भगवान श्री कृष्ण को विष्णु का अवतार माना जाता है, जो सृष्टि के पालनकर्ता हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि कृष्णावतार में उनकी मृत्यु कैसे हुई?
आइए जानते हैं भगवान श्री कृष्ण की मृत्यु का समय और कारण।
द्वापर युग में भगवान विष्णु ने श्री कृष्ण के रूप में अवतार लिया था। हालांकि, यह कम ही लोग जानते हैं कि उनकी मृत्यु रामावतार के एक छल का परिणाम थी। पौराणिक कथाओं के अनुसार, महाभारत युद्ध में कौरवों की हार के बाद माता गांधारी ने श्री कृष्ण को श्राप दिया। उन्होंने कहा कि जिस तरह कौरवों का वंश समाप्त हुआ, उसी प्रकार तुम्हारा वंश भी समाप्त होगा।
यदुवंश का अंत
महाभारत के मौसल पर्व में भगवान कृष्ण की मृत्यु का वर्णन मिलता है। यह घटना महाभारत युद्ध के 35 साल बाद हुई। उस समय द्वारका में माता गांधारी के श्राप का प्रभाव दिखने लगा था। श्री कृष्ण ने यदुवंशियों को लेकर प्रभास क्षेत्र में जाने का निर्णय लिया। वहां उन्होंने ब्राह्मणों को अन्नदान दिया और यदुवंशियों से कहा कि वे अब मृत्यु का इंतजार करें।
कुछ समय बाद, सात्यकि और कृतवर्मा के बीच विवाद हुआ, जिसके परिणामस्वरूप आपसी युद्ध छिड़ गया। इस संघर्ष में श्री कृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न और अन्य यदुवंशी मारे गए, केवल बब्रु और दारूक ही बचे।
बलराम का देहत्याग
यदुवंश के अंत के बाद, श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम समुद्र तट पर ध्यान में लीन हो गए और स्वधाम लौट गए। बलराम के देह त्याग के बाद, श्री कृष्ण एक पीपल के पेड़ के नीचे ध्यान की मुद्रा में लेटे थे। तभी एक शिकारी जरा वहां आया और उसने श्री कृष्ण के तलवे पर तीर चला दिया।
जब जरा ने देखा कि उसने श्री कृष्ण को घायल कर दिया है, तो वह पछताया। श्री कृष्ण ने उसे बताया कि यह उनके पूर्व जन्म के कर्मों का फल है। जरा को बताया गया कि वह पूर्व में राजा बलि थे, और इसलिए इस जन्म में उनकी मृत्यु का कारण भी वही है।
जरा के जाने के बाद, श्री कृष्ण ने अपने सारथी दारुक को द्वारका भेजा, ताकि सभी को सूचित किया जा सके कि यदुवंश समाप्त हो चुका है। इसके बाद सभी देवताओं और अप्सराओं ने श्री कृष्ण की आराधना की, और अंततः उन्होंने अपने नेत्र बंद कर लिए और वैकुण्ठ धाम को लौट गए।
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