बेंगलुरु, 28 जुलाई . कर्नाटक में किसानों की आत्महत्या का संकट थमने का नाम नहीं ले रहा. सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 2024 से जुलाई 2025 के बीच राज्य में 981 किसानों ने आत्महत्या की. 1 साल 4 महीने के वक्त में इतनी खुदकुशी किसानों की दयनीय स्थिति को उजागर करती है.
यह स्थिति राज्य में कृषि संकट और अपर्याप्त समर्थन की गंभीर तस्वीर पेश करती है. हवेरी जिला इस सूची में सबसे ऊपर है, जहां 128 किसानों ने आत्महत्या की. इसके बाद मैसूरु (73), धारवाड़ (72), और बेलगावी (71) का नंबर आता है. वहीं, बेंगलुरु शहरी, बेंगलुरु ग्रामीण, उडुपी, और कोलार जिलों में कोई भी किसान आत्महत्या दर्ज नहीं हुई.
अन्य जिलों में हासन (47), बीदर (45), शिवमोग्गा (45), गदग (44), यदगिर (43), दावणगेरे (42), चिक्कमगलूरु (39), मांड्या (39), बागलकोट (35), चित्रदुर्गा (34), विjaipurा (27), रायचूर (25), कोप्पल (25), तुमकुरु (17), उत्तर कन्नड़ (14), दक्षिण कन्नड़ (1), कोडगु (1), बल्लारी (1), और चामराजनगर (1) में आत्महत्याएं दर्ज की गईं.
सरकार ने 807 प्रभावित परिवारों को मुआवजा दिया है, लेकिन 18 मामलों में राहत अभी भी लंबित है. किसानों की आत्महत्या के पीछे कई कारण बताए जाते हैं, जैसे कर्ज का बोझ, फसल की विफलता, कम आय, और बाजार तक पहुंच की कमी. कर्नाटक में बार-बार सूखा, अनियमित बारिश, और महंगे कृषि निवेश ने किसानों को आर्थिक तंगी में धकेल दिया है.
हालांकि सरकार ने समय-समय पर कर्ज माफी, बीज और उर्वरक सब्सिडी दी है. सरकार की ओर से गठित समितियों और राहत पैकेज के बावजूद, आत्महत्याओं की संख्या में कमी नहीं आ रही है. किसान संगठनों और विपक्षी दलों ने सरकार से तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है. उनका कहना है कि किसानों को उचित फसल मूल्य, ऋण राहत और बेहतर सिंचाई सुविधाएं प्रदान की जाएं.
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वीकेयू/केआर
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