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इसराइली हमले से उपजी त्रासदी में एक फ़लस्तीनी गर्भवती महिला और उनके दो बच्चों की कहानी

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image BBC जंग के बीच उत्तरी ग़ज़ा के जबालिया में रह रहे हैं हालूम (बाएं) और हामूद

पिछले साल अक्तूबर में जब इसराइल ने ग़ज़ा में युद्ध शुरू किया तो उसके कुछ दिनों बाद ही दो फ़लस्तीनियों ने बीबीसी के लिए अपनी रोज़ाना की ज़िंदगी को फ़िल्माना शुरू कर दिया था.

जान बचाने के लिए असील ग़ज़ा पट्टी के दक्षिणी हिस्से की ओर चली गई थीं जबकि ख़ालिद ने उत्तर में ही रुकना पसंद किया.

उन्होंने धमाकों, इलाक़ों को कई बार ख़ाली कराए जाने, मौतों और इस संघर्ष में फँस गए बच्चों ने जो सदमा अनुभव किया, इन सबको रिकॉर्ड किया.

इन दोनों की कहानियां पढ़िएः-

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ख़ालिद

उत्तरी ग़ज़ा में बम से क्षतिग्रस्त हुए एक घर की बैठक में छह साल के हमूद और चार साल की हालूम स्वास्थ्यकर्मी बनने का खेल खेल रहे हैं.

दोनों ने एक छोटी सी गुड़िया ले रखी है और उस खिलौने पर काल्पनिक पट्टियां बांध रहे हैं.

हमूद ने कहा, “वो घायल हो गई है. उसके ऊपर बहुत सारा मलबा गिर गया है.”

ये ऐसा दृश्य है, जिसे वो और उनकी बहन ने पिछले साल से ही ग़ज़ा में कई बार घटित होते हुए देखा है.

हमास संचालित स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, अक्तूबर 2023 में जब से युद्ध शुरू हुआ है, तब से अब तक मारे गए लोगों में एक तिहाई बच्चे हैं.

सात अक्तूबर को हमास ने इसराइल में हमला किया था, जिसमें 1200 लोग मारे गए थे. इसके बाद इसराइल ने हमास के ख़िलाफ़ जंग शुरू कर दी थी.

बच्चों के पिता ख़ालिद बेचैनी के साथ इस दृश्य को दूर से ही देख रहे हैं.

ख़ालिद कहते हैं, “बच्चों को ऐसे खेल नहीं खेलना चाहिए. जब मैं उन्हें ऐसा करते हुए देखता हूँ तो मेरा दिल टूट जाता है.”

युद्ध शुरू होने के कुछ महीने बाद ही, पिछले दिसंबर में उत्तरी ग़ज़ा के अस्पताल ठप हो गए और वहाँ ऑपरेशन बंद हो गया.

ऐसे हालात में भी ख़ालिद ने उत्तरी ग़ज़ा को ख़ाली करके दक्षिण में जाने के इसराइली आदेश को नहीं माना और उत्तरी ग़ज़ा में जबालिया के पड़ोस में ही रुक कर अपने समुदाय को मेडिकल सेवाएं देने का फ़ैसला किया.

हालांकि ख़ालिद कोई डॉक्टर नहीं हैं बल्कि फ़िज़ियोथेरेपिस्ट के रूप में उनकी ट्रेनिंग हुई है और एक मेडिकल सप्लाई कंपनी के साथ वितरक के रूप में काम किया था.

उन्होंने कहा, “मेरे पड़ोस के लोग जानते हैं कि मैं डॉक्टर नहीं, एक फ़िज़ियोथेरेपिस्ट हूँ. लेकिन मुश्किल हालात में मैंने उनसे कहा कि मैं पट्टियां बदल सकता हूँ और टांके लगा सकता हूँ. ख़ासकर बच्चों के. अगर मैं जाता हूँ तो उनकी ज़िंदगी जा सकती है, जिनकी मैं परवाह करता हूं क्योंकि वहाँ कोई अस्पताल या क्लीनिक नहीं है.”

उन्होंने शल्य चिकित्सा के अपने मामूली ज्ञान और अपने पास मौजूद दवाओं के साथ, जिनमें कुछ एक्सपायर हो गई थीं, ख़ालिद ने अपने घर में ही क्लीनिक खोली, जहाँ उन्होंने बच्चों के इलाज पर ध्यान केंद्रित किया.

उनके बच्चों ने जो देखा, वैसी नक़ल उतारना शुरू कर दिया.

जब भाई और बहन स्वास्थ्यकर्मी की नक़ल करते हुए खेल रहे थे, हामूद चिल्लाया, “एम्बुलेंस! उसे एम्बुलेंस में ले चलो.” इस जंग में उन्होंने यह नया खेल सीखा है.

ख़ालिद ये सब सुनते हैं कि उनका बेटा ये समझने की कोशिश करता है कि घाव किस प्रक्रार का है. क्या ये मिसाइल, नुकीली कीलों या इमारत के ध्वस्त होने से लगा घाव है?

ख़ालिद ने कहा, “हामूद अपने खिलौने की आवाज़ से अधिक धमाकों की आवाज़ से परिचित है और नन्ही हालूम को अपनी उम्र के लिहाज से अधिक देखना पड़ा है. मुझे डर है कि कहीं इनके ऊपर इस जंग का दीर्घकालिक मनोवैज्ञानिक असर न हो.”

इंटरनेशनल रेस्क्यू कमिटी ने कहा है कि ग़ज़ा के बच्चों पर विस्थापन, सदमा और स्कूल छूटने का असर लंबे समय तक बना रहेगा.

उत्तर में रहते हुए, ख़ालिद के बच्चों ने न केवल मनोवैज्ञानिक सदमा झेला बल्कि अभूतपूर्व भूख का भी सामना किया. जून में संयुक्त राष्ट्र ने अनुमान लगाया था कि ग़ज़ा में रहने वाले 96% लोग भयंकर खाद्य असुरक्षा से जूझ रहे थे.

एक बार हमूद अपनी छत पर एक झंडा लहरा रहा था और एक विमान की ओर बेसब्री से इशारा कर रहा था कि वो सहायता सामग्री उसके घर के पास गिराए, तभी दिल दहलाने वाला एक ज़ोरदार धमाका हुआ.

एक इसराइली लड़ाकू विमान ने पास की एक इमारत पर बम गिराया था और कुछ गली दूर से ही धुएं का गुबार देखा जा सकता था.

हामूद ने उदासी के साथ कहा, “बम गिराने वाले विमान मुझे नहीं पसंद हैं. मैं चाहता हूं कि वे इसकी बजाय हमारे लिए खाना गिराएं.”

image BBC असील image BBC हयात का जन्म दिसंबर 2023 में ग़ज़ा में हुआ था और तब से ही उसे जंग के बारे में पता है

ग़ज़ा पट्टी के दक्षिण में 24 साल की मां असील को चिंता सता रही है कि वो अपनी नवजात बच्ची हयात की भूख कैसे शांत करेंगी.

असील कहती हैं, “बाज़ार में खाद्य सामग्री नहीं है ताकि मैं ठीक से कुछ खा सकूं और उसे स्तनपान करा सकूं. मैं उसे शिशु आहार देती हूं.”

यूनाइटेड नेशंस पापुलेशन फ़ंड (यूएनिएफ़पीए) ने इसी महीने चेतावनी दी थी कि ग़ज़ा में 17,000 गर्भवती महिलाएं भुखमरी की कगार पर हैं.

असील के पति इब्राहिम कहते हैं, “शिशु आहार, डायपर या बच्चों की ज़रूरत की हर चीज जंग के दौरान बेइंतहा महंगी हो चुकी है.” वो कहते हैं कि इसे पाना भी एक चुनौती है.

अपनी बच्ची के साथ शुरुआत के कुछ महीने ऐसे बीतेंगे, असील ने ऐसी कल्पना भी नहीं की थी.

जंग के पहले सप्ताह में असील, उनके पति और उनके 14 महीने की बेटी रोज़ को अपना घर छोड़कर दक्षिण की ओर जाना पड़ा था क्योंकि इसराइल ने उत्तरी ग़ज़ा खाली करने के आदेश जारी किए थे.

संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि अक्तूबर 2023 में जब से युद्ध शुरू हुआ है, ग़ज़ा में रहने वाले 10 में से 9 फ़लस्तीनी शख़्स को कम से कम एक बार विस्थापित होना पड़ा था.

एक निर्धारित सुरक्षित रास्ते से होकर, आठ महीने की गर्भवती असील को दक्षिण की ओर मीलों पैदल चलना पड़ा था.

वो कहती हैं, “हमारे पास पीने का पानी भी नहीं था और मुझे एनीमिया हो गया था. ज़मीन पर शव पड़े हुए थे. मैं बस अपनी बेटी रोज़ और गर्भ में पल रहे शिशु के बारे में सोच पा रही थी.”

असील ने कहा कि पति और उनके बीच एक समझौता हुआ कि “अगर उन्हें कुछ होता है तो मैं अकेले ही आगे का रास्ता तय करना जारी रखूंगी और मैं अपनी बेटी रोज़ और गर्भ में पल रहे बच्चे का ख्याल रखूंगी. और अगर मैं बेहोश हो जाती हूं तो, उन्हें पता था कि उन्हें मुझे छोड़कर हमारी बेटी के साथ आगे जाना होगा.”

जब दक्षिण में अपेक्षाकृत सुरक्षित इलाक़े दैर अल-बालाह तक वे पहुंचे, एक नई समस्या खड़ी हो गई. वहां मुश्किल से ही कोई अस्पताल चालू हालत में था, जहां असील डिलीवरी करा सकें.

नुसेइरत में अल आवदा अस्पताल ही सबसे क़रीबी वो जगह थी, जहां डिलीवरी जैसी मेडिकल इमर्जेंसी को संभाला जा सकता था.

आख़िरकार असील को 13 दिसंबर को बेटी हुई, हयात. उसका नाम अरबी शब्द से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है, ज़िंदगी और यह नाम इस उम्मीद को बनाए रखने के रूप में था कि जब युद्ध ख़त्म हो जाएगा, वे पूरी तरह खुशहाल जीवन जी सकेंगे.

असील कहती हैं, “इन सब तबाही के बीच उसके जन्म ने मेरे अंदर जान फूंक दी. वो मुझे याद दिलाती है कि मुश्किल से मुश्किल हालात में भी ज़िंदगी आगे बढ़ती रह सकती है.”

इब्राहिम पेशे से फ़ोटोग्राफ़र हैं और अपने परिवार की मदद के लिए उन्हें अपनी पत्नी, बेटी रोज़ और अभी अभी जन्मी बच्ची को पीछे छोड़कर काम पर जाना पड़ा.

एक बार तो वो गोलीबारी के बीच फंस गए थे और बाल-बाल बचे. उन्होंने बताया, “मैं ये सब सिर्फ़ इसलिए कर रहा था कि उन्हें ज़िंदगी की बुनियादी ज़रूरतें, नैपी, शिशु आहार और कपड़े मुहैया करा सकूं.”

उन्होंने कहा, “मुझे महसूस होता है कि पूरे ग़ज़ा का भार मेरे ही कंधों पर है, मैं अपनी बेटियों को लेकर बहुत चिंतित हूं और ऐसा लगता है कि मैं अपनी नवजात को वो सब देने में असमर्थ हूं.”

मई में दैर अल-बलाह में इब्राहिम और असील का फिर से मिलन हुआ. वे पहली बार घूमने के लिए बाहर निकले.

इब्राहिम कहते हैं, “हयात को ऐसा एक दिन भी याद नहीं जब बमबारी न हुई हो. तबाही के इन भयावह दृश्यों के बीच वो पैदा हुई थी, बम के धमाकों और ख़बरों के बीच.”

कार की अगली सीट पर छह महीने की हयात अपनी मां की गोद से चिपकी हुई है. यह कार एक के बाद एक ध्वस्त इमारतों के बीच से होकर गुजर रही है, सड़कें रेत और मलबे की कई परतों के नीचे दब चुकी हैं.

इब्राहिम कहते हैं, “इन सबके बावजूद, वो मुस्कान रुक नहीं रही है.”

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

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