लाइव हिंदी खबर :-धर्म से विमुख सामान्य मनुष्य में अध्यात्म की चेतना जागृत करने वाले एक अलौकिक अवतार गुरु नानक देव जी हैं। यूं तो गुरु नानक देव जी के कई चमत्कारों के बारे में सुनने को मिलता है। लेकिन, आज गुरु नानक जयंती पर हम आपको उनके एक खास चमत्कार के बारे में बताने जा रहे हैं, जो उन्होंने देवभूमि उत्तराखंड में किया…
दरअसल गुरु नानक देवजी और भाई मरदाना देश-दुनिया का भ्रमण कर परमात्मा के संदेश का प्रचार कर रहे थे। एक बार वे पर्वतीय क्षेत्र से नीचे उतरकर मैदानों की ओर जा रहे थे। रास्ते में नैनीताल की एक घाटी आई। वहां कुछ साधु बैठे थे।
वे ध्यान लगाने का अभ्यास कर रहे थे। जब ध्यान नहीं लगता तो गांजा, भांग, अफीम, तंबाकू और अन्य मादक पदार्थों का सेवन करते, ताकि ध्यान में मन लगे। इससे ध्यान में मन लगना तो दूर उनका आपस में ही भारी झगड़ा हो जाता था।
स्थानीय लोगों के बीच यह बात मशहूर थी कि ये चमत्कारी साधु हैं। साधुओं के मन में यह भाव था कि वे सिद्ध साधु हैं इसलिए वे आम लोगों से अच्छा बर्ताव नहीं करते थे।
गुरु नानक देवजी ने जब देखा कि ये लोग तो नशे में चूर हैं। जो खुद होश में नहीं है वह खुदा में मन कैसे लगा सकता है? नशा तो नाश की जड़ है। फिर ये लोग लोगों को सद्मार्ग का उपदेश कैसे दे सकते हैं?
गुरुदेव ने वहां एक पेड़ के नीचे आसन जमाया। सर्दी ज्यादा थी, इसलिए भाई मरदाना ने कुछ लकड़ियां इकट्ठी कर लीं। लकड़ियां जलाने के लिए आग की जरूरत थी। इसलिए मरदाना साधुओं के डेर में गए ताकि वहां से आग ले आएं, लेकिन साधुओं ने उन्हें आग नहीं दी।
मरदाना लौट आए और पूरी बात गुरुदेव से कही। आपने फरमाया – पत्थरों से आग जला लो। मरदाना ने वैसा ही किया और आग जल गई। थोड़ी देर बाद आकाश में बादल छा गए। बिजली चमकने लगी और बारिश शुरू हो गई।
साधुओं की धूनियां बुझ गईं लेकिन घनघोर बारिश के बावजूद नानक की धूनी जलती रही। बारिश थमने के बाद सर्दी का असर बढ़ गया। अब साधुओं को आग की जरूरत महसूस हुई। उनकी मजबूरी थी इसलिए वे नानक देवजी के पास आए।
कुछ देर पहले वे खुद इनकार कर रहे थे, लेकिन अब उनकी जरूरत थी। नानक देवजी ने फरमाया – अग्नि, पानी और हवा तो परमात्मा की देन हैं। फिर मुझे क्या हक है कि मैं किसी को मना कर सकूं?
यह सुनकर वे साधु लज्जित हुए और अपने रवैए के लिए माफी मांगने लगे। नानक देवजी का नाम जितना बड़ा था, उनका दिल भी उतना ही बड़ा था। उन्होंने सबको माफ कर दिया और बोले, परमात्मा की अनुभूति चाहते हो तो सबसे पहले नशा करना छोड़ दो। नशा इंसान को नाश की ओर लेकर जाता है। नशे के साथ ही अहंकार भी छोड़ दो। अपनी दौलत, सिद्धि, तपस्या और यहां तक कि त्याग का भी अहंकार पतन का कारण बनता है।
नानक देव के अनमोल वचन सुनकर साधुओं की आंखें खुल गईं। उन्होंने कहा, हम ऐसा ही करेंगे। दूसरे दिन गुरुदेव और भाई मरदाना अपनी राह चल दिए, ताकि किसी और का उद्धार कर सकें।
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