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बिहार में चुनाव आयोग के इस दावे पर उठ रहे हैं सवाल

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Getty Images मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान के दौरान 31 अगस्त 2025 को पटना में बूथ लेवल अधिकारी मतदाताओं के दस्तावेज़ों का सत्यापन करते हुए.

भारत के केंद्रीय चुनाव आयोग ने 24 जून 2025 को बिहार में मतदाता सूची में 'विशेष गहन पुनरीक्षण' यानी एसआईआर की प्रक्रिया की अधिसूचना जारी की.

मतदाता सूची में बदलाव की ये प्रक्रिया पूरी हो चुकी है लेकिन इसे लेकर सवाल अब भी उठ रहे हैं.

स्वराज अभियान के समन्वयक योगेंद्र यादव ने 2003 में हुए गहन पुनरीक्षण के दिशानिर्देशों की कॉपी जारी करते हुए आरोप लगाया है कि चुनाव आयोग ने 2003 में हुए आईआर (इंटेंसिव रिवीज़न) की प्रक्रिया को लेकर झूठे दावे किए.

योगेंद्र यादव ने 2003 के आईआर और 2025 के एसआईआर के बीच तुलना करते हुए तीन बड़े दावे किए हैं.

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यह दावे उन्होंने चुनाव आयोग के 2003 के पुनरीक्षण को लेकर जारी दिशानिर्देशों के आधार पर किए हैं.

उस समय नहीं भरे गए थे फ़ॉर्म

चुनाव आयोग ने दावा किया था कि साल 2003 में भी एन्यूमरेशन हुआ था, लोगों ने एन्यूमरेशन फ़ॉर्म भरे थे और 21 दिन के भीतर सब कुछ हो गया था.

हालांकि, 2003 के दिशानिर्देशों के मुताबिक़ इस पुनरीक्षण में एन्यूमरेशन फ़ॉर्म नहीं भरे गए थे.

योगेंद्र यादव के मुताबिक़, "2003 में कोई एन्यूमरेशन फ़ॉर्म भरा ही नहीं गया था और ना ही लोगों को कोई समयसीमा दी गई थी. एन्यूमरेटर यानी बीएलओ को कहा गया था कि तुम घर-घर जाओ और फ़ॉर्म भरो और पुरानी वोटर लिस्ट में अगर कोई संशोधन हो तो परिवार के मुखिया के हस्ताक्षर करवा लो."

2025 में एसआईआर की प्रक्रिया के तहत मतदाताओं से एन्यूमरेशन फ़ॉर्म भरने के लिए कहा गया और उन मतदाताओं के नाम सूची से हटा दिए गए जिन्होंने फ़ॉर्म नहीं भरे.

योगेंद्र यादव ने दावा किया है कि साल 2003 में पुनरीक्षण के तहत मतदाताओं ने एन्यूमरेशन फ़ॉर्म नहीं भरे थे बल्कि बीएलओ ने डेटा भरा था.

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'2003 में नहीं मांगे गए थे दस्तावेज़' image Getty Images 4 जुलाई 2025 को पटना के ग्रामीण इलाक़ों में गणना फ़ॉर्म के घर-घर वितरण के दौरान फ़ॉर्म दिखाते स्थानीय लोग

चुनाव आयोग ने तर्क दिया है कि साल 2003 में लोगों को सिर्फ़ चार दस्तावेज़ में से एक देने के लिए कहा गया था जबकि इस बार मतदाताओं के पास 11 दस्तावेज़ में से कोई एक उपलब्ध करवाने का विकल्प था.

हालांकि योगेंद्र यादव ये दावा करते हैं कि 2003 के दिशानिर्देशों के मुताबिक़, आम मतदाताओं से दस्तावेज़ नहीं मांगे गए थे. दस्तावेज़ सिर्फ़ उन लोगों से मांगे गए थे जिनकी उम्र या पते के बारे में ग़लत जानकारी दर्ज कराई गई थी.

2025 में हुए एसआईआर के तहत मतदाताओं से दस्तावेज़ों की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दायर की गई थी.

सुप्रीम कोर्ट के दख़ल के बाद चुनाव आयोग ने आधार कार्ड को भी मतदाता सूची में शामिल होने के लिए वैध दस्तावेज़ माना था. हालांकि, जब एसआईआर की प्रक्रिया शुरू हुई थी तब आधार कार्ड वैध दस्तावेज़ों की सूची में शामिल नहीं था.

तब नागरिकता की कोई जांच नहीं हुई

इस साल जून में जब चुनाव आयोग ने एसआईआर को लेकर आदेश जारी किया था तब यह स्पष्ट कहा गया था कि इस प्रक्रिया का एक मक़सद अवैध नागरिकों को भी मतदाता सूची से हटाना है.

एसआईआर की प्रक्रिया को नागरिकता की जांच से जोड़कर भी देखा गया.

हालांकि, 2003 में हुए गहन पुनरीक्षण के दौरान मतदाताओं की नागरिकता की कोई जांच नहीं की गई थी.

दिशानिर्देशों के पैरा 32 में ये स्पष्ट कहा गया था कि एन्यूमरेटर का ये काम नहीं है कि वह नागरिकता की जांच करें.

दिशानिर्देशों में कहा गया, "ये स्पष्ट किया जाता है कि किसी व्यक्ति की नागरिकता तय करना एन्यूमरेटर का काम नहीं है. हालांकि उनके पास ये अधिकार है और ज़िम्मेदारी भी कि वो उम्र या निवास स्थान के आधार पर किसी भी व्यक्ति को सूची से बाहर कर सकते हैं."

हालांकि, 2003 में भी नागरिकता की जांच के लिए दो अपवाद थे. पहला, अगर मतदाता पहली बार पंजीकरण करा रहा हो तो निर्वाचन पंजीकरण अधिकारी (ईआरओ) आवश्यक समझे तो नागरिकता से जुड़े दस्तावेज़ मांग सकते थे.

image BBC

दूसरा अपवाद उस स्थिति में था जब किसी क्षेत्र को सरकार ने पर्याप्त संख्या में विदेशी नागरिकों वाला क्षेत्र घोषित किया हो. हालांकि, ऐसे इलाक़ों में भी मौजूदा मतदाताओं को नागरिकता साबित करने की ज़रूरत नहीं थी.

ऐसे इलाक़ों में एन्यूमरेटर (गणनाकर्ता) सूची में नए नाम सिर्फ़ ऐसे लोगों के ही जोड़ सकते थे जिनके परिजनों के नाम पहले से मतदाता सूची में शामिल हों. नए आवेदन के मामले में ईआरओ, मौजूदा क़ानूनों के तहत नागरिकता साबित करने से जुड़े दस्तावेज़ मांग सकते थे.

हालांकि, साल 2025 की एसआईआर प्रक्रिया के दौरान, नागरिकता साबित करने की ज़िम्मेदारी सिर्फ़ उन्हीं मतदाताओं तक सीमित नहीं थी जो पहली बार नाम शामिल करने के लिए आवेदन कर रहे थे, बल्कि 2003 के बाद से मतदाता सूची में शामिल हुए सभी मतदाताओं से नागरिकता से जुड़े दस्तावेज़ मांगे गए थे.

योगेंद्र यादव कहते हैं, "नागरिकता का प्रमाण केवल तब ही मांगा गया जब किसी की नागरिकता को लेकर कोई ऑब्जेक्शन आया हो या फिर सरकार ने किसी ख़ास इलाक़े को घोषित किया हो कि यहां बड़ी तादाद में अवैध विदेशी रहते हैं और उस इलाक़े में कोई नया व्यक्ति आया हो, या सरकार ने ही किसी व्यक्ति को विदेशी घोषित किया हो."

योगेंद्र यादव कहते हैं, "चुनाव आयोग ने एसआईआर को लेकर ये दावा किया था कि वह 2003 की प्रक्रिया को दोहरा रहा है, यह दावा बिलकुल झूठ है."

चुनाव आयोग ने योगेंद्र यादव के इन आरोपों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है.

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2003 में ईपीआईसी कार्ड मान्य था image Getty Images ईपीआईसी का पूरा नाम 'इलेक्टर्स फोटो आइडेंटिटी कार्ड' है. आम बोलचाल की भाषा में इसे ही वोटर कार्ड कहते हैं

2003 के गहन पुनरीक्षण के तहत सूची में मौजूद रहे मतदाताओं की पहचान का मुख्य आधार चुनाव आयोग की तरफ़ से जारी किया जाने वाला ईपीआईसी कार्ड था.

हालांकि, अब 2025 में हुए विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के तहत चुनाव आयोग ने मतदाताओं के पास मौजूद ईपीआईसी कार्ड को वैध दस्तावेज़ नहीं माना था.

इसके अलावा 2003 में हुई आईआर प्रक्रिया के तहत मतदाता सूची में सुधार की पूरी ज़िम्मेदारी एन्यूमरेटर (मौजूदा संदर्भ में बूथ लेवल ऑफ़िसर यानी बीएलओ) पर थी.

लेकिन अब हुए एसआईआर के तहत मतदाताओं को तय समयसीमा के भीतर दस्तावेज़ों के साथ एन्यूमरेशन फ़ॉर्म भरने थे. जो मतदाता एन्यूमरेशन फ़ॉर्म नहीं भर सके, उनके नाम सूची से हटा दिए गए.

चुनाव आयोग ने क्या बताया था एसआईआर का मक़सद? image ANI चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में दिए अपने हलफ़नामे में कहा है कि आधार कार्ड नागरिकता का प्रमाण नहीं हो सकता

एसआईआर को लेकर अपने पहले बयान में चुनाव आयोग ने कहा था कि इसका मक़सद मतदाता सूची से अवैध मतदाताओं को हटाना है.

चुनाव आयोग ने एसआईआर की आवश्यकता पर ज़ोर देते हुए कई कारण बताए थे, जैसे तेज़ी से हो रहा शहरीकरण, लोगों का पलायन, युवा नागरिकों का मतदान के योग्य होना और अवैध विदेशी नागरिकों का मतदाता सूची में शामिल हो जाना.

एसआईआर की प्रक्रिया के दौरान कथित अवैध विदेशी नागरिकों के मतदाता सूची में शामिल होने पर सबसे ज़्यादा चर्चा हुई.

लेकिन चुनाव आयोग ने जब मतदाता सूची में हुए विशेष गहन पुनरीक्षण के बाद 30 सितंबर को अंतिम मतदाता सूची जारी की तब ये जानकारी नहीं दी गई कि कितने अवैध विदेशी नागरिकों को सूची से हटाया गया है.

प्रकाशित की गई अंतिम सूची में अब 7.42 करोड़ मतदाता हैं जो जून में ये प्रक्रिया शुरू होने से पहले 7.89 करोड़ थे. यानी मतदाता सूची से लगभग 6 प्रतिशत मतदाता कम हुए हैं.

एसआईआर की इस प्रक्रिया के तहत मतदाता सूची से कुल 68.8 लाख मतदाता हटाए गए. एक अगस्त को जब पहली ड्राफ़्ट मतदाता सूची प्रकाशित की गई थी तब 65 लाख नाम हटाए गए थे. इसके बाद दस्तावेज़ों की जांच की प्रक्रिया के दौरान 3.66 लाख मतदाता और हटाए गए.

इसी के साथ, मतदाता सूची में 21.53 लाख नए मतदाता भी जोड़े गए हैं. इनमें से 16.59 लाख मतदाता फ़ॉर्म 6 (सूची में नाम जुड़वाने का फ़ॉर्म) के तहत जोड़े गए हैं.

ये साल 2003 के बाद से बिहार की मतदाता सूची में हुआ पहला विशेष गहन पुनरीक्षण है.

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संदिग्ध विदेशी नागरिकों का डेटा नहीं image ANI

बिहार के चुनाव आयोग ने यह स्पष्ट नहीं किया है कि मतदाता सूची से कितने संदिग्ध विदेशी नागरिक हटाए गए हैं.

हालांकि, जब ये अभियान शुरू हुआ था तब अनाधिकारिक रूप से ये संकेत दिए गए थे कि यह अभियान सूची से अवैध विदेशी नागरिकों को हटाने के लिए है.

चुनाव आयोग ने जब इस विशेष गहन पुनरीक्षण के लिए आदेश जारी किया था तब कहा था कि मतदाता सूची से अवैध मतदाताओं को हटाया जाएगा.

इस अभियान को लोगों की नागरिकता की पुष्टि करने के अभियान के रूप में भी देखा गया था.

हालांकि, अब जो 47 लाख मतदाता हटाए गए हैं उनमें से अधिकतर मृत, स्थायी रूप से पता बदलने वाले या ऐसे मतदाता शामिल हैं जिनके नाम मतदाता सूची में एक से अधिक बार थे.

ऐसे में ये माना जा रहा है कि विदेशी होने के कारण मतदाता सूची से हटाए गए मतदाताओं की संख्या बेहद कम हो सकती है.

भारत के संविधान में मताधिकार के लिए प्रावधान image Getty Images कोई भी व्यक्ति जिसकी उम्र मतदान की तारीख़ तक 18 वर्ष या उससे अधिक हो मतदाता के रूप में पंजीकरण करा सकता है

भारत के संविधान में अनुच्छेद 324 से 329 तक निष्पक्ष और पारदर्शी चुनावों का पूरा ढांचा प्रस्तुत किया गया है.

अनुच्छेद 324 'एक स्वतंत्र और स्वायत्त चुनाव आयोग की नियुक्ति' की व्यवस्था करता है.

वहीं अनुच्छेद 325 के अनुसार, किसी भी व्यक्ति को केवल धर्म, नस्ल, जाति या लिंग के आधार पर मतदाता सूची से बाहर नहीं रखा जा सकता.

अनुच्छेद 326 सभी नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के चुनाव में मतदान का अधिकार देता है.

इसके तहत, कोई भी व्यक्ति, जिसकी उम्र मतदान की तारीख़ तक 18 वर्ष या उससे अधिक हो, और जिसे संविधान या किसी क़ानून के तहत अयोग्य घोषित नहीं किया गया हो, मतदाता के रूप में पंजीकरण करा सकता है.

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