Next Story
Newszop

पाकिस्तानी हमले में मारे गए जुड़वां, 'दोनों में से एक तो बच जाता'

Send Push
MARIA KHAN जुड़वां भाई-बहन ज़ैन अली और उर्वा फ़ातिमा

जम्मू-कश्मीर के पुंछ शहर में रहने वाले ज़ैन अली और उर्वा फ़ातिमा के लिए छह मई बाक़ी दिनों जैसा ही था. बारह साल के ये जुड़वां भाई-बहन स्कूल गए, होमवर्क किया, थोड़ा खेले, रात का खाना खाया, और फिर सो गए.

लेकिन बीच रात उनकी नींद खुल गई. इसकी वजह थी उनके घर से कुछ ही किलोमीटर दूर भारत-पाकिस्तान नियंत्रण रेखा पर फायरिंग.

ज़ैन और उर्वा की मौसी मारिया ख़ान मुझे ये बताते हुए सिसक कर रो पड़ती हैं.

बच्चों और उनके मां-बाप को नहीं मालूम था कि भारत ने 'ऑपरेशन सिंदूर' शुरू किया है और पाकिस्तान उसकी जवाबी कार्रवाई कर रहा है.

image MARIA KHAN यहां दफ़न हैं बारह साल के ये जुड़वां भाई-बहन ज़ैन अली और उर्वा फ़ातिमा

डरे, सहमे, वो गोलाबारी के रुकने का इंतज़ार करने लगे. सुबह हो गई. आखिरकार करीब साढ़े छह बजे बच्चों के मामा उन्हें और उनके मां-बाप को वहां से निकालने के लिए पहुंच पाए. फोन कर उन्हें घर से बाहर बुलाया.

भर्राई आवाज़ में मारिया कहती हैं, "दीदी ने उर्वा का हाथ पकड़ा था और जीजू ने ज़ैन का, घर से निकले और अचानक बम फटा, उर्वा तो वहीं ख़त्म हो गई और ज़ैन ना जाने कहां गिर गया."

उर्वा की मां आवाज़ लगाती रहीं, बदहवासी में ढूंढती रहीं. आखिर देखा कि कहीं दूर एक अनजान आदमी ज़ैन का सीना दबा कर उसकी टूटती सांस को चलाने की कोशिश कर रहा था. पर वो कामयाब नहीं हुआ.

इस बीच ज़ैन और उर्वा के पिता, रमीज़ खान, आधे घंटे तक लहूलहान अवस्था में बेहोश रहे. बच्चों के देखने के बाद ही उनकी पत्नी उरूसा को उन्हें संभालने का होश आया.

रमीज़ बुरी तरह घायल थे, उन्हें पुंछ के अस्पताल में भर्ती करवाकर, उरूसा अपने भाई के साथ वापस घर आईं.

उन्हें अपने बच्चों को दफ़नाना था.

स्कूल बना निशाना? image MARIA KHAN मारिया की बहन उरूसा और जीजा रमीज़ अपने बच्चों के साथ

मारिया की आंखों से आंसू लगातार बह रहे हैं. मैं उन्हें जम्मू के जनरल मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में मिली.

यहां पुंछ और जम्मू में पिछले चार दिनों में हुए हमलों में घायल हुए करीब बीस लोग भर्ती हैं. इनमें से सिर्फ़ दो आईसीयू में हैं - मारिया की बहन उरूसा और जीजा रमीज़.

रमीज़ ख़ान को अब तक नहीं मालूम कि उनके दोनों बच्चे इस दुनिया में नहीं रहे. ज़िंदगी और मौत से जूझ रहे रमीज़ को उनका परिवार ये सदमा नहीं देना चाहता.

मारिया कहती हैं, "दीदी घायल भी हैं और बच्चों को खोने का दर्द भी संभाल रही हैं. ना सो रही हैं, ना खा रही हैं, ना ठीक से कुछ बोल रही हैं. उनके दो ही बच्चे थे, दोनों चले गए."

उरूसा और रमीज़ के बच्चे उनके जीवन की धुरी थे. एक सरकारी स्कूल में टीचर, रमीज़ अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देना चाहते थे.

इसीलिए एक साल पहले उन्होंने बच्चों के स्कूल के नज़दीक रहने लिए किराए पर घर ले लिया था.

मारिया के मुताबिक शायद स्कूल से नज़दीकी ही बच्चों की मौत की वजह बन गई.

image Getty Images भारत के विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने भी उर्वा और ज़ैन की मौत का ज़िक्र किया था.

नौ मई को जब भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री से पाकिस्तान द्वारा स्कूलों को निशाना बनाए जाने के बारे में एक पत्रकार ने सवाल पूछा तब उन्होंने इस हमले का ज़िक्र किया.

मिस्री ने कहा, "नियंत्रण रेखा पर भारी शेलिंग के दौरान एक शेल पुंछ शहर के क्राइस्ट स्कूल के पीछे जा गिरा और स्कूल में पढ़ने वाले दो बच्चों के घर के पास फटा. दुर्भाग्यवश इसमें उन दोनों बच्चों की मौत हो गई और उनके मां-बाप बुरी तरह से घायल हो गए."

ऑपरेशन सिंदूर पर की जा रही इस दूसरी पत्रकार वार्ता के दौरान विदेश सचिव ने ये भी बताया कि सात मई की सुबह पुंछ में हुई पाकिस्तान की जवाबी कार्रवाई सबसे जानलेवा थी, जिसमें बच्चों समेत 16 आम नागरिकों की मौत हो गई.

सीमावर्ती इलाके के लोगों को नहीं थी कोई चेतावनी image Getty Images वो जगह जहां पाकिस्तानी गोलाबारी में घर से बाहर निकलते ही बम फटा

रमीज़ की चोटें गहरी थीं. परिवार उन्हें इलाज के लिए पहले पुंछ के अस्पताल से चार घंटे की दूरी पर राजौरी शहर के अस्पताल और फिर वहां से और चार घंटे सड़क का रास्ता तय कर जम्मू के बड़े अस्पताल में लेकर आया.

इसी दौड़-भाग के बीच भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम की घोषणा हो गई. हमले थमे, पर रमीज़ और उरूसा के लिए बहुत देर हो गई.

मारिया कहती हैं, "जंग हो, सीज़फायर हो, हमारे बच्चे तो वापस नहीं आएंगे."

फिर नज़र उठाकर मुझे देखती हैं और पूछती हैं, "अगर देश की सुरक्षा के लिए जंग ज़रूरी है, आतंकवादियों को ख़त्म करने के लिए ये ज़रूरी है तो हम उसका समर्थन करते हैं. पहलगाम हमले से हमारा भी दिल दुखा है, पर बॉर्डर के पास रहनेवालों की ज़िंदगी का भी तो सोचना चाहिए. हम इंसान नहीं हैं क्या?"

सीमा पर बसे गांवों में सरकार ने बंकर बनवाए हैं लेकिन पुंछ शहर में ऐसी सुविधा नहीं है.

मारिया के मुताबिक ऑपरेशन सिंदूर से पहले सरकार को सीमावर्ती इलाकों के लोगों को जानकारी देनी चाहिए थी ताकि वो वहां से निकलकर सुरक्षित जगह चले जाते और, "शायद हमारे बच्चे आज हमारे पास होते."

image Getty Images जम्मू-कश्मीर के मुख़्यमंत्री उमर अब्दुल्लाह ने अस्पताल में घायलों के परिवारवालों से मुलाकात की

जम्मू-कश्मीर के मुख़्यमंत्री उमर अब्दुल्लाह ने अस्पताल में घायलों के परिवारवालों से मुलाकात की तो आईसीयू भी गए.

हमलों में मारे गए हर व्यक्ति के परिवार को दस लाख रुपए के मुआवज़े की घोषणा की है.

मारिया आगे की ज़िंदगी का सोचने से घबराती हैं.

रमीज़ खान रोज़ अपने बच्चों के बारे में पूछते हैं.

वो कहती हैं, "दोनों में से एक तो बच जाता, दीदी कैसे जिएंगी, हम जीजा जी को कैसे बताएंगे?"

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

image
Loving Newspoint? Download the app now