। यही कारण है कि आईसीसी महिला वर्ल्ड कप की शुरुआत से कुछ दिन पहले, दिल्ली की एक गर्म दोपहर में प्रदीप रावल अपने काम में व्यस्त थे। उन्होंने बाद में अपने मोबाइल पर दिखाया कि उन्होंने अपनी बेटी, प्रतिका रावल के लिए कुछ खास बैनर छपवाने थे। इनमें से एक पर लिखा था: '100 - प्रतिका रावल: पिता के लिए गौरवपूर्ण क्षण।'
यह बैनर गुरुवार को नवी मुंबई में न्यूजीलैंड के खिलाफ सही साबित हुआ, जब प्रतिका ने टूर्नामेंट में अपना पहला शतक जड़ा। उन्होंने 134 गेंदों पर 13 चौकों और दो छक्कों की मदद से 122 रन की शानदार पारी खेली। यह पारी भारत की जीत और सेमीफाइनल में जगह पक्की करने के लिए निर्णायक साबित हुई। अपनी इस पारी के दौरान, वह सिर्फ 23 पारियों में 1,000 वनडे रन बनाने वाली सबसे तेज महिला भी बनीं। ऐसे में आइए आज के स्पोर्ट्स स्कैन में जानते हैं प्रतिका रावल की कहानी के बारे में जिन्होंने अपने पिता के सपने को कैसे पूरा किया।
छत पर शुरू हुआ संघर्ष और अभ्यास
प्रतिका के पिता प्रदीप रावल ने इंडियन एक्सप्रेस से बताया कि उन्होंने सबसे पहले अपने दिल्ली स्थित घर की छत पर अभ्यास की सुविधा तैयार की थी। महामारी के दौरान, यह जगह प्रतिका के लिए सबसे बड़ा सहारा बनी। प्रदीप कहते हैं, 'यह प्रतिका के करियर का एक मुश्किल दौर था, क्योंकि इससे उसकी प्रसिद्धि में देरी हुई।' प्रदीप ने छत पर खंभे और हरे जाल लगाए। वह रोजाना सुबह-शाम एक-एक घंटा अपनी बेटी को थ्रोडाउन देने आते थे। चूंकि प्रदीप खुद अपने खेलने के दिनों में एक तेज गेंदबाज थे, उन्हें थ्रोडाउन देने में कोई दिक्कत नहीं हुई। प्रदीप ने बताया कि प्रतिका हर दिन कम से कम 400-500 गेंदें खेलती थी और जब तक वह अभ्यास नहीं कर लेती, वह न सोती थी और न ही खाती थी।
घरेलू क्रिकेट में लगातार रन बनाने के बावजूद, भारतीय टीम में प्रतिका का चयन देरी से हुआ। पिता प्रदीप चिंतित थे, लेकिन प्रतिका हमेशा कहती थी कि यह किस्मत की बात है और उसने कभी हार नहीं मानी। न्यूजीलैंड के खिलाफ मैच में उसकी वही लगन दिखाई दी, जहां धीमी शुरुआत के बाद उन्होंने शानदार गति पकड़ी। कोच अमोल मुज़ुमदार ने भी मैच से पहले अपनी ओपनर का समर्थन किया था।
कैसा रहा प्रतिका का सफर
प्रतिका का क्रिकेट सफर रोहतक रोड जिमखाना में कोच श्रवण कुमार की देखरेख में शुरू हुआ, जिन्होंने इशांत शर्मा और हर्षित राणा जैसे खिलाड़ियों को भी तैयार किया है। श्रवण ने बताया, 'वह मेरी अकादमी में प्रशिक्षित होने वाली पहली लड़की थी। उसकी प्रतिभा साफ थी और वह अपने से बड़े लड़कों का सामना करती थी।' प्रतिका हमेशा से एक बेहतरीन एथलीट रही हैं। वह राष्ट्रीय स्तर पर बास्केटबॉल की गोल्ड मेडल विजेता भी हैं। प्रदीप रावल ने अपने सपने को अपनी बेटी के माध्यम से साकार करना चाहा और जब प्रतिका तीन साल की थी, तभी उन्होंने उसे बल्ला पकड़ना सिखाया।
देर से मिली सफलता और भावनात्मक क्षण
जब पिछले साल के अंत में प्रतिका को पहली बार वनडे टीम में चुना गया, तब वह 24 साल की थीं, जो एक तरह से देर से मिला इनाम था। पिता प्रदीप को लगा कि उनका बुलावा देर से आया, लेकिन वह हमेशा आशावादी रहे। जब प्रतिका ने उन्हें यह खबर दी, तो प्रदीप खुशी से अपने आंसू रोक नहीं पाए। इंटरनेशनल डेब्यू के बाद से उन्होंने स्मृति मंधाना के साथ एक शानदार ओपनिंग साझेदारी बनाई है। मंधाना उनकी पसंदीदा खिलाड़ी हैं और उनके साथ विश्व कप में ओपनिंग करना प्रतिका के लिए बहुत भावुक क्षण है। मंधाना ने कहा कि वे दोनों एक जैसे हैं, जो काम पर ध्यान देते हैं और एक-दूसरे को सहज खेल खेलने देते हैं। प्रतिका रावल की सफलता आज जो दिख रही है वो एक पिता की सफलता है। पिता के कारण उन्होंने इस मुकाम को हासिल किया।
यह बैनर गुरुवार को नवी मुंबई में न्यूजीलैंड के खिलाफ सही साबित हुआ, जब प्रतिका ने टूर्नामेंट में अपना पहला शतक जड़ा। उन्होंने 134 गेंदों पर 13 चौकों और दो छक्कों की मदद से 122 रन की शानदार पारी खेली। यह पारी भारत की जीत और सेमीफाइनल में जगह पक्की करने के लिए निर्णायक साबित हुई। अपनी इस पारी के दौरान, वह सिर्फ 23 पारियों में 1,000 वनडे रन बनाने वाली सबसे तेज महिला भी बनीं। ऐसे में आइए आज के स्पोर्ट्स स्कैन में जानते हैं प्रतिका रावल की कहानी के बारे में जिन्होंने अपने पिता के सपने को कैसे पूरा किया।
छत पर शुरू हुआ संघर्ष और अभ्यास
प्रतिका के पिता प्रदीप रावल ने इंडियन एक्सप्रेस से बताया कि उन्होंने सबसे पहले अपने दिल्ली स्थित घर की छत पर अभ्यास की सुविधा तैयार की थी। महामारी के दौरान, यह जगह प्रतिका के लिए सबसे बड़ा सहारा बनी। प्रदीप कहते हैं, 'यह प्रतिका के करियर का एक मुश्किल दौर था, क्योंकि इससे उसकी प्रसिद्धि में देरी हुई।' प्रदीप ने छत पर खंभे और हरे जाल लगाए। वह रोजाना सुबह-शाम एक-एक घंटा अपनी बेटी को थ्रोडाउन देने आते थे। चूंकि प्रदीप खुद अपने खेलने के दिनों में एक तेज गेंदबाज थे, उन्हें थ्रोडाउन देने में कोई दिक्कत नहीं हुई। प्रदीप ने बताया कि प्रतिका हर दिन कम से कम 400-500 गेंदें खेलती थी और जब तक वह अभ्यास नहीं कर लेती, वह न सोती थी और न ही खाती थी।
घरेलू क्रिकेट में लगातार रन बनाने के बावजूद, भारतीय टीम में प्रतिका का चयन देरी से हुआ। पिता प्रदीप चिंतित थे, लेकिन प्रतिका हमेशा कहती थी कि यह किस्मत की बात है और उसने कभी हार नहीं मानी। न्यूजीलैंड के खिलाफ मैच में उसकी वही लगन दिखाई दी, जहां धीमी शुरुआत के बाद उन्होंने शानदार गति पकड़ी। कोच अमोल मुज़ुमदार ने भी मैच से पहले अपनी ओपनर का समर्थन किया था।
कैसा रहा प्रतिका का सफर
प्रतिका का क्रिकेट सफर रोहतक रोड जिमखाना में कोच श्रवण कुमार की देखरेख में शुरू हुआ, जिन्होंने इशांत शर्मा और हर्षित राणा जैसे खिलाड़ियों को भी तैयार किया है। श्रवण ने बताया, 'वह मेरी अकादमी में प्रशिक्षित होने वाली पहली लड़की थी। उसकी प्रतिभा साफ थी और वह अपने से बड़े लड़कों का सामना करती थी।' प्रतिका हमेशा से एक बेहतरीन एथलीट रही हैं। वह राष्ट्रीय स्तर पर बास्केटबॉल की गोल्ड मेडल विजेता भी हैं। प्रदीप रावल ने अपने सपने को अपनी बेटी के माध्यम से साकार करना चाहा और जब प्रतिका तीन साल की थी, तभी उन्होंने उसे बल्ला पकड़ना सिखाया।
देर से मिली सफलता और भावनात्मक क्षण
जब पिछले साल के अंत में प्रतिका को पहली बार वनडे टीम में चुना गया, तब वह 24 साल की थीं, जो एक तरह से देर से मिला इनाम था। पिता प्रदीप को लगा कि उनका बुलावा देर से आया, लेकिन वह हमेशा आशावादी रहे। जब प्रतिका ने उन्हें यह खबर दी, तो प्रदीप खुशी से अपने आंसू रोक नहीं पाए। इंटरनेशनल डेब्यू के बाद से उन्होंने स्मृति मंधाना के साथ एक शानदार ओपनिंग साझेदारी बनाई है। मंधाना उनकी पसंदीदा खिलाड़ी हैं और उनके साथ विश्व कप में ओपनिंग करना प्रतिका के लिए बहुत भावुक क्षण है। मंधाना ने कहा कि वे दोनों एक जैसे हैं, जो काम पर ध्यान देते हैं और एक-दूसरे को सहज खेल खेलने देते हैं। प्रतिका रावल की सफलता आज जो दिख रही है वो एक पिता की सफलता है। पिता के कारण उन्होंने इस मुकाम को हासिल किया।
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