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ट्रंप के टैरिफ़ के ख़िलाफ़ पीएम मोदी का ये 'मंत्र', कितना कारगर होगा

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Getty Images इस साल स्वतंत्रता दिवस पर पीएम नरेंद्र मोदी ने जीएसटी में सुधारों का वादा किया था. समझा जाता है कि इससे भारत में उपभोक्ता मांग बढ़ सकती है.

इस महीने की शुरुआत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक वादा किया था.

उन्होंने कहा था कि आम आदमी और एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था को ताकत देने वाले लाखों छोटे कारोबारियों को बड़े पैमाने पर टैक्स छूट का दीवाली गिफ़्ट मिलने वाला है.

स्वतंत्रता दिवस समारोह के दौरान दिल्ली के लाल किले से मोदी ने आत्मनिर्भर भारत बनाने का आह्वान किया. पीएम मोदी ने छोटे दुकानदारों और बिजनेसमैन से अपील की कि वो "स्वदेशी" या "मेड इन इंडिया" के बोर्ड लगाएं.

उन्होंने कहा, "हमें आत्मनिर्भर बनने की जरूरत है. लेकिन हताशा में नहीं बल्कि खुद पर गर्व करते हुए. दुनिया भर में आर्थिक स्वार्थ बढ़ रहा है और हमें अपनी मुश्किलों का रोना नहीं रोना चाहिए. हमें इनसे ऊपर उठकर दूसरों के चंगुल से बचना होगा."

उन्होंने इस सप्ताह कम से कम दो सार्वजनिक संबोधनों में ये बात दोहराई.

कई लोग मानते हैं कि ये साफ तौर पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के लगाए गए 50 फीसदी टैरिफ़ का जवाब देने के लिए की गई अपील है.

ये टैरिफ बुधवार सुबह साढ़े नौ बजे से लागू हो गए हैं.

टैरिफ़ के कारण भारत में निर्यात करने वाले उद्योगों में काम करने वाले लाखों लोगों का रोज़गार प्रभावित होगा. ये उद्योग अमेरिकी उपभोक्ताओं के लिए कपड़े, झींगा मछली और हीरे जैसी वस्तुओं की आपूर्ति करते हैं.

'भारत में बनाओ और यहीं ख़र्च करो' image AFP via Getty Images अमेरिकी टैरिफ़ की वजह से भारत में टेक्सटाइल जैसे सेक्टर में बेरोजगारी बढ़ सकती है.

भारत को लगे इस टैरिफ़ झटके के बीच पीएम नरेंद्र मोदी का संदेश साफ़ है- भारत में बनाओ और यहीं खर्च करो.

भारत की जीडीपी में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की हिस्सेदारी 15 फीसदी पर स्थिर है. वर्षों से सब्सिडी और प्रोडक्शन इंसेंटिव देने की नीति जारी रखने के बावजूद जीडीपी में मैन्युफैक्चरिंग की हिस्सेदारी बढ़ाने का लक्ष्य मुश्किल होता जा रहा है.

लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि अगर सरकार लंबे समय से अटके हुए टैक्स सुधारों को आगे बढ़ाकर लोगों के हाथों में ज्यादा पैसा डाले तो ट्रंप से मिले इस झटके को कुछ हद तक कम करने में मदद मिल सकती है.

इस साल की शुरुआत में बजट में लगभग एक लाख करोड़ रुपये की इनकम टैक्स छूट की घोषणा की गई थी.

लगभग एक लाख करोड़ रुपये की इनकम टैक्स छूट की घोषणा के बाद, मोदी अब भारत के अप्रत्यक्ष कर ढांचे में आमूलचूल परिवर्तन का लक्ष्य बना रहे हैं, जिसमें जीएसटी में कमी और सरलीकरण शामिल है.

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जीएसटी सुधारों से बड़ी उम्मीदें image BBC भारत पर 50 फ़ीसदी अमेरिकी टैरिफ़ काफी विरोध हो रहा है. ये टैरिफ़ 27 अगस्त से लागू हो रहा है.

आठ वर्ष पहले लागू हुए जीएसटी ने कई तरह के अप्रत्यक्ष कर ख़त्म कर दिए थे ताकि टैक्स कंप्लायंस बढ़े और बिज़नेस करने की लागत कम हो.

लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि ये सारा सिस्टम बेहद जटिल हो गया है. जानकार इसमें लगातार सुधार की मांग करते रहे हैं.

अब पीएम मोदी ने यही वादा किया है. वित्त मंत्रालय ने अब जीएसटी के लिए सिर्फ़ दो स्लैब का प्रस्ताव रखा है.

अमेरिकी ब्रोकरेज हाउस जैफरीज के विश्लेषकों ने उनकी इस घोषणा के बाद कहा, "बजट में आयकर में कटौती की गई थी. अब जीएसटी स्लैब में सुधार के बाद उपभोक्ताओं के हाथ में लगभग दो लाख करोड़ रुपये आ सकते हैं. इससे उपभोग को बढ़ावा मिलेगा. निजी उपभोग भारत में अर्थव्यवस्था का एक मुख्य आधार है. देश की जीडीपी में इसका 60 फीसदी योगदान है."

हालांकि बंपर फसल की वजह से ग्रामीण इलाकों में मांग मजबूत बनी हुई है. लेकिन कोविड के बाद कम वेतन और आईटी सेक्टर में नौकरियां घटने जैसी वजहों से शहरों में वस्तुओं और सेवाओं की मांग में कमी आई है.

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इन्वेस्टमेंट बैंकिंग फर्म मॉर्गन स्टेनली के मुताबिक पीएम मोदी के राजकोषीय प्रोत्साहन या टैक्स कटौती से उपभोग में निश्चित तौर पर सुधार देखने को मिलेगा. इससे जीडीपी में बढ़ोतरी होगी और महंगाई घटेगी.

मॉर्गन स्टेनली ने कहा, "ये इसलिए अहम है क्योंकि मौजूदा जियोपॉलिटिकल तनाव और रेसिप्रोकल टैरिफ से बाहरी मांग में कमी आ सकती है."

टैक्स छूट से जिन क्षेत्रों को सबसे अधिक फायदा होने की संभावना है, उनमें उपभोक्ता-केंद्रित क्षेत्र शामिल हैं. स्कूटर, छोटी कारें, कपड़े और सीमेंट जैसी चीजों की बिक्री बढ़ सकती है. इससे दीवाली के आसपास मांग में बढ़ोतरी हो सकती है.

ज्यादातर विश्लेषकों का अनुमान है कि कम जीएसटी के कारण होने वाली रेवेन्यू में कमी की भरपाई सरप्लस लेवी कलेक्शन और भारत के केंद्रीय बैंक आरबीआई के डिविडेंड से हो सकती है.

स्विस निवेश बैंक यूबीएस के मुताबिक मोदी की ओर से पिछली जीएसटी कटौती और कॉरपोरेट टैक्स में कमी का असर अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा. चूंकि ये लोगों की खरीद क्षमता पर असर डालते हैं, इसलिए लोगों के हाथ में पैसा बचेगा तो निश्चित तौर पर चीजें खरीदी जाएंगी.

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टैक्स छूट और वेतन बढ़ने से मिलेगा अर्थव्यवस्था को बूस्ट image Getty Images विशेषज्ञों का कहना है कि टैक्स में छूट और सरकारी नौकरियों में वेतन बढ़ने से भारत की अर्थव्यवस्था को रफ़्तार मिल सकती है.

मोदी की टैक्स छूट की वजह से आरबीआई ब्याज दरों में और कटौती कर सकता है. इससे पिछले कुछ महीनों के दौरान ब्याज दरों में एक फीसदी की कटौती हुई है. इससे बैंकों की ओर से लोन देने में भी रफ्तार आ सकती है.

यूबीएस के मुताबिक इस टैक्स छूट और अगले साल की शुरुआत में लगभग 50 लाख सरकारी कर्मचारियों के वेतन में बढ़ोतरी और 68 लाख पेंशनधारकों से भारत की अर्थव्यवस्था को अपनी विकास गति बनाए रखने में मदद मिलेगी.

यूबीएस के अनुसार, अगले साल की शुरुआत में लगभग 50 लाख सरकारी कर्मचारियों की तनख्वाह और 68 लाख पेंशनभोगियों की पेंशन बढ़ाई जाएगी, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था को और गति मिलेगी.

भारत के शेयर बाजारों ने इन घोषणाओं का स्वागत किया है. व्यापार अनिश्चितताओं से पैदा हुई घबराहट के बावजूद इस महीने की शुरुआत में भारत को 18 साल के अंतराल के बाद रेटिंग एजेंसी एस एंड पी ने भारत की सॉवरेन रेटिंग बढ़ा दी है.

सॉवरेन रेटिंग यह बताती है कि किसी देश में निवेश करना कितना जोखिम भरा हो सकता है.

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यह काफी अहम है क्योंकि सरकार की कर्ज की लागत घट जाती है और देश में ज्यादा विदेश निवेश आ सकता है.

हालांकि पीएम मोदी की ओर से लंबे समय से अटके हुए सुधारों को तेजी से आगे बढ़ाने के बावजूद भारत की आठ फीसदी की विकास संभावनाएं पूरी नहीं हो पा रही हैं. इस समय यह छह फीसदी से थोड़ा ऊपर है.

भारत और अमेरिका के बीच रूस से तेल खरीद को लेकर वाक्युद्ध तेज हो गया है. इस बीच विशेषज्ञों का कहना है कि भारत पर फीसदी टैरिफ दुनिया की सबसे बड़ी और सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था पर व्यापार प्रतिबंध लगाने के समान है.

कुछ महीनों पहले तक ऐसे हालात की कल्पना भी नहीं की गई थी.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

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