नई दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को कहा कि जीवन और व्यापार में सहजता सुनिश्चित करने के लिए “न्याय की सहज उपलब्धता” आवश्यक है। उन्होंने यह भी आग्रह किया कि न्याय पाने वालों की सुविधा के लिए कानूनी भाषा को सरल बनाया जाए ताकि वे उसे आसानी से समझ सकें। प्रधानमंत्री द्वारा “कानूनी सहायता वितरण तंत्र को सशक्त बनाना” विषय पर आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित किया गया। यह दो दिवसीय कार्यक्रम 8–9 नवंबर को नेशनल लीगल सर्विस अथॉरिटी ( NALSA ) द्वारा “लीगल सर्विसेज डे” के अवसर पर आयोजित किया जा रहा है।
प्रधानमंत्री ने कार्यक्रम के उद्घाटन सेशन में कहा कि सामाजिक न्याय तभी सुनिश्चित हो सकता है जब न्याय सभी तक पहुंचे, चाहे उनका सामाजिक या आर्थिक पृष्ठभूमि कुछ भी हो। पीएम मोदी ने आगे कहा कि न्याय सबके लिए सुलभ होना चाहिए, और “जीवन की सहजता” तथा “व्यवसाय की सहजता” सुनिश्चित करने के लिए “न्याय की सहजता” आवश्यक है।
सरकार ने न्याय की सहजता को बढ़ाने के लिए कई कदम उठाए
उन्होंने कहा कि हाल के वर्षों में सरकार ने “न्याय की सहजता” को बढ़ाने के लिए कई कदम उठाए हैं और इस प्रक्रिया को और तेज किया जाएगा। उन्होंने कहा, “कानून की भाषा ऐसी होनी चाहिए जिसे न्याय पाने वाले लोग समझ सकें। जब लोग अपनी भाषा में कानून को समझते हैं, तो इससे बेहतर अमल होता है और मुकदमों की पेंडेंसी में कही आएगी। मोदी ने कहा कि फैसले और कानूनी दस्तावेज स्थानीय भाषाओं में उपलब्ध कराए जाने चाहिए, और इस दिशा में सुप्रीम कोर्ट महत्त्वपूर्ण कदम उठा रहा है।
इस मौके पर केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी. आर. गवई , जस्टिस सूर्यकांत (कार्यकारी अध्यक्ष, NALSA) और जस्टिस विक्रम नाथ के साथ साथ सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली उच्च न्यायालय के जज व वकील मौजूद थे। इस मौके पर प्रधानमंत्री ने “सामुदायिक मध्यस्थता ट्रेनिंग मॉड्यूल” (Community Mediation Training Module) का उद्घाटन किया।
कमजोर व्यक्ति का चेहरा याद करें और न्याय करें: बी आर गवई
इस मौके पर चीफ जस्टिस बीआर गवई ने अपने संबोधन में महात्मा गांधी के शब्दों को याद करते हुए कहा कि “जब भी किसी फैसले को लेकर संदेह हो, तो सबसे गरीब और सबसे कमजोर व्यक्ति का चेहरा याद करें और स्वयं से पूछें कि क्या यह कदम उसके लिए उपयोगी होगा। उन्होंने कहा, “मेरे लिए यह विचार कानूनी सहायता आंदोलन और हमारी विधिक सेवा संस्थाओं के कार्यों में अपनी सच्ची अभिव्यक्ति पाता है। प्रधानमंत्री की मौजूदगी की सराहना करते हुए CJI गवई ने कहा कि प्रधानमंत्री की उपस्थिति कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका की साझा जिम्मेदारी का प्रतीक है जो सबके लिए न्याय तक पहुंच और कानूनी सहायता के उद्देश्य को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
इस कार्यक्रम की शुरुआत में जस्टिस सूर्यकांत तने मुफ्त कानूनी सहायता के महत्व पर बल दिया। उन्होंने कहा कि कानूनी सहायता एक संवैधानिक मूल्य को व्यावहारिक राहत में बदल देती है। यह ऐसा माध्यम है जिससे गरीब, वंचित और व्यवस्था के पीड़ित अपने अधिकारों को व्यक्त कर सकते हैं। अपनी आवाज उठा सकते हैं।
कानूनी सहायता का विस्तार केवल तकनीक से संभव नहीं: जस्टिस सूर्यकांत
जस्टिस सूर्यकांत ने आगे कहा कि कानूनी सहायता का विस्तार केवल तकनीक से संभव नहीं है, इसके लिए स्थानीय ज्ञान और मानवीय संवेदना का मेल आवश्यक है। उन्होंने कहा, “भविष्य की ओर देखते हुए, हमें कानूनी सहायता की उपलब्धता को सरल बनाना होगा। उन्होंने कहा कि कानूनी सहायता को सशक्त बनाना केवल संस्थागत क्षमता बढ़ाने का विषय नहीं है, बल्कि यह उस मार्ग को सरल बनाने के बारे में है जिसके माध्यम से कोई पीड़ित व्यक्ति कानून की सुरक्षा प्राप्त कर सके।
केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने अपने संबोधन में NALSA के पिछले तीन दशकों में नि:शुल्क कानूनी सहायता के विस्तार के प्रयासों की सराहना की। उन्होंने युवा वकीलों से कहा कि कानूनी सहायता को नागरिक केंद्रित सेवा के रूप में देखा जाना चाहिए। मंत्री ने यह भी बताया कि 2015–16 में NALSA के लिए कानूनी सहायता का बजट 68 करोड़ रुपये था, जबकि वर्तमान वित्तीय वर्ष में यह बढ़कर 400 करोड़ रुपये हो गया है, जिसमें से 350 करोड़ रुपये जारी किए जा चुके हैं।
प्रधानमंत्री ने कार्यक्रम के उद्घाटन सेशन में कहा कि सामाजिक न्याय तभी सुनिश्चित हो सकता है जब न्याय सभी तक पहुंचे, चाहे उनका सामाजिक या आर्थिक पृष्ठभूमि कुछ भी हो। पीएम मोदी ने आगे कहा कि न्याय सबके लिए सुलभ होना चाहिए, और “जीवन की सहजता” तथा “व्यवसाय की सहजता” सुनिश्चित करने के लिए “न्याय की सहजता” आवश्यक है।
सरकार ने न्याय की सहजता को बढ़ाने के लिए कई कदम उठाए
उन्होंने कहा कि हाल के वर्षों में सरकार ने “न्याय की सहजता” को बढ़ाने के लिए कई कदम उठाए हैं और इस प्रक्रिया को और तेज किया जाएगा। उन्होंने कहा, “कानून की भाषा ऐसी होनी चाहिए जिसे न्याय पाने वाले लोग समझ सकें। जब लोग अपनी भाषा में कानून को समझते हैं, तो इससे बेहतर अमल होता है और मुकदमों की पेंडेंसी में कही आएगी। मोदी ने कहा कि फैसले और कानूनी दस्तावेज स्थानीय भाषाओं में उपलब्ध कराए जाने चाहिए, और इस दिशा में सुप्रीम कोर्ट महत्त्वपूर्ण कदम उठा रहा है।
इस मौके पर केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी. आर. गवई , जस्टिस सूर्यकांत (कार्यकारी अध्यक्ष, NALSA) और जस्टिस विक्रम नाथ के साथ साथ सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली उच्च न्यायालय के जज व वकील मौजूद थे। इस मौके पर प्रधानमंत्री ने “सामुदायिक मध्यस्थता ट्रेनिंग मॉड्यूल” (Community Mediation Training Module) का उद्घाटन किया।
कमजोर व्यक्ति का चेहरा याद करें और न्याय करें: बी आर गवई
इस मौके पर चीफ जस्टिस बीआर गवई ने अपने संबोधन में महात्मा गांधी के शब्दों को याद करते हुए कहा कि “जब भी किसी फैसले को लेकर संदेह हो, तो सबसे गरीब और सबसे कमजोर व्यक्ति का चेहरा याद करें और स्वयं से पूछें कि क्या यह कदम उसके लिए उपयोगी होगा। उन्होंने कहा, “मेरे लिए यह विचार कानूनी सहायता आंदोलन और हमारी विधिक सेवा संस्थाओं के कार्यों में अपनी सच्ची अभिव्यक्ति पाता है। प्रधानमंत्री की मौजूदगी की सराहना करते हुए CJI गवई ने कहा कि प्रधानमंत्री की उपस्थिति कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका की साझा जिम्मेदारी का प्रतीक है जो सबके लिए न्याय तक पहुंच और कानूनी सहायता के उद्देश्य को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
इस कार्यक्रम की शुरुआत में जस्टिस सूर्यकांत तने मुफ्त कानूनी सहायता के महत्व पर बल दिया। उन्होंने कहा कि कानूनी सहायता एक संवैधानिक मूल्य को व्यावहारिक राहत में बदल देती है। यह ऐसा माध्यम है जिससे गरीब, वंचित और व्यवस्था के पीड़ित अपने अधिकारों को व्यक्त कर सकते हैं। अपनी आवाज उठा सकते हैं।
कानूनी सहायता का विस्तार केवल तकनीक से संभव नहीं: जस्टिस सूर्यकांत
जस्टिस सूर्यकांत ने आगे कहा कि कानूनी सहायता का विस्तार केवल तकनीक से संभव नहीं है, इसके लिए स्थानीय ज्ञान और मानवीय संवेदना का मेल आवश्यक है। उन्होंने कहा, “भविष्य की ओर देखते हुए, हमें कानूनी सहायता की उपलब्धता को सरल बनाना होगा। उन्होंने कहा कि कानूनी सहायता को सशक्त बनाना केवल संस्थागत क्षमता बढ़ाने का विषय नहीं है, बल्कि यह उस मार्ग को सरल बनाने के बारे में है जिसके माध्यम से कोई पीड़ित व्यक्ति कानून की सुरक्षा प्राप्त कर सके।
केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने अपने संबोधन में NALSA के पिछले तीन दशकों में नि:शुल्क कानूनी सहायता के विस्तार के प्रयासों की सराहना की। उन्होंने युवा वकीलों से कहा कि कानूनी सहायता को नागरिक केंद्रित सेवा के रूप में देखा जाना चाहिए। मंत्री ने यह भी बताया कि 2015–16 में NALSA के लिए कानूनी सहायता का बजट 68 करोड़ रुपये था, जबकि वर्तमान वित्तीय वर्ष में यह बढ़कर 400 करोड़ रुपये हो गया है, जिसमें से 350 करोड़ रुपये जारी किए जा चुके हैं।
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