New Delhi, 5 सितंबर . सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने Friday को New Delhi के मानेकशॉ सेंटर में लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) केजेएस ढिल्लों द्वारा लिखी पुस्तक ‘ऑपरेशन सिंदूर: पाकिस्तान में भारत के गहरे हमलों की अनकही कहानी’ का विमोचन किया.
यह किताब इस साल की शुरुआत में नियंत्रण रेखा (एलओसी) के पार भारत के निर्णायक और बहु-आयामी सैन्य अभियान की कहानी बयां करती है. किताब के विमोचन के दौरान जनरल द्विवेदी ने बताया कि यह अभियान केवल 88 घंटों तक सीमित नहीं था, जैसा कि आमतौर पर समझा जाता है.
उन्होंने कहा कि आप सोच रहे होंगे कि युद्ध 10 मई को खत्म हो गया. नहीं, यह काफी समय तक चला, क्योंकि कई महत्वपूर्ण फैसले लेने थे. कब शुरू करना है, कब रोकना है, समय, स्थान और संसाधनों का कितना उपयोग करना है-इन सभी मुद्दों पर लगातार चर्चा होती रही.
सेना प्रमुख ने बताया कि 22-23 अप्रैल को सेना ने दिग्गज सैनिकों के साथ मिलकर कई रणनीतिक विकल्पों पर विचार-विमर्श किया. उन्होंने कहा कि मैंने 22-23 अगस्त को कई दिग्गजों से बात की. उन्होंने कई शानदार विचार दिए, लेकिन उन्हें राष्ट्रीय हित के हिसाब से व्यवस्थित करना जरूरी था. हर कार्रवाई और हर सोचा-समझा निष्क्रियता का दीर्घकालिक प्रभाव होता है.
ऑपरेशन के दौरान एकजुटता पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि भारतीय सेना एक लयबद्ध लहर की तरह आगे बढ़ी. उन 88 घंटों में सभी लोग एकजुट थे और अपने आदेशों को अच्छी तरह जानते थे.
जनरल द्विवेदी ने कहा कि यह किताब सिर्फ एक सैन्य ऑपरेशन की कहानी नहीं है.
उन्होंने बताया कि यह केवल सैन्य कार्रवाई का विवरण नहीं है, बल्कि भारतीय सेना और देश के साहस, पेशेवर रवैये और अटल भावना को श्रद्धांजलि है.
उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि नियंत्रण रेखा (एलओसी) की लड़ाइयों के महत्व को अक्सर नजरअंदाज किया जाता है.
उन्होंने आगे कहा कि हम इस तरह के संघर्षों के इतने आदी हो गए हैं कि हम अक्सर इसकी अहमियत को समझ नहीं पाते—इसमें शामिल भावनाओं, नुकसान, उपलब्धियों और चुनौतियों को. जैसा कि आप जानते हैं, जब दूसरी तरफ से मरणोपरांत पुरस्कारों की सूची आई, तो मैं कह सकता हूं कि इसका अधिकांश श्रेय नियंत्रण रेखा (एलओसी) को जाता है.
यह किताब ऑपरेशन सिंदूर के इन अनकहे पहलुओं को दर्ज करने की कोशिश करती है, ताकि इसकी सीख और भावना को भविष्य के लिए संरक्षित किया जा सके.
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पीएसके/डीएससी
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