New Delhi, 4 अक्टूबर . बच्चों में अस्थमा एक गंभीर लेकिन नियंत्रित की जाने वाली समस्या है. यह एक दीर्घकालिक श्वसन रोग है, जिसमें सांस की नलियां संकरी और अत्यधिक संवेदनशील हो जाती हैं. जब बच्चा धूल, धुआं, परागकण, पालतू जानवरों के बाल, प्रदूषण, ठंडी हवा या संक्रमण के संपर्क में आता है तो उसकी सांस की नलियां सिकुड़ जाती हैं और उसे सांस लेने में कठिनाई होती है.
छोटे बच्चों में यह स्थिति अधिक खतरनाक हो सकती है, क्योंकि वे अपने लक्षण स्पष्ट रूप से बता नहीं पाते और माता-पिता कई बार इसे सामान्य सर्दी-खांसी समझकर नजरअंदाज कर देते हैं. यही कारण है कि बच्चों में अस्थमा की सही पहचान और समय पर इलाज बेहद जरूरी है.
अस्थमा होने के पीछे कई कारण होते हैं. इसमें वंशानुगत कारण सबसे प्रमुख हैं, यदि परिवार में किसी को अस्थमा या एलर्जी रही है तो बच्चों में इसका खतरा अधिक होता है. इसके अलावा एलर्जी, बार-बार होने वाले श्वसन संक्रमण, ठंडी हवा, मौसम का अचानक बदलाव, पोषण की कमी और कमजोर इम्यूनिटी भी इसके बड़े कारण हैं. मानसिक तनाव और भावनात्मक दबाव जैसे ज्यादा डरना या रोना भी बच्चों में अस्थमा अटैक को ट्रिगर कर सकते हैं.
हर खांसी अस्थमा नहीं होती, लेकिन यदि बच्चा बार-बार खांसता है, खासकर रात में या सुबह जल्दी, सांस लेते समय सीटी जैसी आवाज आती है, छाती में जकड़न और खेलते-दौड़ते समय जल्दी थकान महसूस होती है, तो यह अस्थमा का संकेत हो सकता है.
सर्दियों में बच्चों में अस्थमा का खतरा अधिक बढ़ जाता है क्योंकि ठंडी और शुष्क हवा से अटैक का जोखिम दोगुना हो जाता है. कई लोग मानते हैं कि दूध और ठंडी चीजें अस्थमा का कारण हैं, लेकिन वास्तविकता यह है कि धूल-मिट्टी, प्रदूषण और एलर्जी ज्यादा ट्रिगर करते हैं. वहीं, खेलकूद से भी अस्थमा ट्रिगर हो सकता है. इसमें दौड़ने या खेलने के बाद बच्चा सांस लेने में कठिनाई महसूस करता है.
बचाव और देखभाल के लिए माता-पिता को विशेष सतर्कता बरतनी चाहिए. बच्चों को धूल, धुएं और पालतू जानवरों के बालों से दूर रखना चाहिए. घर में नमी और फफूंद न बनने दें, क्योंकि यह अस्थमा को और बिगाड़ सकती है. बच्चों को पौष्टिक आहार दें और इम्यूनिटी बढ़ाने वाले खाद्य पदार्थ जैसे हल्दी वाला दूध, तुलसी, अदरक और गिलोय का सेवन करवाएं. हल्का व्यायाम और प्राणायाम, विशेषकर अनुलोम-विलोम, बच्चों की सांस नलियों को मजबूत करने में मदद करता है. मौसम बदलते समय बच्चों की देखभाल पर और अधिक ध्यान देना चाहिए.
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पीआईएम/डीएससी
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