प्रियरंजन भारती: बिहार में लड़ाई NDA और महागठबंधन के बीच है, लेकिन सियासी समीकरणों में इन दोनों ही अलायंस में शामिल कई छोटे दलों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। आखिर, इन छोटे दलों की इस चुनाव में क्या भूमिका होने जा रही है और क्यों ये सत्ता पक्ष और विपक्ष के लिए अहम हैं?
मुकेश की अहमियत । महागठबंधन ने तेजस्वी को सीएम फेस बनाया, तो डिप्टी सीएम पद के लिए मुकेश सहनी का नाम आगे किया। वह राज्य की 2.6% आबादी वाली मल्लाह जाति के स्वघोषित नेता हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में तेजस्वी के साथ इनकी जोड़ी सुर्खियों में थी। तब इनका स्ट्राइक रेट असरदार नहीं दिखा। इस चुनाव में बहुत जोर-आजमाइश और वामदलों व कांग्रेस की मदद से मुकेश की पार्टी VIP को 15 सीटें मिली हैं।
अति पिछड़ों की राजनीति । मल्लाह अति पिछड़ी जातियों में है। अति पिछड़ी जातियां विशेष तौर पर नीतीश कुमार के साथ जुड़ी रही हैं। BJP ने इसी समाज के सांसद राजभूषण निषाद को केंद्रीय मंत्री बना रखा है। तिरहुत प्रमंडल में मल्लाहों की सघन आबादी को देखते हुए इस समाज के बड़े क्षत्रप रहे कैप्टन जयनारायण निषाद की बहू को BJP ने मुकेश सहनी के असर की काट में उम्मीदवार बनाया है। मुकेश खुद को 'सन ऑफ मल्लाह' कहते हैं। देखना होगा कि दूसरी अति पिछड़ी जातियां उनका कितना समर्थन करती हैं।
मांझी का दम । बिहार के क्षत्रपों में प्रमुख हैं जीतनराम मांझी। उनकी पार्टी हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (HAM-सेकुलर) हर चुनाव में मुसहर जाति के वोट बैंक पर मोलभाव करती है। मगध क्षेत्र के गया और औरंगाबाद जिले की जातीय आबादी के दम पर मांझी का पलड़ा भारी रहता है। राज्य में मुसहर समाज अनुसूचित जाति का हिस्सा है, कुल आबादी में करीब 3%। 38 सीटें इस वर्ग के लिए आरक्षित हैं।
परिवार पॉलिटिक्स । जीतनराम मांझी की हसरत चिराग पासवान के समानांतर सजती है। 2020 के विधानसभा चुनाव में NDA ने उनकी पार्टी को 7 सीटें दी थीं, जिसमें से 4 पर जीत मिली। इस बार उनकी मांग 20 की थी। दरअसल, वह किसी तरह 6% वोट हासिल कर 'HAM' को मान्यता दिलाना चाहते हैं, लेकिन उनका दबाव चला नहीं। मांझी परिवार पॉलिटिक्स करने के लिए चर्चित हैं। इस बार भी 6 में से तीन सीटें परिवार को दी गई हैं।
गेम चेंजर । बिहार की राजनीति के एक और माहिर खिलाड़ी हैं उपेंद्र कुशवाहा। वह सूबे के 6-7% कुशवाहा वोटों पर असर रखते हैं। यह जाति 35-40 विधानसभा सीटों पर निर्णायक है। नीतीश कुमार की कुर्मी जाति और कुशवाहा को लव-कुश नाम दिया गया है। लोकसभा चुनाव में RJD ने NDA के लव-कुश समीकरण में सेंध लगाई थी। उपेंद्र को भी काराकाट लोकसभा सीट से हार मिली। उन्होंने परोक्ष रूप से BJP के एक स्थानीय नेता पर खुद को हरवाने का आरोप लगाया था। बाद में NDA ने उन्हें राज्यसभा में भेजकर नाराजगी दूर की। यहां कुशवाहा समाज को साइलेंट गेम चेंजर माना जाता है, इसलिए वह ट्रंप कार्ड साबित हो सकते हैं।
पीके का असर । बिहार चुनाव इस बार प्रशांत किशोर की वजह से ज्यादा रोचक हो चला है। शुरुआत में उन्हें 'ऑपरेशन लोटस' का हिस्सा माना जा रहा था, लेकिन उन्होंने NDA के दलों से लेकर महागठबंधन तक, किसी पर नरमी नहीं दिखाई। उपचुनाव में जनसुराज के प्रदर्शन को देखते हुए कहा जा रहा है कि वह जीत भले न पाए, पर किसी को हरवा जरूर सकती है। यही बात AIMIM के लिए कही जा सकती है। सीमांचल की 34 सीटों पर जीत-हार सीधे-सीधे मुस्लिम-यादव समीकरण पर केंद्रित है। यहीं पर ओवैसी की जमीन मजबूत है। ऐसे में उनकी पार्टी जितना उठेगी, महागठबंधन को उतना नुकसान होगा। इस क्षेत्र में AIMIM ने तीन दर्जन उम्मीदवार उतारे हैं।
तेज प्रताप का खतरा । महाभारत की कथा सिखाती है कि पुत्र मोह में आंखें नहीं मूंद लेनी चाहिए। लालू यादव का पुत्र मोह तेजस्वी यादव के लिए बेशक वरदान हो सकता है, पर बड़े पुत्र तेजप्रताप को पार्टी व परिवार से निकालना आत्मघाती भी। निर्वासित होकर तेज प्रताप और तेज बन गए हैं। उन्होंने जनशक्ति जनता दल बनाया है और किसी गठबंधन का हिस्सा न होते हुए भी लालू यादव के प्रभाव वाले क्षेत्रों में तेजस्वी यादव के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। बेशक वह खुद को राजनीतिक रूप से स्थापित न कर पाएं, पर सहानुभूति के सहारे छोटे भाई का नुकसान कर सकते हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
मुकेश की अहमियत । महागठबंधन ने तेजस्वी को सीएम फेस बनाया, तो डिप्टी सीएम पद के लिए मुकेश सहनी का नाम आगे किया। वह राज्य की 2.6% आबादी वाली मल्लाह जाति के स्वघोषित नेता हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में तेजस्वी के साथ इनकी जोड़ी सुर्खियों में थी। तब इनका स्ट्राइक रेट असरदार नहीं दिखा। इस चुनाव में बहुत जोर-आजमाइश और वामदलों व कांग्रेस की मदद से मुकेश की पार्टी VIP को 15 सीटें मिली हैं।
अति पिछड़ों की राजनीति । मल्लाह अति पिछड़ी जातियों में है। अति पिछड़ी जातियां विशेष तौर पर नीतीश कुमार के साथ जुड़ी रही हैं। BJP ने इसी समाज के सांसद राजभूषण निषाद को केंद्रीय मंत्री बना रखा है। तिरहुत प्रमंडल में मल्लाहों की सघन आबादी को देखते हुए इस समाज के बड़े क्षत्रप रहे कैप्टन जयनारायण निषाद की बहू को BJP ने मुकेश सहनी के असर की काट में उम्मीदवार बनाया है। मुकेश खुद को 'सन ऑफ मल्लाह' कहते हैं। देखना होगा कि दूसरी अति पिछड़ी जातियां उनका कितना समर्थन करती हैं।
मांझी का दम । बिहार के क्षत्रपों में प्रमुख हैं जीतनराम मांझी। उनकी पार्टी हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (HAM-सेकुलर) हर चुनाव में मुसहर जाति के वोट बैंक पर मोलभाव करती है। मगध क्षेत्र के गया और औरंगाबाद जिले की जातीय आबादी के दम पर मांझी का पलड़ा भारी रहता है। राज्य में मुसहर समाज अनुसूचित जाति का हिस्सा है, कुल आबादी में करीब 3%। 38 सीटें इस वर्ग के लिए आरक्षित हैं।
परिवार पॉलिटिक्स । जीतनराम मांझी की हसरत चिराग पासवान के समानांतर सजती है। 2020 के विधानसभा चुनाव में NDA ने उनकी पार्टी को 7 सीटें दी थीं, जिसमें से 4 पर जीत मिली। इस बार उनकी मांग 20 की थी। दरअसल, वह किसी तरह 6% वोट हासिल कर 'HAM' को मान्यता दिलाना चाहते हैं, लेकिन उनका दबाव चला नहीं। मांझी परिवार पॉलिटिक्स करने के लिए चर्चित हैं। इस बार भी 6 में से तीन सीटें परिवार को दी गई हैं।
गेम चेंजर । बिहार की राजनीति के एक और माहिर खिलाड़ी हैं उपेंद्र कुशवाहा। वह सूबे के 6-7% कुशवाहा वोटों पर असर रखते हैं। यह जाति 35-40 विधानसभा सीटों पर निर्णायक है। नीतीश कुमार की कुर्मी जाति और कुशवाहा को लव-कुश नाम दिया गया है। लोकसभा चुनाव में RJD ने NDA के लव-कुश समीकरण में सेंध लगाई थी। उपेंद्र को भी काराकाट लोकसभा सीट से हार मिली। उन्होंने परोक्ष रूप से BJP के एक स्थानीय नेता पर खुद को हरवाने का आरोप लगाया था। बाद में NDA ने उन्हें राज्यसभा में भेजकर नाराजगी दूर की। यहां कुशवाहा समाज को साइलेंट गेम चेंजर माना जाता है, इसलिए वह ट्रंप कार्ड साबित हो सकते हैं।
पीके का असर । बिहार चुनाव इस बार प्रशांत किशोर की वजह से ज्यादा रोचक हो चला है। शुरुआत में उन्हें 'ऑपरेशन लोटस' का हिस्सा माना जा रहा था, लेकिन उन्होंने NDA के दलों से लेकर महागठबंधन तक, किसी पर नरमी नहीं दिखाई। उपचुनाव में जनसुराज के प्रदर्शन को देखते हुए कहा जा रहा है कि वह जीत भले न पाए, पर किसी को हरवा जरूर सकती है। यही बात AIMIM के लिए कही जा सकती है। सीमांचल की 34 सीटों पर जीत-हार सीधे-सीधे मुस्लिम-यादव समीकरण पर केंद्रित है। यहीं पर ओवैसी की जमीन मजबूत है। ऐसे में उनकी पार्टी जितना उठेगी, महागठबंधन को उतना नुकसान होगा। इस क्षेत्र में AIMIM ने तीन दर्जन उम्मीदवार उतारे हैं।
तेज प्रताप का खतरा । महाभारत की कथा सिखाती है कि पुत्र मोह में आंखें नहीं मूंद लेनी चाहिए। लालू यादव का पुत्र मोह तेजस्वी यादव के लिए बेशक वरदान हो सकता है, पर बड़े पुत्र तेजप्रताप को पार्टी व परिवार से निकालना आत्मघाती भी। निर्वासित होकर तेज प्रताप और तेज बन गए हैं। उन्होंने जनशक्ति जनता दल बनाया है और किसी गठबंधन का हिस्सा न होते हुए भी लालू यादव के प्रभाव वाले क्षेत्रों में तेजस्वी यादव के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। बेशक वह खुद को राजनीतिक रूप से स्थापित न कर पाएं, पर सहानुभूति के सहारे छोटे भाई का नुकसान कर सकते हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
You may also like

कौन हैं वो कैंडिडेट जिसके लिए लालू खुद उतरे चुनाव मैदान में, पटना में 15KM का भव्य रोड शो; JCB से फूलों की वर्षा

'पढ़ने से लेकर खाना परोसने तक का तरीका अलग', विदेश में भारतीय छात्र को लगा 'कल्चर शॉक', शेयर किया एक्सपीरियंस

रीता भादुड़ी बर्थडे: किडनी की समस्या के बावजूद सेट पर हमेशा सक्रिय रहीं एक्ट्रेस, काम के प्रति जुनून और समर्पण बना लोगों के लिए प्रेरणा

पीएम मोदी 25 नवंबर को कुरुक्षेत्र में गुरु तेग बहादुर के 350वें शहीदी दिवस कार्यक्रम में हिस्सा लेंगे

अब समय आ चुका है कि देश की बेटियां सपना देखें: रागिनी नायक




