उदयपुर न्यूज़ डेस्क, उदयपुर पति से हुए झगड़े के बाद पत्नी ने अपने 5 साल के बेटे के साथ सुसाइड कर लिया। पहले बेटे को फंदे पर लटकाया और इसके बाद खुद ने भी लटककर जान दे दी। सुसाइड करने से पहले विवाहिता ने घर की साफ-सफाई की और बच्चे को नहलाया था। शाम को मौताणे को लेकर मामला बिगड़ गया है। ऐसे में, तनाव की स्थिति को देखते हुए बाघपुरा, झाड़ोल और फलासिया थाने का जाब्ता मौके पर तैनात है।
मां-बेटे ने किया सुसाइड
फलासिया थाने के SHO सीताराम ने बताया- बिजली दमाणा गांव की रहने वाली कमला पत्नी दिनेश ने अपने बेटे हिमांशु (5) के साथ आज सुबह घर में सुसाइड कर लिया है। परिजनों ने सुबह दोनों के शव फंदे पर लटके देखकर सूचना दी थी। घटनास्थल पर पहुंचकर महिला के पीहर पारगियापाड़ा में सूचना दी। पीहर पक्ष के पहुंचने पर ही मां-बेटे के शव को उतारकर हॉस्पिटल ले जाया गया। मामले में पीहर पक्ष ने सुसाइड का कारण पति-पत्नी के बीच 1 दिन पहले हुए झगड़े को बताया है। मामले में जांच जारी है।
हिमांशु के गिरने पर हुआ था पति-पत्नी में झगड़ा
SHO सीताराम ने बताया- पूछताछ में मिली जानकारी में सामने आया कि एक दिन पहले बुधवार को नाबालिग हिमांशु खेलते हुए गिर गया था। उसे चोट लग गई थी। इसी बात को लेकर दिनेश और उसकी पत्नी कमला में आपस में कहासुनी हो गई थी। दोनों के बीच जमकर झगड़ा हुआ। शाम को सभी लोग मुख्य घर में चले गए। इधर कमला अपने बेटे के साथ अपने घर ही सोई थी।जानकारी के अनुसार, कमला ने सुबह जल्दी उठकर घर की साफ-सफाई की। उसके बाद खुद नहाई और हिमांशु को भी नहलाया। इसके बाद पहले हिमांशु को फंदे से लटका दिया। जब उसकी मौत हो गई तो खुद ने भी फंदे से लटककर सुसाइड कर लिया। मौके पर फटे हुए नोट भी मिले हैं। पुलिस ने पीहर पक्ष द्वारा मौताणे की आशंका को देखते हुए अतिरिक्त जाब्ता लगाया है।
गांव में 3 थानों का जाब्ता तैनात
पुलिस के अनुसार, पीहर पक्ष के लोग शाम को घटना स्थल पहुंचे और गुस्से में ससुराल पक्ष के घर पर पत्थरबाजी कर दी। शाम तक पीहर पक्ष ने दोनों शवों को नहीं उठाया। वे मौताणे की मांग पर अड़े हैं साथ इस मामले में कानूनी कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। पति दिनेश मजदूरी करता है।
200 साल पहले शुरू हुई थी प्रथा
दरअसल, मौताणा कभी आदिवासियों में एक प्रथा के तौर पर शुरू हुई थी। मौताणे पर रिसर्च कर चुके प्रोफेसर एसके कटारिया बताते हैं- यह प्रथा लगभग 200 साल पहले शुरू हुई थी। बनासकांठा, साबरकांठा, झाड़ोल सहित दक्षिणी राजस्थान और उत्तरी गुजरात के हिस्सों से इसकी शुरुआत मानी गई है। इन इलाकों में मौत के बाद शव को मौताणा मिलने तक नहीं उठाया जाता था। जब यह प्रथा शुरू हुई तो इसके पीछे का उद्देश्य यह था कि पीड़ित को सामुदायिक रूप से सहायता पहुंचाई जाए। जिस पर आरोप होता था उस व्यक्ति का पूरा गौत्र इसमें मदद करता था। ये मदद आर्थिक रूप से हुआ करती थी।
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