एक राजा बहुत ही अहंकारी हुआ करता था। ये खबर आप हिमाचली खबर में पढ़ रहे हैं। । लेकिन साथ में ही ये राजा दान करने में भी काफी विश्वास करता था और समय-समय पर चीजों का दान किया करता था। एक दिन राजा ने सोचा की कल मेरा जन्मदिवस है और इस बार मैं अपने जन्मदिवस पर किसी एक व्यक्ति की सारी इच्छाएं पूरी करूंगा। राजा के जन्मदिवस पर राज महल में बेहद ही भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए राज्य की पूरी प्रजा को न्योता दिया गया। राज्य की पूरी प्रजा ने एक साथ राज महल में आकर राजा को बधाई दी। प्रजा के साथ एक साधु भी राजा को उनके जन्मदिवस की बधाई देने के लिए आया हुआ था।
इस साधु से मिलकर राजा को काफी अच्छा लगा और राजा ने सोचा की मैं क्यों ना इस साधु की ही इच्छा पूरी कर दूं। राजा ने साधु से कहा, मैंने अपने जन्मदिवस पर किसी एक व्यक्ति की सभी इच्छाएं पूरी करने का सोचा है और मेैं ये अवसर आप को देता हूं। आप मुझे बताएं की आपको क्या चाहिए। मैं आपकी सभी इच्छाओं को तुरंत पूरा कर दूंगा। साधु ने राजा की बात सुनकर कहा, महाराज मुझे कुछ नहीं चाहिए मैं आप से मिल लिया यहीं मेरे लिए बहुत है। लेकिन राजा ने साधु की बात नहीं मानी और साधु को कहा, ठीक है मैं आपको एक गांव दे देता हूं। आप इस गांव पर राज करों।
साधु ने राजा से कहा, महाराज गांव पर वहां पर रहने वाले लोगों का हक है ना कि आपका। इसलिए मैं आप से गांव नहीं ले सकता हूं। राजा विचार में पड़ गया की मैं अब साधु को क्या दूं। राजा ने काफी विचार करने के बाद साधु से कहा, आप ये महल ले लीजिए। साधु ने कहा, महाराज इस महल पर आपकी प्रजा का हक और ये महल प्रजा की संपत्ति है।
इसके बाद राजा ने साधु से कहा, आप मुझे अपना सेवक बना लीजिए। मैं दिन रात आपकी सेवा करूंगा। साधु ने राजा को अपना सेवक बनाने से भी मना कर दिया और राजा से कहा, महाराज आप पर आपकी पत्नी और बच्चों का अधिकार है और मैं उनसे ये अधिकार नहीं छीन सकता हूं। इसलिए मैं आपको अपना सेवक नहीं बना सकता हूं। अगर आप वाकई मुझे कुछ देना चाहते हैं तो आप मुझे अपने अहंकार का दान कर दीजिए। अगर आप अपने अहंकार का दान कर देंगे तो आपका जीवन सुखों से भर जाएगा। अहंकार के कारण ही कई सारे राजाओं का जैसे रावण, कंस और दुर्योधन का विनाश हुआ है और मैं नहीं चाहता की आपका विनाश भी इन राजाओं की तरह ही हो। साधु की ये बात सुनकर राजा ने अपना अहंकार त्याग ने का वादा साधु से किया और साधु के पैर छूकर उनसे आशीर्वाद लिया। इसके बाद राजा ने सदा के लिए अपना अहंकार त्याग दिया और राज्य की प्रजा की सेवा में लग गए।
कहानी से मिली सीख: इंसान को अपने जीवन से अहंकार त्याग देना चाहिए। क्योंकि अहंकार ही इंसान का सबसे बड़ा दुश्मन होता है और उसके विनाश का कारण बनता है।
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