लेखक: सुधांशु रंजन
सत्तर और अस्सी के दशकों में दहेज प्रताड़ना और मामलों में काफी वृद्धि हुई तब इस पर अंकुश लगाने के लिए 1983 में भारतीय सुधांशु रंजन दंड संहिता में धारा 498A जोड़ कर विवाहिता स्त्री के विरुद्ध पति या उसके परिजनों के क्रूर व्यवहार को संज्ञेय अपराध बनाते हुए सजा का प्रावधान किया गया।
बड़े पैमाने पर दुरुपयोग: आगे चलकर इस कानून का इस कदर दुरुपयोग शुरू हुआ कि बेगुनाह लोग जेल जाने लगे। चूंकि यह संज्ञेय अपराध है, इसलिए पुलिस को शिकायत के आधार पर गिरफ्तार करने का अधिकार है। इसमें पति के अलावा सास-ससुर, देवर, ननद आदि की गिरफ्तारी होने लगी। सुदूर शहरों में रहने वालों, यहां तक कि विदेश में रहने वाले रिश्तेदारों तक अभियुक्त बनाया गया और उनकी गिरफ्तारी हुई।
कूलिंग ऑफ पीरियड: जब इस कानून के दुरुपयोग की शिकायतें काफी बढ़ गई, तब अदालत ने इस मामले में दखल दिया। इस संदर्भ में पिछले 22 जुलाई को शीर्ष अदालत का शिवांगी बंसल मामले में दिया गया फैसला महत्वपूर्ण है। सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा 2022 में मुकेश बंसल बनाम उत्तर प्रदेश में जारी दिशानिर्देशों को सही ठहराया। हाई कोर्ट ने निर्देश दिया था कि दहेज प्रताड़ना के मामले में पुलिस तुरंत गिरफ्तारी नहीं करेगी। इसमें दो महीने का 'कूलिंग ऑफ' पीरियड (cooling off period) रहेगा, जिस दरम्यान सुलह-समझौता हो सकता है और पुलिस आरोपों का सत्यापन कर सकती है।
अदालती व्यवस्था: गौर करने की बात है कि यह फैसला अचानक नहीं आया। ऐसे अनेक मामलों में कानून के दुरुपयोग से जुड़े पहलू पर गौर करते हुए अदालतें व्यवस्थाएं देती रही हैं। 2014 में अर्नेश कुमार बनाम बिहार मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इस तरह की शिकायत मिलने पर पुलिस अभियुक्त को आनन-फानन में गिरफ्तार नहीं करेगी, बल्कि अपराध प्रक्रिया विधान (CRPC) की धारा 41 ( 1 ) (B) (ii) के तहत पहले संतुष्ट होगी कि गिरफ्तारी की जरूरत है। इसके लिए कारण एवं साक्ष्य देने होंगे । इसकी चेकलिस्ट जुडिशल मजिस्ट्रेट को देनी होगी, जिसमें ये साक्ष्य होंगे।
परिवार कल्याण समिति: फिर 2017 में राजेश शर्मा बनाम उत्तर प्रदेश मामले में सर्वोच्च अदालत ने जिला स्तर पर परिवार कल्याण समिति बनाने का निर्देश दिया। कहा गया कि शिकायत समिति को भेजी जाएगी, जिसकी रिपोर्ट के बिना किसी को गिरफ्तार नहीं किया जाएगा। मगर 2018 में सोशल एक्शन फोरम फॉर मानवाधिकार बनाम संघ में सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की खंडपीठ ने इस निर्देश को वापस ले लिया कि सभी मामले अनिवार्य रूप से समिति के पास भेजे जाएंगे। अदालत ने कहा कि वह विधायिका का काम नहीं कर सकती। परंतु जोड़ा कि पुलिस को इन मामलों में सावधानी बरतनी चाहिए।
कानूनी आतंकवाद: 2024 में भी सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में साफ लिखा कि पति व उसके अन्य रिश्तेदारों के विरुद्ध अस्पष्ट और सामान्य आरोपों के आधार पर मुकदमा नहीं चलेगा। इसके लिए ठोस सबूतों के साथ स्पष्ट आरोप होने चाहिए। शीर्ष अदालत यह भी कहा कि न्यायालयों को देखना चाहिए कि व्यक्तिगत विद्वेष या निर्दोष रिश्तेदारों को परेशान करने के लिए कानून का दुरुपयोग न हो। अगर दंडाधिकारी गिरफ्तारी का कारण रेकॉर्ड किए बिना न्यायिक हिरासत की अवधि बढ़ाता है तो उसके खिलाफ विभागीय कार्रवाई होनी चाहिए। कोर्ट ने यहां तक कहा कि कुछ मामलों में तो यह 'कानूनी आतंकवाद' है।
फैसले में अंतर्विरोध: न्यायालय की चिंता सही है। लेकिन इस निर्णय में कई अंतर्विरोध भी हैं। जब 2018 में परिवार कल्याण समिति को मामले की जांच के लिए सुपुर्द करना विधायिका के कार्यक्षेत्र में अतिक्रमण माना गया तो इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 2022 में कैसे इसकी अनदेखी करते हुए निर्देश दिया कि पहले मामले को परिवार कल्याण समिति में भेजा जाए। फिर शीर्ष अदालत ने इसे सही भी ठहराया। यानी उसने अपने ही पुराने फैसले की अनदेखी की। ध्यान रहे, एक आलोचना शीर्ष अदालत की इस आधार पर हो रही है कि वह एक अदालत है या जितनी उसकी पीठें हैं उतनी अदालतें हैं। इस कारण कानून में स्पष्टता नहीं आती है। हाई कोर्ट और निचली अदालतों के सामने भी कई बार संशय की स्थिति होती है क्योंकि शीर्ष अदालत के फैसलों में कई बार अंतर्विरोध होता है।
विक्टिम को न हो नुकसान: किसी भी कानून के दुरुपयोग को रोकना बिल्कुल जरूरी है। इसके लिए झूठे मुकदमे करने वालों को मुकदमे चलाकर दंडित किया जाना चाहिए। इसका प्रावधान भी है, लेकिन ऐसा होता नहीं है। विडंबना यह है कि महिलाओं की सुरक्षा के लिए बनाए गए कानून का शिकार अधिकतर महिलाएं ही हो रही हैं। यह भी विचारणीय है कि दो महीने का कूलिंग ऑफ पीरियड हर मामले में उचित होगा या नहीं। याद रखना होगा कि हर आरोप झूठ नहीं होता है। जहां सचमुच उत्पीड़न है, वहां दो महीने का समय देना पीड़िता के खिलाफ जा सकता है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं)
सत्तर और अस्सी के दशकों में दहेज प्रताड़ना और मामलों में काफी वृद्धि हुई तब इस पर अंकुश लगाने के लिए 1983 में भारतीय सुधांशु रंजन दंड संहिता में धारा 498A जोड़ कर विवाहिता स्त्री के विरुद्ध पति या उसके परिजनों के क्रूर व्यवहार को संज्ञेय अपराध बनाते हुए सजा का प्रावधान किया गया।
बड़े पैमाने पर दुरुपयोग: आगे चलकर इस कानून का इस कदर दुरुपयोग शुरू हुआ कि बेगुनाह लोग जेल जाने लगे। चूंकि यह संज्ञेय अपराध है, इसलिए पुलिस को शिकायत के आधार पर गिरफ्तार करने का अधिकार है। इसमें पति के अलावा सास-ससुर, देवर, ननद आदि की गिरफ्तारी होने लगी। सुदूर शहरों में रहने वालों, यहां तक कि विदेश में रहने वाले रिश्तेदारों तक अभियुक्त बनाया गया और उनकी गिरफ्तारी हुई।
कूलिंग ऑफ पीरियड: जब इस कानून के दुरुपयोग की शिकायतें काफी बढ़ गई, तब अदालत ने इस मामले में दखल दिया। इस संदर्भ में पिछले 22 जुलाई को शीर्ष अदालत का शिवांगी बंसल मामले में दिया गया फैसला महत्वपूर्ण है। सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा 2022 में मुकेश बंसल बनाम उत्तर प्रदेश में जारी दिशानिर्देशों को सही ठहराया। हाई कोर्ट ने निर्देश दिया था कि दहेज प्रताड़ना के मामले में पुलिस तुरंत गिरफ्तारी नहीं करेगी। इसमें दो महीने का 'कूलिंग ऑफ' पीरियड (cooling off period) रहेगा, जिस दरम्यान सुलह-समझौता हो सकता है और पुलिस आरोपों का सत्यापन कर सकती है।
अदालती व्यवस्था: गौर करने की बात है कि यह फैसला अचानक नहीं आया। ऐसे अनेक मामलों में कानून के दुरुपयोग से जुड़े पहलू पर गौर करते हुए अदालतें व्यवस्थाएं देती रही हैं। 2014 में अर्नेश कुमार बनाम बिहार मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इस तरह की शिकायत मिलने पर पुलिस अभियुक्त को आनन-फानन में गिरफ्तार नहीं करेगी, बल्कि अपराध प्रक्रिया विधान (CRPC) की धारा 41 ( 1 ) (B) (ii) के तहत पहले संतुष्ट होगी कि गिरफ्तारी की जरूरत है। इसके लिए कारण एवं साक्ष्य देने होंगे । इसकी चेकलिस्ट जुडिशल मजिस्ट्रेट को देनी होगी, जिसमें ये साक्ष्य होंगे।
परिवार कल्याण समिति: फिर 2017 में राजेश शर्मा बनाम उत्तर प्रदेश मामले में सर्वोच्च अदालत ने जिला स्तर पर परिवार कल्याण समिति बनाने का निर्देश दिया। कहा गया कि शिकायत समिति को भेजी जाएगी, जिसकी रिपोर्ट के बिना किसी को गिरफ्तार नहीं किया जाएगा। मगर 2018 में सोशल एक्शन फोरम फॉर मानवाधिकार बनाम संघ में सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की खंडपीठ ने इस निर्देश को वापस ले लिया कि सभी मामले अनिवार्य रूप से समिति के पास भेजे जाएंगे। अदालत ने कहा कि वह विधायिका का काम नहीं कर सकती। परंतु जोड़ा कि पुलिस को इन मामलों में सावधानी बरतनी चाहिए।
कानूनी आतंकवाद: 2024 में भी सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में साफ लिखा कि पति व उसके अन्य रिश्तेदारों के विरुद्ध अस्पष्ट और सामान्य आरोपों के आधार पर मुकदमा नहीं चलेगा। इसके लिए ठोस सबूतों के साथ स्पष्ट आरोप होने चाहिए। शीर्ष अदालत यह भी कहा कि न्यायालयों को देखना चाहिए कि व्यक्तिगत विद्वेष या निर्दोष रिश्तेदारों को परेशान करने के लिए कानून का दुरुपयोग न हो। अगर दंडाधिकारी गिरफ्तारी का कारण रेकॉर्ड किए बिना न्यायिक हिरासत की अवधि बढ़ाता है तो उसके खिलाफ विभागीय कार्रवाई होनी चाहिए। कोर्ट ने यहां तक कहा कि कुछ मामलों में तो यह 'कानूनी आतंकवाद' है।
फैसले में अंतर्विरोध: न्यायालय की चिंता सही है। लेकिन इस निर्णय में कई अंतर्विरोध भी हैं। जब 2018 में परिवार कल्याण समिति को मामले की जांच के लिए सुपुर्द करना विधायिका के कार्यक्षेत्र में अतिक्रमण माना गया तो इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 2022 में कैसे इसकी अनदेखी करते हुए निर्देश दिया कि पहले मामले को परिवार कल्याण समिति में भेजा जाए। फिर शीर्ष अदालत ने इसे सही भी ठहराया। यानी उसने अपने ही पुराने फैसले की अनदेखी की। ध्यान रहे, एक आलोचना शीर्ष अदालत की इस आधार पर हो रही है कि वह एक अदालत है या जितनी उसकी पीठें हैं उतनी अदालतें हैं। इस कारण कानून में स्पष्टता नहीं आती है। हाई कोर्ट और निचली अदालतों के सामने भी कई बार संशय की स्थिति होती है क्योंकि शीर्ष अदालत के फैसलों में कई बार अंतर्विरोध होता है।
विक्टिम को न हो नुकसान: किसी भी कानून के दुरुपयोग को रोकना बिल्कुल जरूरी है। इसके लिए झूठे मुकदमे करने वालों को मुकदमे चलाकर दंडित किया जाना चाहिए। इसका प्रावधान भी है, लेकिन ऐसा होता नहीं है। विडंबना यह है कि महिलाओं की सुरक्षा के लिए बनाए गए कानून का शिकार अधिकतर महिलाएं ही हो रही हैं। यह भी विचारणीय है कि दो महीने का कूलिंग ऑफ पीरियड हर मामले में उचित होगा या नहीं। याद रखना होगा कि हर आरोप झूठ नहीं होता है। जहां सचमुच उत्पीड़न है, वहां दो महीने का समय देना पीड़िता के खिलाफ जा सकता है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं)
You may also like
किशोर के साथ कुकर्म करने वाला टेनरी संचालक और उसका मैनेजर गिरफ्तार
क्या खत्म हो गया है Guillermo Rojer और Kara Leona का रिश्ता?
दामाद के स्वागत में हुई चिकन पार्टी बनी काल, सास-जमाई की मौत, 3 की हालत नाज़ुक, फूड प्वाइजनिंग का मामला
झारखंड विधानसभा सत्र को लेकर सत्ता पक्ष ने बनाई रणनीति
IND vs ENG 5th Test: भारत ने पहले दिन 204 रन पर गंवाए 6 विकेट, नायर-सुंदर की साझेदारी ने संभाली पारी