उत्तर प्रदेश की राजनीति में बीते दिनों दिया गया एक बयान विवाद की वजह बन गया है.
विवाद का केंद्र है, 16 अक्तूबर 2025 को सिद्धार्थनगर ज़िले के धनखरपुर गांव में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के पूर्व विधायक राघवेंद्र प्रताप सिंह का एक बयान.
उन्होंने एक जनसभा के दौरान ऐसा बयान दिया, जिसे विपक्षी दलों ने आपत्तिजनक, भड़काऊ और महिलाओं के प्रति अपमानजनक बताया है.
जिस सभा में उन्होंने ये बयान दिया वहां मंच पर बीजेपी नेताओं की तस्वीरें और पार्टी का निशान लगा बैनर दिखा. उनके बयान का वीडियो सोशल मीडिया पर भी शेयर किया गया.
बीबीसी हिन्दी के व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें
विपक्षी दलों ने इसे "नफ़रत की राजनीति" बताते हुए उनके ख़िलाफ़ तुरंत क़ानूनी कार्रवाई की मांग की है.
समाजवादी पार्टी (एसपी), बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) और कांग्रेस इस बयान को लेकर सरकार पर निशाना साध रही हैं.
राघवेंद्र प्रताप सिंह ने क्या कहा था?
FACEBOOK/Raghvendra Pratap Singh राघवेंद्र प्रताप सिंह के एक सभा में दिए बयान की विपक्षी पार्टियों ने निंदा की है (फ़ाइल फ़ोटो) 16 अक्तूबर 2025 को राघवेंद्र प्रताप सिंह ने एक जनसभा में मुस्लिम लड़कियों को भगाने पर हिंदू लड़कों की मदद करने संबंधी बयान दिया था जिसको लेकर चर्चा हो रही है.
इस पर प्रतिक्रिया देते हुए समाजवादी पार्टी (एसपी) के नेता और विधानसभा में नेता विपक्ष माता प्रसाद पांडे ने कहा है, "ये उनकी मानसिकता है. चुनाव की हार ने उन्हें हताश कर दिया है."
उन्होंने कहा, "ये समुदायों के बीच दूरी बनाकर वोट बैंक को सुरक्षित रखना चाहते हैं. ऐसे बयानों की निंदा होनी चाहिए और सरकार को कार्रवाई करनी चाहिए."
वहीं बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) प्रमुख मायावती ने इसे "घोर निंदनीय और असंवैधानिक" बयान बताया.
उन्होंने कहा, "इस तरह की भाषा न सिर्फ़ नफ़रत फैलाती है बल्कि क़ानून को अपने हाथ में लेने की प्रवृत्ति को बढ़ावा देती है. सरकार को ऐसे तत्वों पर सख्त कार्रवाई करनी चाहिए, न कि उन्हें संरक्षण देना चाहिए."
उन्होंने आगे कहा, "उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों में धर्म परिवर्तन, लव जिहाद जैसे मुद्दों के नाम पर समाज में वैमनस्य फैलाने की कोशिशें हो रही हैं. यह क़ानून-व्यवस्था के लिए गंभीर खतरा है."
वहीं उत्तर प्रदेश कांग्रेस ने इस बयान की तो कड़ी आलोचना की ही है, बीजेपी को भी निशाने पर लिया है.
अपने सोशल मीडिया हैंडल पर पार्टी ने लिखा, "धर्म के नाम पर नफ़रत फैलाना, समाज को तोड़ना और बेरोजगार युवाओं को भटकाना, यही उनकी असली राजनीति बन चुकी है. जब रोजगार, शिक्षा और महंगाई पर जवाब देना मुश्किल हो गया, तब भाजपा नेता धार्मिक जहर घोलकर सत्ता की राजनीति चमकाने में जुट गए हैं."
वहीं यूपी महिला कांग्रेस ने अपने सोशल मीडिया हैंडल पर लिखा, "भाजपा के नेता अपने बयानों से अपनी महिला विरोधी सोच जाहिर करते रहते हैं."
बीजेपी नेता की प्रतिक्रियाराज्य की सत्ताधारी पार्टी बीजेपी ने अब तक इस विवाद पर कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है.
हालांकि कुछ स्थानीय नेताओं ने इसे राघवेंद्र सिंह का "व्यक्तिगत बयान" बताया है.
बीजेपी के अल्पसंख्यक मोर्चा अध्यक्ष कुंवर बासित अली ने राघवेंद्र सिंह के बयान से दूरी बनाते हुए कहा, "ऐसे लोग सस्ती लोकप्रियता पाने के लिए इस तरह के बयान देते हैं. पार्टी इनके विचारों से सहमत नहीं है."
उन्होंने बीबीसी न्यूज़ हिंदी से कहा, "बीजेपी 'सबका साथ, सबका विकास' की नीति पर चलती है और ऐसे वक्तव्य समाज में वैमनस्य फैलाने वाले हैं. ये लोग सिर्फ़ ध्यान खींचने के लिए ऐसे बयान देते हैं."
कई बार फ़ोन करने के बावजूद राघवेंद्र सिंह से बात नहीं हो सकी, इसलिए उनका पक्ष नहीं मिल पाया.
- यूपी में बीते कुछ दिनों में दलित उत्पीड़न के तीन मामले आए सामने, जानकार क्या कहते हैं?
- हेयर स्टाइलिस्ट जावेद हबीब पर यूपी के संभल में 32 मुक़दमे, क्या है पूरा मामला
राघवेंद्र प्रताप सिंह सिद्धार्थनगर ज़िले की डुमरियागंज विधानसभा सीट से बीजेपी के टिकट पर विधायक रह चुके हैं. पेशे से किसान और शिक्षित वर्ग से आने वाले सिंह का नाम पहले भी विवादों में रह चुका है.
2022 के विधानसभा चुनावों के दौरान भी वो इस तरह के विवादास्पद बयान दे चुके हैं.
राघवेंद्र सिंह लंबे समय से हिंदुत्व की विचारधारा से जुड़े हुए हैं और राजनीतिक रूप से उन्हें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का क़रीबी माना जाता है.
उन्होंने गोरखपुर विश्वविद्यालय से स्नातक की पढ़ाई की. इसी दौरान मठ में उनका आना-जाना शुरू हुआ. वहीं से उनकी योगी आदित्यनाथ से नज़दीकी बढ़ी और उन्होंने हिंदू युवा वाहिनी में सक्रिय भूमिका निभाई.
संगठन में प्रदेश प्रभारी बनने के बाद उनकी छवि "कट्टर हिंदू नेता" की रही है.
वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं, "2012 में योगी आदित्यनाथ की सिफ़ारिश पर उनको डुमरियागंज से बीजेपी का टिकट मिला, हालांकि उन्हें पीस पार्टी के प्रत्याशी से हार का सामना करना पड़ा."
उन्होंने कहा, "राघवेंद्र सिंह, जैसे कई लोग योगी आदित्यनाथ की हिंदू युवा वाहिनी से जुड़े रहे हैं. उसके बाद योगी आदित्यनाथ ने बीजेपी में उनका समावेश किया था. लेकिन इनकी आदतें अभी बदली नहीं हैं."
योगी आदित्यनाथ ने 2002 में हिंदू युवा वाहिनी का गठन किया था, जो गो-रक्षा और हिंदू संस्कृति की रक्षा के उद्देश्य से बनाया गया था. राघवेंद्र सिंह तब से ही संगठन का हिस्सा थे.
हालांकि, योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद इस संगठन को भंग कर दिया गया था.
- इक़रा हसन क्यों हुईं भावुक, वायरल वीडियो में लगाया गाली देने का आरोप
- यूपी की वो रामलीला जिसे मुस्लिम परिवार 158 साल से करा रहा है
2017 में राघवेंद्र सिंह ने बीएसपी उम्मीदवार सैय्यदा ख़ातून को 171 वोटों से हराया था, लेकिन 2022 में सैय्यदा ख़ातून ने समाजवादी पार्टी (एसपी) के टिकट पर राघवेंद्र सिंह को मात दी.
ख़ातून ने 2012 और 2017 में बीएसपी से चुनाव लड़ा था. उनके पिता भी इसी सीट से विधायक रहे हैं.
वर्तमान विधायक सैय्यदा ख़ातून ने कहा कि यह बयान न केवल महिलाओं का, बल्कि डुमरियागंज के सामाजिक सौहार्द का भी अपमान है.
उन्होंने कहा, "जहाँ सरकार 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' का नारा दे रही है, वहीं हमारी बेटियों का अपमान हो रहा है. बार-बार मुसलमानों का नाम लेकर आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल करना,डुमरियागंज की गंगा-जमुनी तहज़ीब पर हमला है."
ख़ातून ने बीबीसी न्यूज़ हिन्दी से कहा, "इससे पहले भी वे कई बार इस तरह का बयान दे चुके हैं. पहले भी हमने (पुलिस में) शिकायत की थी लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई."
इस मामले में पुलिस अधीक्षक सिद्धार्थनगर से संपर्क करने की कोशिश की गई, लेकिन बात नहीं हो सकी.
राजनीतिक विश्लेषक क्या कहते हैं?राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि उत्तर प्रदेश में धर्म और समुदाय आधारित राजनीति लंबे समय से चुनावी रणनीतियों का हिस्सा रही है.
लेकिन इस बार मामला केवल राजनीतिक बयानबाज़ी नहीं, बल्कि महिलाओं की गरिमा और धार्मिक सह-अस्तित्व के प्रश्न से जुड़ा है.
प्रदेश में अगले साल पंचायत चुनाव होने हैं, जबकि विधानसभा चुनाव 2027 में होंगे.
सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं, "अगर इस तरह का बयान अल्पसंख्यक समुदाय की तरफ से कोई देता है तो सरकार का पूरा अमला उसके पीछे पड़ जाता है. 'आई लव मोहम्मद' वाले मुद्दे पर यही हुआ."
उन्होंने कहा, "अपरोक्ष रूप से हिंदू युवा वाहिनी को सक्रिय किया जा रहा है. पीडीए की राजनीति का जवाब बीजेपी के पास हिंदुत्व ही है."
कलहंस के मुताबिक़, तराई क्षेत्र में हिंदू युवा वाहिनी से जुड़े कई नेता हाल के महीनों में भड़काऊ बयान दे चुके हैं.
'इस तरह की बात समाज को बांटती है'कुछ राजनीतिक विश्लेषक यह भी मान रहे हैं कि बिहार चुनाव में जातीय ध्रुवीकरण देखा जा रहा है और बीजेपी पूर्वांचल, साथ ही सीमावर्ती ज़िलों में हिंदुत्व आधारित नैरेटिव पर ध्यान दे रही है.
उत्तर प्रदेश के कई ज़िले बिहार की सीमा से सटे हैं. योगी आदित्यनाथ स्टार प्रचारक हैं और 29 अक्तूबर से उनका चुनाव प्रचार अभियान शुरू हो चुका है.
यूपी-बिहार सीमा के पाँच ज़िलों की 19 विधानसभा सीटों पर असर पड़ सकता है. 2020 के बिहार चुनाव में एनडीए को 8 सीटें मिली थीं जबकि महागठबंधन ने 10 सीटों पर जीत दर्ज की थी.
इससे पहले लोकसभा चुनाव में बीजेपी को उम्मीद से कम सीटें मिली थीं, जबकि इंडिया गठबंधन ने 43 सीटें जीती थीं.
लखनऊ विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग के प्रमुख सौरभ मालवीय का कहना है हाल के वक्त में समाज को बांटने वाले इस तरह के बयान देखने को मिल रहे हैं.
वो कहते हैं, "सरकार जिसकी भी हो, लोकतांत्रिक व्यवस्था संविधान के अनुरूप चलनी चाहिए. समाज में सबको मिलजुल कर रहने का अधिकार है."
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, एक्स, इंस्टाग्राम, और व्हॉट्सऐप पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)
- बिहार चुनाव के प्रचार में राहुल गांधी की एंट्री और पीएम मोदी पर टिप्पणी, अमित शाह क्या बोले
- बिहार चुनाव: मुकेश सहनी को महागठबंधन ने इतनी तवज्जो क्यों दी
You may also like

बर्थडे के बहाने रेप! होटल में प्रपोज कर जीता भरोसा, फिर शादी से मुकरा शख्स

1500 की मनी ऑर्डर और 32 साल चला केस, रिटायरमेंट के बाद सब-पोस्टमास्टर को 3 साल की जेल, बिहार से जुड़ा पूरा मामला जानें

Titan की दूसरी तिमाही के सेल्स में 22% की मजबूत तेजी, प्रॉफिट 59% से बढ़ा, 4 Oct को शेयर में दिखेगा असर

सेना प्रमुख ने ऑपरेशन सिंदूर व वैश्विक सुरक्षा विषयों पर लिखी पुस्तक का किया विमोचन

LIC निवेश प्लस: गारंटीड रिटर्न के साथ सुरक्षित भविष्य, अभी जानें!




